आर्थिक बदहाली झेल रहे श्रीलंका के राष्ट्रपति ने 1 अप्रैल की रात पूरे देश में इमरजेंसी लगाने की घोषणा कर दी और यह कोई अप्रैल फूल का मजाक नहीं था। श्रीलंका में आपातकाल लागू है और कैबिनेट इस्तीफ़ा दे चुकी है। वास्तव में श्रीलंका तबाही के कगार पर हैं। चीन पिछले 8 साल से श्रीलंका को ख्वाब दिखा रहा है कि वह श्रीलंका को दुबई, हांगकांग या मोनाको की तरह बना देगा, लेकिन चीन ने श्रीलंका को भिखारी राष्ट्र बना दिया। श्रीलंका के नेताओं को लगता था कि चीन की गोद में बैठकर वे विकास कर लेंगे और इसी लालच में वे अपनी आजादी चीन को धीरे-धीरे सौंपते गए। चीन ने कोलम्बो के पास हाईटेक सिटी बनाने का ख्वाब दिखाया और कहा कि इस हाईटेक सिटी को दुबई की तर्ज पर विकसित किया जाएगा, जिससे श्रीलंका मालामाल हो जाएगा। बदले में चीन ने श्रीलंका के कोलम्बो के पास एक बंदरगाह 99 साल के लिए लीज पर ले लिया। उसमें यह शर्त भी जोड़ दी कि अगर चीन चाहेगा, तो यह लीज 99 साल के लिए और बढ़ सकती हैं। इसके साथ ही चीन ने कोलम्बो के पास अपना सामरिक ठिकाना बनाने की अनुमति भी ले ली और वहां अपने जहाजी बेड़े और पनडुब्बियां तैनात कर दी, ताकि वह भारत पर निगाह रख सकें।
श्रीलंका की सरकार कह रही है कि उसकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर केन्द्रित हैं। कोरोना के कारण पर्यटक नहीं आए और इस कारण अर्थव्यवस्था डूब गई। भारत ने श्रीलंका की पर्याप्त मदद की। संकट के दौर से बचाने के लिए भारत ने 150 करोड़ डॉलर की बड़ी मदद उसे की, लेकिन वह पैसा कहां गया, यह किसी को नहीं पता। कहा जा रहा है कि श्रीलंका में गोटाबाया राजपक्षे की सरकार ने इस मदद का फायदा आम जनता को पहुंचाने के बजाय विदेशों में अपने कालेधन को बढ़ाने के लिए किया। इसीलिए पानी सर के ऊपर से गुजरने लगा। लोगों ने राष्ट्रपति भवन का घेराव किया, आगजनी की और नतीजे में राष्ट्रपति ने इमरजेंसी लगा दी।
श्रीलंका की बर्बादी का जिम्मा अगर किसी का है, तो वह राजपक्षे परिवार का ही है। राष्ट्रपति कोटाबाया राजपक्षे के पड़े भाई महिन्दा राजपक्षे श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं। इसके पहले वे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे। उनका छोटा भाई बासिल श्रीलंका का वित्तमंत्री और बड़ा भाई चमल कृषि मंत्री बन गया था । कोटाबाया का भतीजा नमल वहां का खेल मंत्री था । यानी पूरी सरकार एक कुनबे में ही सिमट गई थी दिखावे के लिए वहां लोकतंत्र, लेकिन एक परिवार का राज! ताजा सूचना अनुसार अब कैबिनेट का इस्तीफ़ा हो गया है।
चीन ने श्रीलंका को जो सपने दिखाए, उसमें वहां की सरकार फंसती चली गई। कर्ज पर कर्ज लेती गई और उसका ब्याज चुकाने की औकात भी नहीं बची। अगस्त 2021 में वहां आर्थिक आपातकाल लगा दिया गया था, क्योंकि वहां की विदेशी मुद्रा का भंडार बुरी तरह गिर गया। विदेशी कर्ज पांच साल में 30 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ा और कर्ज इतना बढ़ा कि वह जीडीपी के 41 प्रतिशत के बराबर हो गया। अब श्रीलंका को इस साल 700 करोड़ डॉलर से ज्यादा का विदेशी कर्ज किश्त के रूप में चुकाना हैं। उसका विदेशी मुद्रा भण्डार खाली हैं और महंगाई बेलगाम हो चुकी हैं। चाय का एक कप 200-200 रूपए में बिक रहा हैं, क्योंकि दूध और शक्कर के दाम कल्पना से भी ज्यादा अधिक हो गए हैं। पेट्रोल-डीजल, खाने-पीने की चीजें, आवास आदि बहुत महंगे हो गए है। पर्यटकों के नहीं आने से तो अर्थव्यवस्था डूबी ही है, जो श्रीलंकाई नागरिक विदेश में नौकरी कर रहे हैं, वे भी डॉलर नहीं भेज रहे हैं।
खेती के लिए क्रांतिकारी फैसले लेने के चक्कर में श्रीलंका ने रासायनिक उर्वरकों पर रोक लगा दी थी। किसानों को आर्गेनिक खाद खरीदना पड़ रही थी। आर्गेनिक खाद की कमी पड़ी, तो उसके दाम भी बेतहाशा बढ़ गए। खेती की दुर्दशा का असर खाने-पीने की चीजों की महंगाई पर पड़ा। श्रीलंका चीन से कर्ज लेता चला गया। चीन ने उसे झुनझुना दिखाया था कि वह उसे विदेशी कर्जे की तुलना में सस्ता कर्जा देगा। चीन की सरकारी बैंकों ने श्रीलंका को कर्जा दिया और हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा जमा लिया। श्रीलंका को इस बंदरगाह की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन चीन ने कर्ज दे-देकर यह बंदरगाह बनवाया था। श्रीलंका के लिए यह बंदरगाह एक फिजूलखर्ची थी, जिसका श्रीलंका के लोगों के लिए कोई फायदा नहीं।
श्रीलंका की आर्थिक बदहाली इतनी बड़ी कि उसने अपने भू-भाग को इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए दूसरे देशों को लीज पर देना शुरू कर दिया। इस तरह वह कर्ज के जाल में फंसता चला गया। चीन ने इंफ्रा प्रोजेक्ट्स के लिए इतना ही धन दिया था कि वह प्रोजेक्ट शुरू तो हो जाए, लेकिन पूरे नहीं हो पाए। फिर चीन ने श्रीलंका पर दबाव बनाना शुरू किया कि ये प्रोजेक्ट्स उसके हवाले कर दिए जाएं।
चीन जब भी श्रीलंका को कर्ज देता है, तो वह किसी बड़े सूदखोर की तरह शर्ते लगा देता है कि उस धन का उपयोग कहां किया जाएगा। श्रीलंका कर्ज ले लेता हैं, लेकिन यह उसके हाथ में नहीं है कि उस कर्ज का उपयोग किस मद में करें।
भारत समय-समय पर श्रीलंका को चेतावनी देता रहा है कि वह अपनी क्षमता से ज्यादा कर्ज न लें और न ही चीन के जाल में फंसे। श्रीलंका को उम्मीद थी कि वह चीन के कर्ज के बहाने भारत से ब्लैकमेल कर पाएगा। वह भारत से कहेगा कि चीन इतनी मदद कर रहा है, तो भारत क्यों नहीं आगे आता?
भारत को चिढ़ाने के लिए श्रीलंका सरकार ने कोलम्बो का ईस्टर्न कार्बो टर्मिनल बनाने का ठेका चीन की सरकारी कंपनी को दे दिया, जिसका नाम चायना हार्बर इंजीनियरिंग हैं। भारत बार-बार चेतावनी देता रहा कि पड़ोसी देशों से मदद लेना, तो सही है, लेकिन श्रीलंका अपनी सुरक्षा के साथ समझौता न करें।
पिछले सप्ताह ही भारत के विदेश मंत्री श्रीलंका गए थे। उन्होंने श्रीलंका के वित्तमंत्री को हालात सुधारने के लिए भारत की चिंता और मदद का जिक्र किया था। यह भी कहा था कि भारत 50 करोड़ डॉलर की मदद तत्काल दे रहा हैं, ताकि वह इंडियन ऑयल कार्पोरेशन से तेल खरीदकर अपनी तेल की जरूरतें पूरी कर लें। भारत ने इसके बदले में किसी तरह की लीज आदि की बात भी नहीं कही। भारतीय विदेश मंत्री ने यह भी कहा था कि भारत हमेशा श्रीलंका की मदद के लिए तैयार हैं। श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे से मुलाकात के बाद भारतीय विदेश मंत्री ने कहा था कि हमारी नीति ही है पड़ोसी प्रथम यानी नेबर फर्स्ट। इसीलिए हम हमेशा बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, नेपाल, भूटान आदि देशों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं। मौका आने पर हम अपने संसाधनों से पड़ोसी देशों को संकट से उबारते हैं।
भारत के आगे बढ़ने से चीन को झटका लगा हैं। भारत ने श्रीलंका में तीन छोटे द्वीपों पर हाईब्रिड एनर्जी के प्रोजेक्ट शुरू करने का समझौता किया है। श्रीलंका पहले ये तीनों प्रोजेक्ट चीन को दे रहा था। जनवरी 2021 में चीन की कंपनी सिनोसार टेकविन नैनातवु, नेदुन्तिवु और अनालाईतिवु पर हाइब्रिड पॉवर प्रोजेक्ट लगाने का समझौता कर चुकी थी। उस समझौते के बाद से ही भारत की निगाह इन प्रोजेक्ट्स पर थी। भारत के प्रभाव में आकर श्रीलंका ने वह प्रोजेक्ट भारत को देने का फैसला किया हैं, क्योंकि यह तीनों ही द्वीप भारतीय सीमा से सटे हुए हैं। भारत चीन और दूसरे देशों से श्रीलंका को बचाने के लिए हर तरह से मदद करता रहा हैं। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने कोलम्बो में एक बचाव केन्द्र खोलने के बारे में भी समझौता किया है, ताकि तूफान की सूचनाएं मिलने पर जान, माल की हानि से बचा जा सकें। श्रीलंका की नौसेना को भारत ने एक तैरता हुआ बंदरगाह और दो छोटे विमान भी मदद के लिए दिए हैं। भारत की मदद श्रीलंका के लिए इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि बदले में भारत किसी ऐसी चीज की मांग नहीं कर रहा, जो श्रीलंका के लिए खतरा बनें। न चाहते हुए भी श्रीलंका को खतरे से बचाना भारत की जवाबदारी बनती जा रही हैं, क्योंकि यही हमारे दीर्घकालिक हित में हैं।