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अगर आप बाइकर हैं, बाइकिंग का शौक रखते हैं और  हिमालय की वादियां आपको लुभाती हैं तो यह फिल्म ज़रूर देखें।  मज़ा आ जाएगा। वरना चार खूबसूरत महिलाओं को ब्रूम ब्रूम करते बाइक दौड़ाते हुए देखना भी बुरा नहीं।

क्या फिल्म का भी मेल और फीमेल वर्जन होता है? यह फिल्म  देखकर लगता है कि होता है भाई ! गत नवंबर में राजश्री की फिल्म ऊंचाई आई थी, जिसमें चार बुजुर्गों (अमिताभ, डैनी, अनुपम खेर और बोमन ईरानी) का लक्ष्य एवरेस्ट के बेस कैम्प तक पहुंचने का था। 'धक धक' उसी का फीमेल वर्जन लगती है।

फिल्म में चार सुन्दर महिलाएं दिल्ली से मोटर साइकल पर लद्दाख की यात्रा पर बाइकिंग करने निकल पड़ती हैं। धक धक करती एक साथ चार मोटर साइकलों के इंजन धड़धड़ाते हैं और वे सड़क की बाधाओं को चीरती हुई निकलती हैं तब लगता है मानो उन चारों के पंख निकल आये हैं।

दिल तो हम सब का हमेशा ही धड़कता रहता है लेकिन हम 'धक धक' की आवाज़ कम ही सुन पाते है। धक धक फिल्म में चार महिला किरदार अगल अलग हालात में अपने दिल की धड़कन सुनती हैं और फटफटी (मोटर साइकल) लेकर निकल पड़ती हैं दिल्ली से लद्दाख के 18 हजार फ़ीट ऊँचे खारदुंग ला दर्रे की यात्रा पर। 

करीब 970 किलोमीटर की यह यात्रा एक्सप्रेस वे से कच्ची सड़क होते हुए, पहाड़ों के बीच और नदियों को पार करते हुए हवाओं से अटखेलियां करतीं यात्रा है, जिसमें चारों महिला बाइकर के सामने आनेवाली हर बाधा को वे पार कर जाती हैं। 

रास्ते  में मौसम की चुनौती है, भू स्खलन है, नदियों में बाढ़ का पानी है, बर्फ भी है, वे गिरती हैं, गाड़ी पंचर होती है, पुलिस के मामले में फंसती हैं, लेकिन अपनी सूझ बूझ से वे हर बाधा  पार कर लेती हैं।

चारों बाइक-सुंदरियों में एक हिन्दू है, एक मुस्लिम, एक सिख और एक ईसाई। निर्देशक ने इसे अलग से रेखांकित नहीं किया है। जब यात्रा में वे संकट में पड़ती हैं तक कोई अनजान ढाबेवाला, कोई अनजान ट्रक ड्राइवर, कोई अनजान विदेशी पर्यटक उनकी सहायता करता है।  

ये पात्र पुरुष हैं। इसे भी निर्देशक ने अलग से रेखांकित नहीं किया है, जिसका गहरा अर्थ यह है कि हम भारत के लोग किसी भी मजहब या जेंडर के हों, अमनपसंद और सहयोगी स्वभाव के हैं और एक दूसरे के लिए ऑक्सीजन की तरह हैं। 

हम सब के अपने अपने सपने हैं और वे किसी और के सहयोग से ही पूरे हो सकते हैं। फिल्म की चारों महिला पात्र अलग अलग उम्र, अलग पेशे और अलग पृष्ठभूमि की हैं, सभी उच्च आय वर्ग की हैं, वरना ऐसा एडवेंचर कैसे अफोर्ड कर पातीं?
 
फिल्म ऐसी बनी है कि मानो दर्शक भी उनके साथ ही लद्दाख की यात्रा पर निकल गया हो। 

रत्ना पाठक शाह, दीया मिर्ज़ा, फातिमा सना शेख और संजना सांघी ने दमदार एक्टिंग की है।  हिमालय की खूबसूरत वादियों से गुजरते हुए वहां के दृश्य मन लुभाते हैं और राह की बाधाएं रोमांचित करती हैं। फिल्म की निर्माता हैं तापसी पन्नू और वायकॉम। 

तापसी पन्नू खुद दमदार अभिनेत्री हैं लेकिन उन्होंने एक्टिंग करने का लालच इसमें नहीं दिखाया है। फिल्म के लेखक और निर्देशक तरुण डुडेजा ने खूब मेहनत की है लेकिन कहीं कहीं उनकी पकड़ ढीली हो गई है।  

मनोरंजक दृश्य भी हैं, लेकिन कहीं कहीं कहानी को खींचा गया है। अंग्रेजों के लिए महाअपशकुनी माने जाने वाले दिन यानी शुक्रवार वाली 13 तारीख  को लगी फिल्म धक धक ने शकुन अपशकुन की दीवार को तोड़ा है। फिर श्राध्द पक्ष और क्रिकेट का बुखार !

-डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

 

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