You are here: कॉलम न्यूज़ टुडे (इंदौर नामा/ स्ट्रेट ड्राइव) इस विधानसभा में भी मुस्लिम उपेक्षित रहेंगे
इन्दौर। क्या चुनाव सिर्पâ कम पढ़ेलिखे लोगों, ठेकेदारों, व्यापारियों के लिए चर्चा का विषय होते हैं? क्या चुनाव में सिर्पâ पैसा, जाति, धर्म और झोपड़पट्टी का ही महत्व होता है? क्या चुनाव में बुद्धिजीवियों के वोटों की कोई कीमत नहीं होती? क्या मीडिया चुनाव में निर्णायक भूमका अदा करता है? कौन से मुद्दे प्रभावित करते हैं चुनावों को?
ये है कुछ सवाल जो आज हर पढ़े लिखे वोटर के सामने खड़े हैं। आज आम तौर पर बुद्धिजीवी यह मानता है कि चुनाव में उसकी भूमिका बहुत छोटी है। मतदाताओं के साथ ही साथ अब उम्मीदवारों की प्राथमिकताएं भी बदलने लगी है। जाति के आधार पर, इलाकों का बंटवारा करके, प्रभावशाली लोगों को साथ में लेकर अब चुनाव जीतने के गठजोड़ तय होते हैं। एक दौर था, जब मुस्लिम वोट निर्णायक होते थे। कांग्रेस पार्टी में तब ६० उम्मीदवार तक मुस्लिम हुआ करते थे। यानी करीब अठारह प्रतिशत। अब मध्यप्रदेश में जातीय समीकरण बदले हैं और अब मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या केवल छ: रह गई है।
जब सभी पार्टियां सामाजिक न्याय की बातें करती है, तब मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या का घटना बहुत गंभीर मामला है। सबसे ज्यादा दुख की बात यह है कि पिछले चुनाव में पूरे मध्यप्रदेश में ३२० सीटों में से एक भी सीट पर कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीत सका था। तब मुख्यमंत्री को पूरी विधानसभा में एक भी मुस्लिम न होने के कारण ऐसे व्यक्ति को मंत्री बनाना पड़ा था, जो विधानसभा का सदस्य नहीं था।
महिलाओं की उम्मीदवारी का मुद्दा भी बहुत महतक्वपूर्ण है। सभी पार्टियां सिद्धांत रूप में इससे सहमत है कि महिलाओं को कम से कम ३३³ सीटें दी जानी चाहिए। लेकिन पार्टियों ने खुद क्या किया? सभी दलों ने महिला उम्मीदवारों की घोर उपेक्षा की थी।
पिछले दस चुनावों में हमारे क्षेत्र में जो लोग खड़े हुए थे, उनकी कुछ सामाजिक प्रतिबद्धता थी, जो अब नजर नहीं आती। पहले कांग्रेस, जनसंघ और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार एक मंच पर सभा को संबोधिक करते थे, अब वह उदारता नहीं बची। जो भी जीतेगा, वह इन्हीं उम्मीदवारों में से रहेगा। इस हिसाब में विधानसभा का चेहरा वैâसा होगा, यह जाना जा सकता है।