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भारत के दो पड़ोसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका परेशानी में हैं। दोनों ही देशों की आर्थिक हालत बेहद खराब हो चुकी हैं। दोनों ही देश अपने यहां हो रही उथल-पुथल के लिए दूसरों को जिम्मेदार बता रहे हैं। पाकिस्तान की उथल-पुथल के लिए अमेरिका को जिम्मेदार बताया जा रहा है और श्रीलंका की बदहाली के लिए तो चीन जिम्मेदार है ही।

पाकिस्तान के बारे में यह बात कहीं जा सकती है कि जब भी वहां की सरकार पर संकट आता है, तब पाक प्रधानमंत्री को भारत की याद आती हैं। पाकिस्तान के जितने भी प्रधानमंत्री हुए, उनमें से अधिकांश वहां की जनता के नहीं बल्कि वहां की सेना के प्रतिनिधि रहे हैं। सेना की गोद में बैठकर प्रधानमंत्री बनने के बाद हर ताजा प्रधानमंत्री भारत के खिलाफ बोलने लगता है और जब सेना समर्थन वापस लेने लगती है, तब उस प्रधानमंत्री को लोकतंत्र की याद आती है। जब इमरान खान को अपनी कुर्सी डोलती हुई नजर आई, तब वे भारत की नीतियों की तारीफ करने लगे। वे जानते थे कि इससे सेना नाराज होगी, लेकिन पाकिस्तान की जनता को यह बात पसंद हैं।

अब इमरान खान ने सत्ता से हटाये जाने के मामले में पूरा दोष अमेरिका पर ढोल दिया हैं। रूस ने इस मौके का फायदा उठाया और रूस के ऑफिशियल बयान में यह बात आई कि पाकिस्तान की नेशनल असेंबली का भंग होना और वहां की सरकार गिराने की कोशिश में अमेरिका का दखल शर्मनाक हैं। रूसी प्रवक्ता के अनुसार इमरान खान को रूस से संबंध बनाये रखने और रूस की यात्रा करने की सजा मिली हैं।

इमरान खान ने नेशनल असेंबली भंग करने और फिर से चुनाव कराने की बात कहीं, लेकिन पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने 3 महीने में चुनाव कराने में अपनी असमर्थता बता दी। अब इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी देशभर में प्रदर्शन कर रही हैं। इमरान खान के समर्थकों का कहना है कि इमरान साजिश के शिकार हो गए हैं और उन्हें सत्ता में रहने का पूरा हक है। दूसरी तरफ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता आसिफ अली जरदारी ने कहा है कि अगर विदेशी हाथ होने की बात सही है, तो इमरान खान इसका सबूत दें। विदेशी साजिश के कोई निशान नहीं मिले हैं। पीपीपी के नेता बिलावल भुट्‌टो जरदारी ने कहा कि इमरान को पता नहीं क्या हो गया है, वे हार गए है और जश्न मना रहे हैं।

राजनैतिक अस्थिरता के चलते पाकिस्तान की आर्थिक हालत और ज्यादा बिगड़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने साफ-साफ कहा है कि वह और कर्जा देने की स्थिति में नहीं है। पाकिस्तान का चीन के प्रति रवैया भी अमेरिका को रास नहीं आ रहा। अमेरिका से जुड़े हर वित्तीय संस्थान ने पाकिस्तान को कर्जा देने के लिए ना कर दी हैं।

इमरान खान पर आरोप लगते रहे हैं कि वह अमेरिका विरोधी लॉबी में सक्रिय रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान की ताजपोशी के लिए इमरान खान की सरकार ने अमेरिका को हमेशा भुलावे में रखा। इतना ही नहीं अमेरिका को चिढ़ाने के लिए वह चीन की तरफदारी करने लगा और अमेरिका से दशकों पुराने संबंधों को भुला दिया। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने जिस तरह से तटस्थ रवैया अपनाया, वैसा पाकिस्तान नहीं अपना सकता।

अमेरिका की नाराजगी से पाकिस्तान की बदहाली और बढ़ गई। 1 डॉलर 200 पाकिस्तानी रूपये तक पहुंच गया। पाकिस्तान का फॉरेन रिजर्व घटने लगा। एशियाई देशों में जहां सबसे ज्यादा महंगाई बढ़ रही हैं, उनमें पाकिस्तान दूसरे नंबर पर पहुंच गया।

पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 600 करोड़ डॉलर (1 लाख 20 हजार करोड़ पाकिस्तानी रूपये) का कर्ज चाहता हैं। सैद्धांतिक तौर पर यह कर्ज मंजूर भी हो गया, लेकिन अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष इस भुगतान को टाल रहा हैं। पाकिस्तान की सेना में अमेरिकी हथियारों का बड़ा जखीरा हैं, लेकिन अब पाकिस्तान हथियारों के लिए भी चीन की तरफ मुडता जा रहा हैं। इससे अमेरिका की चिढ़ बढ़ती जा रही हैं। ऐसा नहीं है कि इमरान खान ने सत्ता में बने रहने के लिए अमेरिका की मदद नहीं चाही हैं, लेकिन उसे अमेरिका से कोई मदद नहीं मिली। अमेरिका की नीति हमेशा यह रही है कि पाकिस्तान में जिसकी भी सरकार हैं, वह उसी के साथ रहता हैं। इमरान खान ने अपने कृत्यों से सेना को नाराज कर दिया। इस कारण उनकी सरकार डोलने लगी और अमेरिका को ऐसी सरकार रास नहीं आती, जो खुलकर उसके पक्ष में न बोले। उसे पाकिस्तान के आंतरिक मामलों से या वहां की जनता के हितों से क्या लेना-देना?

पाकिस्तान से मिलता-जुलता हाल ही श्रीलंका का भी हैं। श्रीलंका में एक परिवार का राजनैतिक वर्चस्व रहा। गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति बने और उनके बड़े भाई महिन्दा राजपक्षे प्रधानमंत्री। महिन्दा पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति थे, वो प्रधानमंत्री बन गए। छोटा भाई बासिल वित्त मंत्री और बड़ा भाई चमल कृषि मंत्री बन गया। कोटाबाया का भतीजा नमल खेल मंत्री बन गया। अब वहां की सरकार में शामिल सभी मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया हैं और श्रीलंका में आपातकाल लागू चल रहा हैं। पहले आर्थिक आपातकाल लगाया गया था, लेकिन बाद में पूर्ण आपातकाल थोप दिया गया। जरूरी चीजों की कमी के कारण लोगों का रहना मुश्किल हो गया। चाय का कप 200 रूपये तक का हो गया। दूध और पेट्रोल के दाम आसमान पर पहुंच गए और डॉलर का भंडार समापन की तरफ बढ़ने लगा।

कुछ साल पहले तक श्रीलंका की हालत अच्छी थी। दक्षिण एशिया के देशों में उसे खाता-पीता मूल्क कहा जाता था। पर्यटकों से होने वाली आय अच्छी खासी थी। खेती किसानी भी ठीक-ठाक ही होती थी। जब राजपक्षे परिवार सत्ता पर काबिज हुआ, तो वह बहुत ताकतवर हो गया। एक ही परिवार का कब्जा पूरी सरकार पर था और तो और श्रीलंका के केन्द्रीय बैंक, कोर्ट और इकॉनामी पूरी तरह से राजपक्षे परिवार के हाथों में सौंप दी।

एक खाते-पीते खुशहाल देश के राष्ट्रपति को सनक सवार हुई और उसने जैविक खेती को बढ़ावा देने का फैसला किया। रातों-रात ऐलान किया गया कि आज से रासायनिक खाद की खरीदी-बिक्री और उपयोग प्रतिबंधित रहेगी। खेती के लिए किसी तरह के रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं होगा। अगर किसी ने खेत या बगीचे में केमिकल का उपयोग किया, तो उसे कड़ी से कड़ी सजा देंगे। राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि हम इस फैसले से पीछे नहीं हटेंगे। हमें दुनिया में जैविक खेती का आदर्श पेश करना हैं।

दुर्योग से कोरोना काल आ गया। जैविक खेती में उलझी जनता न तो पर्याप्त फसलें पैदा कर पा रही थी और न ही फलों का उत्पादन ठीक से हो रहा था। कोरोना के कारण पर्यटकों की आवाजाही बंद हो गई। विदेशी मुद्रा मिलना रूक गया। खेती की खराब हालत के कारण इस बदहाली में और इजाफा हो गया। खाद्यान्न का आयात करने वाले व्यापारियों के गोदामों पर सेना ने छापामारी शुरू कर दी। सरकार चाहती थी कि इस तरह छापामारी के बाद खाद्यान्न की कीमतें कम हो जाएगी, लेकिन हुआ उल्टा। लोगों ने खाद्यान्न का आयात करना बंद कर दिया। अब लोगों के पास न खाने को है और न ही बिजली और पेट्रोल डीजल।

श्रीलंका अपनी आर्थिक आजादी को पहले ही चीन के पास गिरवी रख चुका था। चीन ने उसे नए-नए सपने दिखाए। यह भी कहा कि हम कोलम्बो के निकट एक कृत्रिम द्वीप बना देंगे और वहां दुबई या हांगकांग जैसा कारोबार होने लगेगा। चीन ने इसके लिए प्रयास किया, लेकिन पर्यटक तो श्रीलंका से दूर हो चुके थे। चीन की योजना भी फ्लॉप हो गई। कृत्रिम द्वीप के बहाने चीन ने जो निवेश किया था, वह उसकी वसूली के लिए तकादा करने लगा और कर्जा न चुका पाने की स्थिति में चीन ने नए कृत्रिम द्वीप सहित हम्बनटोटा बंदरगाह को अपनी शर्तों पर 99 साल के लिए लीज पर ले लिया। यह भी शर्त लगा दी कि वह चाहेगा, तो यह लीज और 99 साल के लिए बढ़ सकती हैं।

पाकिस्तान के प्रति जिस तरह का रिश्ता भारत का है, वह रिश्ता श्रीलंका के साथ नहीं हैं। भारत ने श्रीलंका में संकट दूर करने के लिए बेल आउट पैकेज बनाया और करीब 150 करोड़ डॉलर की मदद वहां की। साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी भारत ने श्रीलंका को पर्याप्त मदद की हैं। भारत चाहता है कि श्रीलंका चीन के कब्जे से किसी तरह बाहर निकले और लोकतांत्रिक तरीके से वहां की सरकार अपनी भूमिका निभाए।

भारतीय उपमहाद्वीप के दो देशों की बदहाली बहुत से सबक छोड़ जाती हैं। भारत की विदेश नीति की सफलता भी इसी में बताई जा सकती हैं। भारत एक बड़ी और विशाल अर्थव्यवस्था हैं। भारत ने कभी भी अपने आर्थिक संस्थानों का उपयोग राजनैतिक लक्ष्यों के लिए नहीं किया। ताजा हालात इस बात का संकेत है कि भारत को अपनी आर्थिक मजबूती का उपयोग कूटनीतिक हथियार के रूप में नहीं करना चाहिए। हम तभी और खुशहाल होंगे, जब हमारे पड़ोसी हम पर निर्भर नहीं होंगे। पड़ोसी मुल्कों की असफलता भारत क्यों भुगते?

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