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बच्चों के साथ देखने लायक है जंगल बुक। थ्री डी और अपनी मातृभाषा में इसे देखने का मज़ा ही ख़ास है (भारत में यह फिल्म अंग्रेजी के अलावा हिन्दी, तमिल और तेलुगू में लगी है). रुडयार्ड किपलिंग की कहानी के अनुसार इस फिल्म का हीरो बालक मोगली मध्यप्रदेश के बालाघाट-सिवनी जिले के पेंच जंगल का रहनेवाला था। इसलिए इस फिल्म का मुख्य कलाकार भारतीय मूल का ( न्यू यॉर्क निवासी) बालक नील सेठी है. 2000 बच्चों में से नील को इस रोल के लिए चुना गया था।

कहानी में जंगल में रहनेवाले जानवर पात्रों के नाम भी भारतीय हैं इसलिए जंगल को भारतीय जंगल के रूप में ( जहाँ मंदिर भी था) दिखने की कोशिश की है। हिन्दी में यह फिल्म इसलिए भी अच्छी लगती है कि शेर खान के रूप में नाना पाटेकर, बघीरा के रूप में ओम पुरी, भालू बबलू की आवाज़ इरफान, बालक को अपनानेवाली मादा भेड़िये रक्षा की आवाज़ शेफाली शाह और एनाकोंडा जैसी अजगर की आवाज़ प्रियंका चोपड़ा ने दी है। इसे देखते हुए लगता है कि आप बॉलीवुड की ही कोई शानदार फिल्म देख रहे हैं।

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इस फिल्म में हर बात बेहद ख़ास तरीके से दिखाई गई है. निर्देशन, कहानी, एनीमेशन, अभिनय, डबिंग, हर चीज इतनी ख़ास है कि इसे देखना अलग अनुभव है. जंगल के जानवर और इंसान का बच्चा एक भाषा में भूलते और समझते हैं. भेड़ियों के बीच पल रहा नील सेठी शेर खान के लिए इंसान का पिल्ला है, जो जंगल के लिए इसलिए बुरा है कि बड़ा होकर वह भी बनेगा तो इंसान ही। भेड़ियों की बात यह है कि वे जुगाड़ नहीं करते। शेर खान इंसान के पिल्ले को मरना चाहता है और उसे बचने के लिए आते हैं -- भेड़िये, तेंदुआ, भालू और अन्य प्राणी। खलनायक बने शेर खान नामक बाघ का अंत मोगली के हाथों अग्निफूल यानी आग से होता है।

इस फिल्म को फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने यू / ए सर्टिफिकेट दिया है। जिसका अर्थ है कि बच्चे इसे अपने अभिभावकों के साथ देखने जा सकते हैं. अमेरिका में भी इसे यही प्रमाण मिला है। तर्क दिया गया है कि बच्चे इस फिल्म को देखते वक़्त डर सकते हैं ! जंगल की कहानी है तो डर कैसा? फिल्म के साथ अन्याय है यह।

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इस फिल्म को देखते समय 1993 में दूरदर्शन पर रविवार की सुबह आनेवाले धारावाहिक की याद आ जाती है, जिसमें ''जंगल जंगल बात चली है, पता चला है; चड्डी पहनके फूल खिला है" टाइटल सांग की तरह बजता था. करीब 49 साल पहले भी इस कहानी पर हॉलीवुड में फिल्म बन चुकी है। इस फिल्म के लेखक रुडयार्ड किपलिंग को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। वे भारत में जन्मे। उनके बचपन के 6 साल भारत में बीते और फिर वे अपने देश चले गए. बाद में वे फिर कई साल भारत में मुंबई और इलाहाबाद में रहे। उन्होंने इलाहाबाद में द पायोनियर अखबार में काम भी किया था. मोगली की तरह सिवनी के संतबावडी गांव में सन 1831 में एक बालक के पकड़े जाने की बात भी कही जाती है जो जंगली भेडिय़ों के साथ गुफाओं में रहता था। इस तरह की किवदंति आज भी प्रचलित है।

इस फिल्म के निर्देशक आयरन मैं बनाने वाले जॉन फेवरू हैं. भालू बबलू की बोली मस्त पंजाबी स्टाइल की है जिसे इरफान ने और भी दिलचस्प बना दिया है। फिल्म के कलाकारों में मोगली और उसके पिता के ही इंसान हैं, बाकी सभी एनिमेटेड जानवर हैं -- बाघ, भेड़िये, हाथी, भालू, बन्दर, साही, चूहे, अजगर, अबाबील, तोते, मगरमच्छ, कौवे, नीलकंठ, सभी जीवंत लगते हैं। जंगल का वर्णन बहुत सुन्दर है।

08 April 2016   02.45pm

 

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