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2018 मीडियाकर्मियों के लिए अच्छा नहीं रहा। खासकर रिपोटर्स के लिए। 2018 में जितनी संख्या में पत्रकारों की हत्या हुई, उतने पत्रकार तो युद्ध की रिपोर्टिंग करते हुए भी नहीं मारे गए। गत 3 साल से मीडिया पर हो रहे हमलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस तरह के हिंसक हमलों के साथ ही मीडिया पर लगने वाले आक्षेपों का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट के अनुसार प्राप्त सूचनाओं को सही माने, तो इस वर्ष 80 से अधिक पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है। इसके अलावा 60 से अधिक पत्रकार बंधक बनाए जा चुके है और करीब 350 पत्रकारों को विभिन्न देशों में हिरासत में रखा गया है। इसके अलावा पत्रकारों के विरुद्ध घृणा फैलाई जा रही है, उनका अपमान भी किया जा रहा है और उन पर तरह-तरह के दबाव डाले जा रहे है। भारत में भी पत्रकारों की हत्या के मामले सामने आए है।

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अमेरिका जैसे देश में सीएनएन के ऑफिस में लोगों ने पाइप बम पार्सल कर दिया। ये पाइप बम जेम्स क्लेपर के नाम से भेजे गए थे। सौभाग्य से यह बम विस्फोट होने के पहले ही जब्त कर लिए गए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रेस के बारे में जिस तरह के भद्दे बयान दिए, वे शर्मनाक कहे जा सकते है। ट्रम्प ने तो मीडिया को ही जनता का दुश्मन साबित कर डाला। ट्रम्प ने पत्रकारों को फेंक न्यूज का मसीहा बताने की हिमाकत भी की और पत्रकारों के सवालों को स्टुपिड कोश्यंस भी कहा। ट्रम्प की प्रेस कांफ्रेंस में सवाल पूछ रहे पत्रकार का माइक छीनने की कोशिश भी हुई। केपिटल गजट नाम के अखबार के कार्यालय पर गोली चालान भी हुआ, जिसमें 5 लोग मारे गए। इसके पहले किसी अखबारों के न्यूज रूम में इस तरह के हमले नहीं होते थे। वाशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार और सउदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या भी इस साल के सबसे खतरनाक अपराधों में है, जो मीडियाकर्मियों के खिलाफ हुए। यह आरोप भी लगा कि यह हत्या सीआईए के निर्देश पर की गई थी। खशोगी की हत्या तब हुई, जब वे सउदी अरब काउंसलेट में घुसे थे। यह घटना स्तंबुर की है। शहजादे मोहम्मद बिन सलमान का नाम भी इस हत्या के आरोपियों में शामिल बताया जाता है। इसके बावजूद ट्रम्प का सपोर्ट शहजादे के साथ बरकरार है। ट्रम्प के अधिकारियों का कहना है कि मामला अमेरिका और सउदी अरब के रिश्तों का है।

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अमेरिकी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब सीएनएन के रिपोर्टर जिम अकोस्टा को व्हॉइट हाउस में घुसने से ही रोक दिया जाए। सीएनएन के तमाम दबाव और सफाई के बाद अकोस्टा के खिलाफ लगाई रोक हटाई गई। भारत में श्रीनगर में संपादक की हत्या और खदान लॉबी द्वारा रिपोर्टर की कुचरकर हत्या के मामले भी दुनिया के सामने आए। भारत में न्यूज चैनल्स पर आर्थिक दबाव इतने ज्यादा है कि वे अपनी बात निष्पक्ष होकर कहने में परेशानी महसूस कर रहे है। एकाधिकारवादी व्यापारिक घरानों ने चैनलों के समूह पर नियंत्रण कर लिया है। इसके अलावा विज्ञापनों के बहाने भी समाचारों पर नियंत्रण करने की प्रवृत्ति काफी बढ़ी है। कुल मिलाकर पत्रकारों की जान और निष्पक्षता के खात्मे के प्रयास 2018 में ज्यादा हुए।

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