भारत के एक प्रमुख आर्थिक अखबार 'इकॉनामिक टाइम्स' ने खबर दी है कि दिसम्बर 2021 तक भारत में 5 करोड़ 30 लाख लोग बेरोजगार हैं। इनमें से साढ़े तीन करोड़ ऐसे लोग हैं, जो बड़ी बेताबी से नौकरी की तलाश कर रहे हैं। इनमें भी 80 लाख युवतियां हैं, जो कोई भी नौकरी करने के लिए तैयार हैं। करीब दो करोड़ लोग ऐसे हैं जो रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। विश्व बैंक ने कोरोना काल में वैश्विक रोजगार दर 55 प्रतिशत आंकी थी, जबकि भारत में रोजगार का प्रतिशत 43 ही था। अगर भारत को ग्लोबल स्टैण्डर्ड तक पहुंचना है तो उसे कम से कम 18 करोड़ 75 लाख लोगों को रोजगार देना होगा।
जब भी सरकारी विभागों में नौकरी के लिए विज्ञापन आते हैं, तब आवश्यक योग्यता से अधिक पढ़े-लिखे युवक आवेदन करने में पीछे नहीं हटते। क्लर्क की नौकरी की लिए पीएचडी लोग आवेदन करते हैं और चतुर्थ वर्ग कर्मचारी के लिए पोस्ट ग्रेजुएट लोग भी अर्जी देने में संकोच नहीं करते। सरकार का कहना है कि बेरोजगार लोगों को रोजगार नहीं सरकारी नौकरी चाहिए, ताकि वे सरकारी नौकरी का पूरा लाभ ले सकें।
भारत सरकार का कहना है कि शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर घट गई है। जनवरी में बेरोजगारी दर 8.16 प्रतिशत थी और ग्रामीण क्षेत्रों में 5.84 प्रतिशत। भारत में ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले मजदूरों को खोजना कठिन है। 'सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी' का कहना है कि यह बेरोजगारी की दर सबसे कम है। रोजगार के नए-नए अवसर खुल रहे हैं। सबसे ज्यादा बेरोजगारी हरियाणा में 23.4 प्रतिशत है। उसके बाद राजस्थान का नंबर आता है, जहां 18.9 प्रतिशत युवा बेरोजगार है। जिन राज्यों में रोजगार की सबसे अच्छी स्थिति है, उनमें तेलंगाना सबसे आगे है। तेलंगाना में केवल 0.7 प्रतिशत ही बेरोजगारी है। गुजरात में 1.2 प्रतिशत, मेघालय में 1.5 प्रतिशत और ओडिशा में 1.8 प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं।
बेरोजगार लोग सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे हैं। सरकारी नौकरियों में जो फायदे होते हैं, वे निजी क्षेत्र की नौकरियों में नहीं। सरकारी नौकरी स्थायित्व और आरामदायक जिंदगी की गारंटी है। ऐसी ही गारंटी नेताओं को प्राप्त है। मध्य प्रदेश के विभिन्न राज्यों में जो कानून हैं, उनके मुताबिक विधायक एक ऐसी ‘सरकारी नौकरी’ है, जिसमें रिटायर होने के बाद भी जबरदस्त सुविधाएं मिलती हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधायकों की पेंशन को लेकर एक नया निर्णय किया हैं ,जिसका कई क्षेत्रों में विरोध किया जा रहा है।
भारत में केवल 5 राज्य ऐसे हैं, जहां विधायकों को 15 हजार रुपये या उससे कम पेंशन मिलती है। विधायकों के बारे में यह तय है कि अगर कोई एक दिन भी विधायक रह ले, तो उसे पेंशन मिलने की गारंटी है। पंजाब का हाल यह रहा कि वहां कुछ विधायक तो पेंशन के रूप में 5 लाख 20 हजार रुपये तक हर महीने पा रहे थे। भगवंत मान ने पड़ताल की तो पाया कि जो विधायक मंत्री बन गए थे, उनकी पेंशन मंत्री के हिसाब से मिलती है। अगर किसी विधायक ने एक से ज्यादा कार्यकाल तक विधायकी की, तो हर कार्यकाल के लिए उसके पेंशन में 10 हजार रूपये जुड़ते जाते हैं। यानी कोई विधायक अगर मंत्री रहा हो तो उसकी पेंशन तो उसे मिलेगी ही, साथ ही हर महीने मिलने वाली पेंशन में उसका हर कार्यकाल जुड़ता जाएगा। अगर कोई 8 बार विधायक रहा हो, तो उसकी पेंशन विधायक के नाम पर ही 80 हजार रुपये अधिक हो गई।
विधायकों और सांसदों को वेतन चार तरीके से मिलता है। 1. तनख्वाह, 2. निर्वाचन क्षेत्र के लिए मिलने वाला भत्ता, 3. निजी कार्यालय के खर्च और 4. सचिव या सहायक के लिए वेतन। महंगाई के हिसाब से ये चारों बढ़ते रहते हैं। 3 साल पहले शिमला के सांसद वीरेन्द्र कश्यप ने 3 महीने में 20 लाख रुपये का टीए बिल बनाया था। सांसदों और विधायकों को मिलने वाली सुविधाओं में ट्रेवल कूपन, सस्ते आवास, निर्वाचन क्षेत्र में नाम मात्र की दर पर कार्यालय आदि की सुविधा तो मिलती ही है, हर साल इंक्रीमेंट भी मिलता है। रिटायर होने के बाद भी यह सब सिस्टम का हिस्सा होने के कारण चलता रहता है।
सांसद और विधायक अपने वेतन के अलावा और कोई कितनी कमाई करते हैं, इसका तो कोई हिसाब नहीं है। अनेक नेताओं के अपने स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं। अधिकांश के पास खेती की जमीनें हैं। अधिकांश को प्रॉपर्टी से नियमित रूप से आय होती है। आय का कोई पैमाना नहीं होने के कारण राज्य सभा के पूर्व सांसद अनिल अम्बानी और कम्युनिस्ट सांसद रहे समन पाठक को एक समान पेंशन मिलती है। अनिल अम्बानी को उतनी ही पेंशन तब भी मिलती थी, जितनी वे 50 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक थे। अब उनकी इतनी संपत्ति नहीं बची, लेकिन पेंशन के रूप में मिलने वाली राशि उनके लिए तय है। एक न्यायालय में उन्होंने लेनदार से कहा था कि अब उनके पास आय का कोई साधन नहीं है और वे अपने पत्नी टीना अंबानी के जेवर बेच-बेचकर गुजारा कर रहे हैं। सांसद के रूप में मिलने वाली पेंशन का जिक्र उन्होंने नहीं किया। यह पेंशन भले ही उनके साम्राज्य के सामने छोटी हो, लेकिन उन्हें आजीवन मिलती रहेगी, इसकी गारंटी है।
वैसे तो विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। इन पांच वर्षों में कई विधानसभा क्षेत्रों में दो-दो, तीन-तीन विधायक रोजगार पा जाते हैं। किसी विधायक ने इस्तीफा दिया, उपचुनाव हुआ नया विधायक बना। दोनों को ही पेंशन मिल जाएगी। आंध्रप्रदेश की एक विधानसभा सीट पर पांच साल में तीन-तीन विधायक रहे। तीनों को पेंशन मिल रही है। एक विधायक इस्तीफा देकर लोकसभा में गए। वहां दूसरे विधायक का चुनाव हुआ। किन्हीं कारणों से उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया। फिर उपचुनाव हुआ। इस तरह पांच साल में तीन-तीन विधायक भूतपूर्व हो गए और पेंशन के हकदार भी।
नेताओं की पेंशन का कोई नियम-कानून नहीं है। गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भूतपूर्व विधायकों को कोई पेंशन नहीं दी जाती। अनेक बार सदन में नेता लोग सवाल उठाते हैं कि क्या जनप्रतिनिधियों को सम्मानित तरीके से जीवन जीने का अधिकार नहीं है? मणिपुर के विधायक को कार्यकाल पूर्ण होने पर 70 हजार रुपये पेंशन मिलती है। वहां एक और नियम है कि पहले कार्यकाल के बाद हर साल के लिए 4 हजार रुपये पेंशन दिए जाते हैं। वहां पांच बार विधायक रहने वाले व्यक्ति की पेंशन हो गई 1.5 लाख रुपए हर माह। मणिपुर देश का ऐसा राज्य है, जहां विधानसभा क्षेत्र बेहद छोटे हैं, लेकिन पेंशन के मामले में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नेताजी ने कितनी आबादी का प्रतिनिधित्व किया।
कुछ राज्यों में पेंशन के लिए न्यूनतम सेवा की शर्त रखी गयी है यानी अगर विधायक एक निश्चित समय तक सदन में रहता है, तभी उसे पेंशन मिलती है। ओडिशा में एक साल विधायक रहने वाले को पेंशन मिल जाती है और सिक्किम में पांच साल रहने वाले को। इस नियम का विरोध हुआ और यह नियम बदल दिया गया।
अनेक बार न्यायालयों में भी यह मुद्दा गया कि आखिर नेताओं को कितनी पेंशन दी जाए? दी भी जाए या उसकी जरूरत नहीं है? सांसदों के वेतन, भत्तों और अन्य सुविधाओं को लेकर पक्ष और विपक्ष में तरह-तरह के सवाल उठते रहते हैं। अनेक सांसदों का मानना है कि भारत में सांसदों को मिलने वाला वेतन दुनिया के कई देशों में मिलने वाले सांसदों के वेतन का 20 प्रतिशत भी नहीं है। भारत में यह व्यवस्था भी है कि अगर कोई नेता पहले विधायक रहे, मंत्री बने और सांसद बने और फिर केन्द्र में मंत्री बने, तो रिटायर होने के बाद उसे एक से अधिक पदों की पेंशन मिलती रहेगी। इस बारे में एक आरटीआई के जवाब में संसदीय सचिवालय की तरफ से कहा गया कि कानून के अनुसार ऐसी पेंशन प्राप्त करने में कोई रुकावट नहीं है। यह बात और है कि सरकारी कर्मचारी भले ही 30 साल नौकरी करे, उसे कितनी पेंशन मिलेगी और मिलेगी भी या नहीं- इस बात की कोई गारंटी नहीं है, लेकिन सरकारी नौकरी जैसी सुरक्षा हमारे विधायकों और सांसदों को नहीं है। वहां का कार्यकाल छोटा होता है, लेकिन बाकी जिंदगी गुजारने के लिए पेंशन की भरपूर व्यवस्था है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)