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अमेरिकी डायरी के पन्ने (5)

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मार्च के आखिरी दिनों में पूरा वाशिंगटन डीसी ही एक बगीचे की तरह हो जाता है। शहर में लगे चेरी के हजारों पेड़ों पर फूल खिल आते है और फूलों से लदे ये पेड़ एक अलग ही छवि बनाते है। मध्य अप्रैल आते-आते ये पेड़ अलग रूप धारण कर लेते है और इन पर फल आना शुरू होते है। चेरी के ये हजारों पेड़ अलग-अलग रंगों के है। गुलाबी, लाल, सफेद, बैंगनी फूलों से लदे ये पेड़ दुनियाभर के पर्यटकों को अपनी तरफ खींच लेते है। इन्हीं दिनों यहां जापानी फेस्टिवल सकूरा मत्सुरी भी होता है। कई प्रमुख सड़कें बंद कर दी जाती है और उन सड़कों पर जापान के हजारों लोग जमा हो जाते है।

जापानी वस्त्रों का मेला लग जाता है। जापानी खान-पान के स्टॉल खुल जाते है, जापानी संगीत और नृत्य से माहौल त्यौहारमय हो जाता है। कहीं जापानी भाषा में भाषण होते रहते है तो कहीं जापानी युवक-युवतियों की परेड, कहीं फैशन शो, तो कहीं मार्शल आर्ट का प्रदर्शन। कहीं जापानी कला व संस्कृति को प्रदर्शित करती नुमाइशें, तो कहीं जापानी स्मृति चिन्हों के बाजार। जगह-जगह जापानी युवक-युवतियों के नृत्य के लिए मंच सजे होते है। वाशिंगटन डीसी के ठीक बीच से बहती हुई पोटोमेक नदी के किनारों पर चेरी के इन वृक्षों की खूबसूरती देखती ही बनती है। सबसे पहले चेरी के इन वृक्षों को रोपने का काम पोटोमेक नदी के किनारे ही किया गया। आज भी पोटोमेक के किनारे-किनारे चेरी के इन वृक्षों के साथ-साथ टहलना अद्भुत अनुभव देता है।

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दूर-दूर से जापानी लोग इस समारोह में आते है। ऐसा लगता है मानो हम वाशिंगटन डीसी में न होकर जापान के किसी शहर में जश्न मना रहे हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस दिन जापानी फैस्टिवल मनाया जाता है वह और उसके आसपास के दिन ‘पीक ब्लूम’ के दिन होते हैं। पीक ब्लूम के बाद चेरी के पेड़ों से फूल झड़ना शुरू हो जाते है।

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वाशिंगटन डीसी में कहीं भी जाए, ऐसे शानदार चेरी के वृक्ष कतारबंद नजर आते है। पूरा माहौल रंगीन हो जाता है। हमारे देश में जैसे होली के पहले पलाश के फूल जंगल में नजर आते है। पलाश के पेड़ों पर लाल फूलों की मात्रा सीमित होती है, लेकिन चेरी के पेड़ पर पत्ते नजर नहीं आते केवल फूल, फूल और फूल। चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल और जापानी फेस्टिवल मिलकर वाशिंगटन डीसी को एक नया ही रूप दे देते है।

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वाशिंगटन डीसी के ये चेरी के पेड़ जापान और अमेरिका की दोस्ती के प्रतीक है। जापान ने करीब 50 हजार पौधे अमेरिका को समय-समय पर उपहार में दिए और उनकी देखरेख करने का तरीका भी बताया। करीब सवा सौ साल पहले इसकी अनौपचारिक शुरूआत हुई थी, लेकिन औपचारिक शुरूआत 1910 में हुई। जब 2000 पौधे जापान की तरफ से भेजे गए। 1912 में ऐसे तीन हजार पौधे और भेजे गए। धीरे-धीरे करके करीब 50 हजार पौधे अमेरिका को उपहार में दिए गए जो आज बढ़कर कई लाख हो गए। इसके बदले अमेरिका ने भी अपने देश के अनेक पेड़-पौधे और वनस्पतियां जापान को उपहार में दी। बरसों बरस वाशिंगटन में किसी भी प्रमुख समारोह में चेरी के पौधे रोपने का कार्य किया जाता रहा।

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यूएसए की राजधानी होने के नाते वाशिंगटन डीसी में वैसे ही व्यवस्था बड़ी चाक-चौबंद होती है। चेरी ब्लॉसम और जापानी फेस्टिवल के दौरान तो यह और भी मजबूूत नजर आती है। किसी की क्या मजाल जो नियमों की अनदेखी कर दे। मेट्रो ट्रेन, बस और कारों में जापानी परिधानों में सजे जापानी नागरिक अलग ही नजर आते है। जापानी नागरिक आम अमेरिकियों से अलग है। वे आमतौर पर दुबले-पतले और कम ऊंचाई के होते है। बोलते इतना धीमे है कि आपको लगे कि वह फुस-फुसा रहे है। जापानी फेस्टिवल में सुबह आठ-साढ़े आठ बजे से ही भीड़ इकट्ठा होना शुरू होती है। मुख्य कार्यक्रम तीन बजे तक चलते है और उसके बाद भीड़ छंटने लगती है। वैसे ये कार्यक्रम शाम 6 बजे तक चलते है। इस दौरान लोग वाशिंगटन के प्रमुख स्थानों पर भी घूमने चले आते है। इसलिए हर जगह भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। वैसे भी वाशिंगटन डीसी संग्रहालयों, बगीचों और ऐतिहासिक इमारतों का शहर है। सभी प्रमुख सरकारी कार्यालय यहां है। व्हॉइट हाऊस भी इसी शहर में पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना रहता है।

जापानी फेस्टिवल की विचित्र बात यह लगी कि स्ट्रीट फेस्टिवल होने के बावजूद सड़कें बंद करके इस कार्यक्रम के लिए टिकिट बेचे जाते है। 20 डॉलर का एक टिकिट। तीन बजे के बाद यहीं टिकिट 10 डॉलर का हो जाता है। मेले में खाने-पीने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के पैसे अलग। वाशिंगटन में पार्किंग खासी महंगी है और मेट्रो ट्रेन हमारी दिल्ली की मेट्रो की तुलना में कई गुना महंगी और सुविधाहीन है। मेट्रो के सामान्य स्टेशनों पर न तो बैठने के लिए बेंच है, न रेस्ट रूम की सुविधा। खाने-पीने की स्टॉल भी कुछ एक स्टेशनों पर एक सीमित क्षेत्र में है। दिल्ली मेट्रो में यात्रियों को जानकारी देने की जो व्यवस्था है वैसी व्यवस्था वहां नहीं है। न तो ढंग से इंडिकेटर लगाए गए है और ना ही प्रॉपर अनाउंसमेंट होता है। मेट्रो ट्रेन में कर्मचारी भी गिने-चुने ही होते है। टिकिट खरीदना हो तो ऑटोमेटेड वेंडिंग मशीन से खरीदो। उसी टिकिट को मशीन में डालो और स्टेशन पर जाने का दरवाजा खुल जाता है। जापानी फेस्टिवल जैसे मौके पर भी वहां यात्रियों के लिए कोई अतिरिक्त सुविधा नजर नहीं आई। बड़ी संख्या में यात्री मदद के लिए यहां-वहां भटकते नजर आते है। वाशिंगटन की मेट्रो देखने के बाद यह बात दावे से कही जा सकती है कि हमारी दिल्ली या कोलकाता की मेट्रो ट्रेन वाशिंगटन डीसी की मेट्रो की तुलना में बहुत सस्ती, सुविधाजनक और आधुनिक है।

वाशिंगटन डीसी में भी लोग घरों से बाहर निकलने के पहले मौसम की जानकारी लेना नहीं भूलते। आमतौर पर आकाश खुला नहीं होता और जिस दिन बादल न हो उस दिन वहां के लोग उत्सव के मूड में आ जाते है। भारत में तो केवल बरसात के दिनों में ही बादल होते है। वहां जिस दिन धूप खिल जाए, लोगों के चेहरे खिल उठते है। अगर लगातार धूप न खिले तो उससे लोगों में मानसिक अवसाद की स्थिति पैदा होने लगती है।

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