"वो यार है जो ख़ुशबू की तरह, जिसकी जुबां उर्दू की तरह"
साहिर के दो गानों ('जो भी है, बस यही एक पल है' और 'मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया') की चर्चा के बाद अब आज गुलजार के लिखे गाने की चर्चा। जिसकी एक लाइन मुझे 'दिल से' पसंद है। वैसे तो पूरा गाना ही ज़बर्दस्त है। सूफ़ी संत बुल्ले शाह ने लिखा था -'"तेरे इश्क नचाया, करके थैया थैया!" गुलज़ार ने लिखा -"चल छैया छैया, चल छैया छैया!सवाल है कि वो कौन यार है जो खुशबू की तरह है? वो शायद ऊपरवाला है जिसकी ज़ुबान दुनिया की सबसे मीठी बोलियों में से एक, उर्दू जैसी है! इस गाने की सभी लाइन अनूठी थीं और फिल्मांकन बेजोड़! 1998 में आई यह फिल्म आज तक दिलों पर राज कर रही है।
इस गाने के बोल तो देखिए - "जिनके सिर हो इश्क की छांव, पाँव के नीचे जन्नत होगी !" आश्चर्य की बात यह है कि जन्नत वालों ने मन्नत वाले पर फिल्माए गए इस गाने पर कोई बखेड़ा नहीं खड़ा किया ! इतना ही नहीं, आगे की लाइन कहती हैं :
''गुलपोश कभी इतराए कहीं
महके तो नज़र आ जाए कहीं
तावीज़ बना के पहनूँ उसे
आयत की तरह मिल जाए कहीं''
मणिरत्नम द्वारा निर्देशित इस फिल्म के गाने की कई खूबियां हैं। जिस तरह यह फिल्माया गया, वह अनूठा था। मुख्यत: शाहरुख खान और मलाइका अरोड़ा पर फिल्माए गए इस गाने को लिखा गुलजार ने और संगीत दिया था अल्लाह रखा रहमान ने। सपना अवस्थी और सुखविंदर सिंह ने इस गाने को गाया था। पहले इस फिल्म में मलाइका अरोड़ा की जगह शिल्पा शिरोडकर को लिया गया था, लेकिन कहते हैं कि मणिरत्नम को शिल्पा शिरोडकर की कमर पतली नहीं होने पर दिक्कत थी। शिल्पा शेट्टी से भी संपर्क किया गया, पर वे डेट्स नहीं दे सकीं ।
एक्टिंग, सिनेमाटोग्राफी और कोरियोग्राफी के लिहाज से भी यह गाना जबरदस्त बना था। नीलगिरि पर्वतीय रेल पर यह गाना फिल्माया गया था। यह रेलगाड़ी 1908 से चल रही है और अब विश्व धरोहर में शामिल है। संतोष सिवान की सिनेमैटोग्राफी ने 6 मिनट 48 सेकंड के इस गाने में जो कमाल दिखाया, उससे दर्शक अपनी सीट से उठे बिना प्रकृति की गोद में बैठ गए थे। पहाड़ों पर धूप-छाँह का खेल निराला होता है। सिनेमैटोग्राफर का कमाल था कि गाने में बादल भी आ और जा रहे थे, आकाश में ऊंचाई थी तो पुलों में गहराई ! दर्शक बर्ड आई व्यू से गाना देखता रहा।
फरहा खान ने जिस तरीके से इस गाने की कोरियोग्राफी की थी, उसने शाहरुख खान और मलाइका अरोड़ा का कॅरियर संवार दिया। मलाइका को एक गाने के बूते ‘डांसिंग दिवा’ कहा जाने लगा। (मलाइका बाद में मुन्नी होकर बदनाम हो गई, यह और बात है)। यह गाना खूब चला और फिल्म को भी ठीक ठाक चला ले गया। कई पुरस्कार इस गाने और फिल्म ने जीते। बताते हैं कि जब यह गाना फिल्माया जा रहा था, तब मणिरत्नम ने डांसर्स के लिए अस्तबल में काम आनेवाले हार्नेस का उपयोग किया था, ताकि कोई डांसर ट्रेन से नीचे न गिर जाए।
गुलज़ार में यह लाइन अकारण नहीं लिखी - "वो यार है जो ख़ुशबू की तरह, जिसकी जुबां उर्दू की तरह"। उर्दू भले ही दाएं से बाएं की ओर लिखी जाती हो लेकिन है तो भारत की भाषा। भारत में ही जन्मीं, भारत में ही पली और बड़ी हुई। यह बात और है कि जिन्ना ने पाकिस्तान बनते ही उर्दू को पाकिस्तान की राजभाषा बना दिया, जबकि पाकिस्तान में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा तब भी पंजाबी थी और अब भी पंजाबी ही है।
पाकिस्तान द्वारा उर्दू को राजभाषा बनाने से भारत के लोगों में यह धारणा बन गई कि उर्दू पाकिस्तान की भाषा है। जबकि ऐसा है नहीं। इन्हीं कारणों से भारत में उर्दू को वह मोहब्बत और तवज्जो नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी। यह बात और है कि उर्दू को दुनिया भर में प्यार मिल रहा है जैसा कि ब्रजभाषा को मिलता है। कहते हैं कि उर्दू का जन्म ब्रजभाषा से ही हुआ है । मीर, गालिब, सौदा जैसे महान शायरों ने उर्दू-फारसी के शब्द अपनाएं और ब्रज भाषा के शब्द भी अपनाए। वही ब्रज भाषा जो हमारे जन-जन में बसती है। अजीब बात है कि हम अपने स्कूलों में अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश पढ़ाते हैं लेकिन तमिल, तेलुगु, उर्दू का विकल्प नहीं रखते, जबकि भारत जैसे देश में बच्चों को अधिकाधिक भाषाएं पढ़ाई जानी चाहिए।
उर्दू का जन्म बारहवीं सदी से पन्द्रहवीं सदी के बीच हुआ, जब विदेशी मुस्लिम हमलावर भारत आए। ये आम तौर पर फ़ारसी, तुर्की, अरबी, उज़्बेकी, तुर्कमेनी, कज़ाख़ी, किरगीज़, पश्तो, दारी, बलूची, ताजिक आदि बोलने वाले थे। जब ये लोग भारत में ही रहने लगे तब इन्होंने भारतीय व्यवहार और भाषा अपना ली। इन सभी विदेशी भाषाओं के शब्दों का पंजाबी, डोगरी, रूहेलखण्डी, बुन्देली, बृज, भोजपुरी, अवधी आदि देशज भाषाओं के संगम से जिस नई भाषा का उदय हुआ, उसे उर्दू के नाम से पुकारा गया।
उर्दू के लिए 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक रेख़्ता शब्द का उपयोग किया जाता था। इसे हिंदी / हिंदुवी (हिंदवी) और बाद में हिंदुस्तानी भी कहा जाता था। 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक इसे स्पोरेडिक रूप से इस्तेमाल किया जाता था। रेख़्ता-शैली (मिश्रित, उर्दू भाषा का उपयोग करके की जानेवाली कविता) आज सबसे आम है।आज भी ठुमरी, गीत, चौपाई, मर्सिया, ग़ज़ल जैसे काव्य रूप दुनिया में लोकप्रिय हैं।
गुलज़ार का लिखा पूरा गाना :
जिनके सिर हो इश्क़ की छाँव
पाँव के नीचे जन्नत होगी
चल छैया छैया छैया छैया
सारे इश्क़ की छाँव चल छैया छैया
सारे इश्क़ की छाँव चल छैया
पाँव जन्नत चले चल छैया छैया
चल छैया छैया छैया छैया
वो यार है जो खुशबू की तरह
जिसकी जुबां उर्दू की तरह
मेरी शाम रात, मेरी कायनात
वो यार मेरा सैया सैया
गुलपोश कभी इतराये कहीं
महके तो नज़र आ जाए कहीं
तावीज़ बनाके पहनूं उसे
आयत की तरह मिल जाए कहीं
वो यार है जो ईमान की तरह
मेरा नगमा वो ही मेरा कलमा वो ही
मेरा नगमा नगमा मेरा क़लमा क़लमा
यार मिसाल ए आस चले
पाँव के तले फ़िरदौस चले
कभी डाल डाल कभी पात पात
मैं हवा पे ढूँढूँ उसके निशाँ
सारे इश्क़ की छाँव चल छैया छैया
सारे इश्क़ की छाँव चल छैया
पाव जन्नत चले चल छैया छैया
चल छैया छैया छैया छैया
मैं उसके रूप का शैदाई
वो धूप छाँव से हरजाई
वो शोख है रंग बदलता है
मैं रंगरूप का सौदाई
चल छैया छैया छैया छैया
चल छैया छैया छैया छैया
-प्रकाश हिन्दुस्तानी
28.4.2023
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