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इंग्लिश-विंग्लिश के बाद मॉम श्रीदेवी की ऐसी फिल्म है, जिसकी कहानी श्रीदेवी के लिए ही लिखी गई है। श्रीदेवी जानती हैं कि उम्र के इस मोड़ पर उन्हें कैसी फिल्में करनी है। कई अभिनेत्रियां यह बात बुढ़ापे तक नहीं समझ पाती। एक स्कूल टीचर, एक मां और प्रतिशोध लेने वाली औरत के रूप में उन्होंने शानदार एक्टिंग की है। फिल्म में उनकी बेटी बनी पाकिस्तानी कलाकार सजल अली सचमुच में उनकी बेटी जैसी ही लगती है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने भी प्राइवेट डिटेक्टिव डी.के. के रूप में अच्छा अभिनय किया है और क्राइम ब्रांच के अधिकारी बने अक्षय खन्ना ने भी अपने रोल के साथ न्याय किया है। बदले की कहानी पर बनी हुई फिल्में हिन्दी के दर्शक हमेशा से पसंद करते आए है। यह फिल्म भी दर्शकों को पसंद आएगी।

श्रीदेवी को केन्द्रीय भूमिका देने के लिए उन्हें किशोर उम्र की बेटी की मां के रूप में स्थापित किया गया है, जो स्कूल टीचर है और स्कूल में अपने सख्त व्यवहार के कारण नापसंद भी की जाती है। बेटी उससे इतनी नफरत करती है कि स्कूल के दूसरे बच्चों की तरह अपनी मां को मैम ही कहती है, जबकि उसकी मां चाहती है कि बिटियां उसे भी मां या मॉम ही कहें। फिल्म के अंत में भारी क्लाइमेक्स के बीच एक्शन से भरे दृश्य में बेटी अपनी मां को मॉम कहती है और उसी के बाद जड़वत बनी मां अपनी बेटी के अपराधी को गोली मार देती हैं।

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फॉर्मूला फिल्मों का सारा मसाला फिल्म में है। उच्च मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी, मां-बेटी का टकराव, किशोरवय बच्चों का भटकना, वेलेंटाइन्स-डे, फॉर्म हाउस, पार्टी, शराब, नशा, बलात्कार, बिगड़े परिवार के बच्चे, कानून को अपने हाथ में लेना, किशोरवय लड़की से बलात्कार और उसके बाद उसकी हत्या की कोशिश, पुलिस, क्राइम ब्रांच, प्राइवेट डिटेक्टिव, फास्ट ट्रैक कोर्ट, न्याय की गुहार, न्याय नहीं मिलना, कानून अपने हाथ में लेना, पीड़ित परिवार द्वारा अपराधी को खुद सजा देने की कोशिश के वक्त बीच में पुलिस का आना, ऐश्वर्या राय की जज्बा में मां जैसी भूमिका में श्रीदेवी का एक्शन, एक-एक करके चार अपराधियों में से तीन को अपने हाथों सजा देना और अंत भला तो सब भला की दर्ज पर बेटी का अपनी मां को मैम की जगह मां कहना। इसी के बीच नवाजुद्दीन सिद्दीकी का अभिनय और ए.आर. रहमान का संगीत थोड़ा सुकून दे जाता है।

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भोलेनाथ पर अटूट भरोसा करने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी से जब श्रीदेवी कहती है कि भगवान हर जगह नहीं होता, तो जवाब में नवाजुद्दीन कहते है कि हां, मालूम है भगवान हर जगह नहीं होते, इसीलिए उन्होंने मां को बनाया हैं। भारी दुविधा में फंसी श्रीदेवी कानून को अपने हाथ में लेकर गलत काम करने जाती है, तब नवाजुद्दीन उन्हें रोकने की कोशिश करते हैं और वे कहती है कि अगर मैंने कुछ नहीं किया तो यह ‘बहुत गलत’ होगा। अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। अब फिल्म है और श्रीदेवी के पति ने बनाई है, तो वे उसमें कुछ भी कर सकती हैं।

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मध्यांतर के पहले मां-बेटी के संबंधों को लेकर मार्मिक चित्रण किया गया है। बड़े शहरों के फॉर्म हाउस में होने वाली पार्टी में एक लड़का कहता है कि वह लड़की वेलेंटाइन-डे की पार्टी में मजा लूटने नहीं, जागरण करने आई है। कानून के दायरे पर एक संवाद है कि यहां कोई रेप कर सकता है, लेकिन आप रेपिस्ट को थप्पड़ नहीं मार सकते। फिल्म में ऐसे बहुत सारे छोटे-छोटे दृश्य है, जो हमारी आजकल की जिंदगी को दिखाते है, जैसे किशोर उम्र की बेटी अपने पिता से एसएमएस पर बात करती है। पिता का बेटी के प्रति प्रेम और बेटी द्वारा इमोशनल एक्सप्लायटेशन।

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जी समूह इस फिल्म का सहनिर्माता है और जी के चैनल पाकिस्तानी कलाकारों के प्रति अलग रूख दिखाते है, लेकिन इस फिल्म में पाकिस्तान की अभिनेत्री को प्रमुख रोल मिला है। मध्यांतर तक फिल्म का रूख अलग रहता है और मध्यांतर के बाद अलग। निर्देशक ने कई बातें प्रतीक के रूप में दिखाई है, वे मन को छू जाती है।

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