इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
"ओ माझी रे! अपना किनारा नदिया की धारा है"
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (12).
1975 का साल कई मायनों में खास रहा। इमरजेंसी लगी। वियतनाम युद्ध थमा। भारत ने पहला उपग्रह आर्यभट्ट छोड़ा। सिक्किम का भारत में विलय हुआ। बिल गेट्स ने माइक्रोकम्यूटर सॉफ्टवेयर शब्दोंको मिलाकर माइक्रोसॉफ्ट शब्द का उपयोग शुरू किया। ...और? और 1975 में ही जय संतोषी माँ, शोले, दीवार जैसी सुपरहिट फ़िल्में रिलीज हुईं। इसी साल #गुलज़ार की एक या दो नहीं, बल्कि तीन-तीन फ़िल्में रिलीज़ हुईं। मौसम, आंधी और खुशबू।
खुशबू शरतचंद्र के उपन्यास पर आधारित थी। चार गाने थे। एक था :
"ओ माझी रे! अपना किनारा नदिया की धारा है"
वैसे तो सैकड़ों गीतों की तरह ही यह भी यह एक माझी गीत है। गुलज़ार के अनेक गीतों की तरह इसमें भी एक ही लाइन में अनूठा प्रयोग है। दो समानार्थी शब्द नदिया और धारा का इस्तेमाल एक साथ किया और साथ में किनारा शब्द का भी ! बस यहीं आकर मैं इस गाने में अटक गया।
ओ माझी रे
अपना किनारा नदिया की धारा है !
यह वैसा ही है जैसे कोई कहे कि सफर ही मंज़िल है।
या फिर कोई कहे कि कोई कहे कि कर्म ही फल है !
एक परिचित युवा का चयन यूपीएससी में हो गया। मैंने कहा - बच्चू, अब तो नैया पार हो गई!
''अपना किनारा नदिया की धारा है'' उसने कहा। किसी की कोई मंजिल होती है? केवल सफर ही होता है। एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव की तरफ!
अरे! छह शब्दों में गुलज़ार ने कितनी गहरी बात कह दी। आगे लिखा -
साहिलों पे बहनेवाले, कभी सुना तो होगा कहीं
कागजों की कश्तियों का कहीं किनारा होता नहीं
वास्तव में हम सब काग़ज़ की कश्ती हो तो हैं! कोई किनारा जो किनारे से मिले वो अपना किनारा है ... ! क्या कल्पना है! बेजोड़!
बांग्ला में शब्दों के साथ मजेदार प्रयोग होते हैं। हिन्दी में अगर हम 'अनेकों' लिख दें तो साहित्यकार टाइप लोग बुरा मान जाते हैं। ( सही शब्द 'अनेक' ही होता है)। बांग्ला में लिखा जाता है कि वह तो 'आसमानों' से भी ऊँचा है! शायद इसे से प्रेरित होकर गुलज़ार ने पानी की जगह 'पानियों' लिखा --
पानियों में बह रहे हैं कई किनारे टूटे हुए ओ
हो रास्तों में मिल गए हैं सभी सहारे छूटे हुए
क्या लिखा है सम्पूर्ण सिंह कालरा साहब यानी गुलज़ार साहब ने ! दोआब के इलाके में, बिहार, यूपी और बंगाल में बाढ़ आती है तो नदियों के किनारे, खेत गायब हो जाते हैं। सचमुच!
ऐसे में 'कोई सहारा मझधारे में मिले जो, अपना सहारा है !'
गुलज़ार के इस गाने में किशोर कुमार का स्वर और राहुल देव बर्मन का संगीत था! तीन-तीन जादू ! तीनों महान प्रतिभा और ऊपर से तीनों के जीवन का सर्वश्रेष्ठ! सुना था कि जब इस गाने की रिकार्डिंग हो रही थी तब स्टूडियो में मौजूद हर शख्स संजीदा हो गया था। कई की आँखें नम थीं। यह गाना किसी जादू से काम नहीं था!
खुशबू फिल्म के निर्देशक भी गुलज़ार थे। इस बेमिसाल गाने को सादगी से फिल्माया गया था ! साधारण कपड़े, कोई रोमांस नहीं, कोई ग्लैमर नहीं, कोई तामझाम नहीं ! पूरा गाना एक नाव पर फिल्माया गया। कोई स्टूडियो की शूटिंग नहीं। सफ़ेद ऊँची पाल वाली चलती नौका में पाल के डंडे का सहारा लेकर खड़े हुए, मोटा सा चश्मा लगाए जितेन्द्र गाना गा रहे हैं। नाव में एक मल्लाह है।
नाव है क्योंकि नदी है, नदी है तो पहाड़ियां हैं, ढलती हुई शाम की सुरमई बेला है, नाव में डोलती हुई लालटेन है और गाने के बीच में दो छोटे से शॉट्स हेमा मालिनी के हैं जो कृष्ण की मूरत के सामने मूर्तिवत बैठी हैं! पूरे गाने में हीरो को खड़ा होकर गाना गाते दिखाया गया है। नाव नदी से जा रही है और गाना ख़त्म होते वक़्त नाव का एक लॉन्ग शॉट ऊपर से नज़र आता है कि नाव बीच नदी में है और यह बात तब अर्थपूर्ण लगती है 'कोई किनारा मझधारे में मिले तो अपना किनारा है!'
इस फिल्म की कहानी बंगाल की थी, संगीतकार और गायक भी बंगाली ही थे, बंगाल में समंदर और लम्बी नदियां हैं और नाव और संगीत जीवन का अंग ! इसलिए बंगाली लोक संगीत भटियाली शैली का इसमें प्रयोग दिलकश था।
गुलज़ार के लेखन और निर्देशन को लेकर कई विवाद जुड़े रहे हैं। लेकिन मानना पड़ेगा कि वे असाधारण तो हैं ही। दो महीने बाद वे 89 के हो जाएंगे। अभी भी टेनिस खेलते हैं। गुलज़ार के खाते में जमा हैं करीब 150 फिल्मों के गाने - मोरा गोरा रंग लईले से लेकर बीड़ी जलइले जिगर से पिया तक, करीब दो दर्जन फिल्मों का निर्देशन, टीवी धारावाहिकों में गीत -पटकथा लेखन से लेकर निर्देशन तक और कई संगीत एलबम !
गुलज़ार को कौन सा पुरस्कार या सम्मान नहीं मिला ? 5 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 22 फिल्मफेयर पुरस्कार,राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान, ऑस्कर और ग्रैमी, साहित्य अकादमी पद्म भूषण और भारत का सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार उन्हें मिल चुके हैं। उनकी बीस-पच्चीस जीवनियां पेंग्विन, राधाकृष्ण और रूपा प्रकाशन छाप चुके। ऑडियो बुक, ई बुक्स, अंग्रेज़ी उपन्यास, कॉमिक्स और न जाने क्या क्या उन्होंने लिखा है या उन पर लिखा गया है। । वे शब्दों के अनूठे चितेरे हैं, इसमें दो मत नहीं। वरना कोई ऐसी प्यारी बात लिख सकता है क्या ?
अपने आप रातों को सीढ़ियां धड़कती हैं, चौंकते हैं दरवाजे'
और
'आंखों को वीजा नहीं लगता
बंद आंखों से रोज सरहद पार चला जाता हूं
सपनों की सरहद कोई नहीं'
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गुलज़ार का लिखा पूरा गाना :
ओ माझी रे ओ माझी रे
अपना किनारा नदिया की धारा है
ओ माझी रे
साहिलों पे बहनेवाले, कभी सुना तो होगा कहीं
कागजों की कश्तियों का कहीं किनारा होता नहीं
ओ माझी रे माझी रे
कोई किनारा जो किनारे से मिले वो अपना किनारा है
ओ माझी रे
पानियों में बह रहे हैं कई किनारे टूटे हुए
रास्तों में मिल गए हैं सभी सहारे छूटे हुए
कोई सहारा मझधारे में मिले जो, अपना सहारा है
ओ माझी रे अपना किनारा नदिया की धरा है
ओ माझी रे
ओ माझी रे ओ माझी रे
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प्रकाश हिन्दुस्तानी
30-6-2023
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