भारत का नाम एक ही होना चाहिए- भारत। चाहे अंग्रेज़ी में लिखो-बोलो चाहे हिन्दी में। जैसे जापान का पुराना नाम निप्पो था, उसे जापान कर दिया गया। डच ईस्ट इंडीज़ का नाम इंडोनेशिया कर दिया गया।स्याम का नाम थाईलैंड हो गया, संयुक्त अरब गणराज्य का नाम इजिप्ट , पर्शिया का नाम ईरान, न्यासालैंड का मलावी, अबीसीनिया का नाम इथियोपिया , डच गुयाना का सुरीनाम , गोल्ड कोस्ट का घाना, दक्षिण पश्चिमी अफ़्रीका का नामीबिया, आइवरी कोस्ट को कोट डी आइवरी, कांगो का जायरे, फारसोमा का ताईवान, हॉलैंड का नीदरलैंड, मलाया का मलेशिया और हमारे पड़ोस का बर्मा म्यांमार तथा सीलोन का नाम श्रीलंका कर दिया गया है। जब पूरी दुनिया के देशों के नाम बदल सकते हैं तो भारत का भी बदल सकता है। भारत को भारत कहने में क्या संकोच करना ?
जब भारत का संविधान तैयार किया जा रहा था तब भारत, हिन्दुस्तान, भारतदेश, भारतवर्ष आदि नाम रखने पर चर्चा हुई थी। तब नाम को लेखक संविधान सभा में जोरदार बहस हुई थी। इस बहस में कहा गया था कि भारत नाम किसी एक धर्म को लेकर नहीं है। संविधान सभा की बैठक में सदस्य सेठ गोविन्द दास ने वेद, महाभारत, पुराण आदि का हवाला देकर यह साबित करने की कोशिश की थी कि देश को हमेशा से भारत के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में देश ने 'भारत माता की जय' के ही नारे लगाए हैं, इसलिए इससे बेहतर नाम नहीं हो सकता। सेठ गोविन्द दास ने 'इंडिया दैट इज़ भारत' के बजाय 'भारत नोन एस इंडिया आल्सो इन फॉरेन कंट्रीज़' यानी भारत विदेश में इंडिया के नाम से भी जाना जाता है, लिखने का प्रस्ताव रखा था।
लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक के अनुसार हमारे देश का नाम भारत रखा गया और यह स्पष्ट शब्दों में कहा गया था कि ‘इंडिया दैट इज भारत शैल बी यूनियन ऑफ स्टेट्स’ यानी इंडिया जो कि भारत है वह राज्यों का संघ होगा। भारतीय संविधान निर्माता किसी भी धार्मिक आधार पर देश की अस्मिता का सृजन करने के पक्ष में नहीं थे। भारत विश्व का सबसे बड़ा कार्यकारी लोकतंत्र है और यहाँ प्रमुख रूप से आठ धर्म रहते हैं - हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बुद्ध, जैन, पारसी एवं बहाई। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और विभिन्न धर्म को मानने वाले एक साथ बसते हैं।
संविधान सभा के सदस्यों में शिब्बन लाल सक्सेना, कमलापति त्रिपाठी, हरगोविन्द पंत, मौलाना हसरत मोहानी में भी भारत नाम को ही वरीयता देने का समर्थन किया था। हसरत मोहानी में संविधान की प्रस्तावना को लेकर भी लिखा था कि प्रस्तावना में 'वी द पीपल ऑफ इंडिया' लिखा है इसमें भारत नाम का जिक्र नहीं है। इस पर कमलापति त्रिपाठी और आम्बेडकर में बहसबाज़ी भी हुई थी। बाद में संविधान सभा में नाम को लेकर वोटिंग हुई थी जिसमें 51 सदस्यों ने 'इंडिया दैट इज़ भारत' को स्वीकार किया था और 38 सदस्य इसके पक्ष में नहीं थे।
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि भारत का नाम केवल भारत लिखा जाए, इंडिया नहीं। सुप्रीम कोर्ट के इस याचिका के बारे में बहुत गंभीरता नहीं दिखाई तब याचिकाकर्ता के निवेदन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस याचिका पर संबंधित मंत्रालय विचार करे। जबकि पहले याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की थी कि सुप्रीम कोर्ट केन्द्र सरकार को आदेश दे कि वह भारत का नाम केवल भारत ही लिखे- कहीं इंडिया और कहीं भारत नहीं।
इस पर भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एस ए बोबडे की बेंच ने साफ कह दिया कि हमारे संविधान में स्पष्ट लिखा है कि 'इंडिया जो कि भारत है'। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इंडिया ग्रीक शब्द इंडिका से आया है अतः इस नाम को हटाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया कि प्रतिवेदन के तौर पर याचिका कोई संबंधित मंत्रालय के पास भेजने की इजाजत दी जाए। याचिका में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद एक के तहत नाम है, इसमें भारत या हिन्दुस्तान दर्ज होना चाहिए ताकि भारत की पहचान सुनिश्चित रहे और देश का नाम एक ही रहे।
आठ साल पहले 2012 में सूचना के अधिकार के तहत उर्वशी शर्मा नामक एक नागरिक ने पूछा था कि क्या सरकारी तौर पर भारत का नाम क्या है ? इंडिया या भारत ? यह आरटीआई प्रधानमंत्री कार्याल से गृह विभाग, वहां से संस्कृति मंत्रालय और फिर वहां से राष्ट्रीय अभिलेखागार तक घूमती रही। कोई जवाब नहीं मिला।
चित्र संविधान सभा की पहली बैठक का, जो 9 दिसम्बर 1946 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन हॉल (संसद का सेन्ट्रल हॉल) में हुई थी।
03 June 2020