ये मोह मोह के धागे, तेरी उँगलियों से जा उलझे
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (13).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
तुम पागल हो और मुझे पागल लोग बहुत पसंद हैं!
ज़िन्दगी केवल ब्लैक और व्हाइट नहीं होती! ज़िंदगी में ग्रे शेड भी होते हैं और केवल पचास शेड नहीं, हज़ारों!
अगर कोई आपका अनकहा सुन ले तो मान लीजिए कि वह आपको, आपसे भी ज़्यादा समझता है!
'ये मोह मोह के धागे तेरी उँगलियों से जा उलझे' गाने के बारे में कहा जाता है कि इसमें जीवन दर्शन से ज्यादा प्रेम का दर्शन है। मेरी नज़र में यह हाल के वर्षों का सबसे सुरमयी और अर्थवान गाना है। अगर जीवन में प्रेम तत्व शामिल हो तो जीवन की सार्थकता के साथ ही प्रेम की सार्थकता भी बढ़ जाती है।
राग यमन कल्याण। यह गाना 2015 में आई फिल्म 'दम लगा के हईशा' फिल्म का है, लेकिन उस फिल्म की कहानी 1995 के दौर की थी, जब कुमार शानू जैसे गायकों का जलवा था। कैसेट और वीडियो की धूम रहा करती थी। मोहल्ले-मोहल्ले में वीडियो लाइब्रेरी खुल गई थीं। कह सकते हैं कि यह गाना नए दौर का भी है और पुराने दौर का भी।
इस गाने में कुल पांच अंतरे थे, (पांचों अंतरे इस लेख में हैं) जिनमें से तीन फिल्म में लिये गये। तीन में भी पुरुष स्वर और नारी स्वर में बोल की भिन्नता रही। मोनाली ठाकुर का नारी स्वर और पापोन (असमिया गायक अंगराग महंत) का पुरुष स्वर बेहद पसंद किया गया और आज भी पसंद किया जा रहा है ! इसके 20 करोड़ से ज़्यादा व्यूज़ हो चुके हैं। मुझे मोनाली का स्वर ज़्यादा प्रियकर है। आपको?
इस गाने के शब्दों की मादकता, कलाकारों का जीवंत अभिनय और गाने में आदित्य बेनिया की गिटार, नवीन कुमार की बांसुरी और ओंकार धूमल की शहनाई की आइसिंग अलग ही दुनिया में ले जाती है।
गाने के बोल तो देखिए :
कोई टोह टोह ना लागे
किस तरह गिरहा ये सुलझे
है रोम रोम एक तारा
जो बादलों में से गुज़रे
वरुण ग्रोवर के इस गाने में मोह मोह, टोह टोह और रोम रोम की तुकबंदी है और इन शब्दों को दो बार उपयोग में है जिससे इनका वजन बढ़ गया है। (जैसे ''मैं पैदल चल के आया'' और ''मैं पैदल चल चल के आया'')
इसमें गज़ब की उपमाएं दी गईं हैं - गिरह (गिरहा) यानी गठान / गाँठ को सुलझाने की बात कही गई। ( याद कीजिए - ''दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो कोई गीत गाओ'' ; शैलेन्द्र का लिखा 1967 में आई फिल्म 'रात और दिन' का गाना )। पागल, उलझे, झूठी बातें, आँखों में तेरे सच आदि बेमिसाल उपमाएं हैं।
रोमैंटिज्म की इन्तेहाँ देखिये - है रोम रोम एक तारा! सिहरन ऐसी है कि रोम रोम तारे जैसा है जो बादलों से जा रहा है! नायिका नायक पर इस कदर फ़िदा है कि वह जानते बूझते उसकी झूठी बातों को मानने का इसरार कर रही है!
आगे है कि - तेज धारा में हम आवारा से बह रहे हैं, आ जाओ, ज़रा थम जाएँ, सांस तो ले लें! ... और फिर है के ऐसा बेपरवाह मन पहले तो ना था
चिट्ठियों को जैसे मिल गया,जैसे इक नया सा पता! क्या बात कह दी -- डियर, पते को चिट्ठी मिलती है या चिट्ठी को पता मिलता है?
फिर एक गहन दर्शन की बात है जो कहती है कि ज़िंदगी केवल ब्लैक एन्ड व्हाइट नहीं। तू दिन सा है यानी सफ़ेद है और मैं रात सी! यानी काली! आ ना दोनों, मिल जाएं शामों की तरह। मतलब धूसर हो जाएं या ग्रे हो जाएं ! मिल जाएं ! ज़िन्दगी को काला या गोरा मत समझ बाबू! थोड़ा सा तू चल, थोड़ा सा मैं चलती हूं ! (दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें! -फिल्म 'एक हसीना दो दीवाने' -1972 )
मेल और फीमेल आवाज में होने के बावजूद फिल्म में यह गाना हीरो या हीरोइन ने परदे पर नहीं गाया, बल्कि इसे बैकग्राउंड में बजाया गया! संगीत की खूबी रही कि हर साज़ की ध्वनियाँ अलग-अलग होते हुए भी एक जैसी लयबद्ध हैं। न तो संगीत हावी होता है और न ही बोल। मोनाली ठाकुर ने इसे ऐसे गाया है मानो वे वाकई किसी ऐसी प्रेमिल स्थिति में से गुजर रही हों जो कठिन दौर हो! पुरुष स्वर में पापोन ने भी उतना ही कमाल किया है।
इस फिल्म की टैग लाइन थी - “love comes in all sizes" ! बॉडी शेमिंग इसका मूल था! फिल्म में हीरो हीरोइन की जोड़ी बेमेल रहती है! हीरो दसवीं पास भी नहीं , ढोर! हीरोइन बीएड पास ! टीचर!
हीरो प्रेम प्रकाश तिवारी (आयुष्मान खुराना) पिता की वीडियो कैसेट्स की दुकान चलाता है। प्रेम के माता-पिता चाहते हैं कि वो ऋषिकेश के परिवार की संस्कारी, सुशील, मितभाषी और बीएड लड़की संध्या से शादी कर ले, ताकि लड़की आगे टीचर बन जाए और घर खर्च चलता रहे।
68 किलो का प्रेम 94 किलो की संध्या से शादी कर लेता है। जबकि चाहता नहीं है उसे। बेइज्जती भी करता है।
अब सिचुएशन ऐसी है - प्रेम रूठा हुआ सा है, बिना खाना खाए अपने ससुराल से निकला है, वो भी नई नवेली दुल्हन को लेकर! दोनों को रात को वेस्पा स्कूटर पर पहली बार साथ एक सफर पे जाने का मौका मिल रहा है। दोनों के बीच तनातनी सी है। अनमना हीरो स्कूटर चला रहा है ! वह स्कूटर जो ब्रेकर के आते ही अड़ने लगता है! और हीरोइन रुकने का इशारा करती है।
क्या हुआ?
हीरोइन अबोली सी पीछे की तरफ इशारा करती है, स्कूटर पर जाते हुए उसकी एक पांव की चप्पल नीचे गिर गई है। हीरो मुंह बनाता है। स्कूटर रोकता है। स्कूटर का इंजन ऑफ़ करके, खड़ा कर के आगे जाता है। फिर उल्टे हाथ से चप्पल उठाता है ( पंडित है और बीवी की चप्पल सीधे हाथ से कैसे उठाये?) और बीवी के सामने कुछ इस अंदाज़ में पटकता है कि ले मर!
लेकिन यह क्या? स्कूटर स्टार्ट होने से मना कर देता है। धक्का लगाकर स्कूटर स्टार्ट करता है तो बीवी पीछे छूट जाती है! हाथ से इशारा करता है - जल्दी आ! एक हाथ में बड़ा सा सूटकेस (शायद खाली) उठाये हीरोइन दौड़ती हुई आती है और धम्म से स्कूटर पर बैठती है! बेहद प्रेम से अपना दाहिना हाथ सहारे के लिए हीरो के दाहिने कंधे पर रखती है। दोनों में तनाव बरकरार था और है!
पृष्ठभूमि में गाना बजने है - ये मोह मोह के धागे !
निर्देशक शरत कटारिया चाहते थे कि यहाँ क्लासिकल गीत आये। अनु मलिक ने बहुत सी धुन सुनाई लेकिन अनु मलिक के अनुसार एकदम ‘ठाँय कर के कलेजे को लग जाए’ जैसी धुन नहीं मिल रही थी। ... फिर एक दिन अनु मलिक ने ये वाली सुनाई, जिसे सुनते ही सब बोले कि यही है जो कलेजे को लग रही है!
भूमि पेडणेकर के पिता थे सतीश पेडणेकर। कांग्रेस के नेता। मुंबई के परेल के विधायक। मंत्री भी बने। 2011 में उनकी मुख के कैंसर से मृत्यु हो गई। भूमि एजुकेशन लोन लेकर शिक्षा ले रही थी। उन्हें यशराज फिल्म्स में असिस्टेंट डायरेक्टर (कास्टिंग) की नौकरी करके लोन चुकाना पड़ा। रणवीर सिंह की 'बैंड बाजा बरात' में कास्टिंग उन्हीं ने की थी।
'दम लगाके हईशा' के लिए दर्जनों लड़कियों के स्क्रीन टेस्ट लिए गए, पर अंतत: भूमि के सामने ही प्रस्ताव आया। शर्त थी कि भूमि को वजन बढ़ाना होगा। भूमि ने वजन बढ़ाया और फिल्म के बाद करीब 30 किलो घटाया भी ! इस फिल्म में भूमि ने अपने चरित्र में ढलने के लिए बहुत मेहनत की थी ! यह गाना उनमें ढल गया। भूमि ने फिल्म में कनखियों से आयुष्मान को ऐसे और इतनी बार देखा कि दर्शक देखते ही रह गए। अब तो भूमि 18 जुलाई को 34 साल की हो जाएगी।
'दम लगा के हईशा' को 63वां राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था और 'मोह मोह के धागे' के गीतकार वरुण ग्रोवर को बेस्ट लिरिक्स तथा मोनाली ठाकुर को बेस्ट फीमेल गायिका का अवार्ड मिला। ग्यारहवां स्टार गिल्ड अवार्ड भी गीतकार, संगीतकार और गायिका को मिला था।
पूरा गाना 5 अंतरों का है, फिल्म में तीन ही लिए गए थे :
ये मोह मोह के धागे
तेरी उँगलियों से जा उलझे
कोई टोह टोह ना लागे
किस तरह गिरह ये सुलझे
है रोम रोम इकतारा
जो बादलों में से गुज़रे..
तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना
कैसे तूने अनकहा, तूने अनकहा सब सुना
तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना
तू दिन सा है, मैं रात
आ ना दोनों मिल जाएँ शामों की तरह
कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था
चिट्ठियों को जैसे मिल गया
जैसे इक नया सा पता
कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था
खाली राहें, हम आँख मूंदे जाएँ
पहुंचे कहीं तो बेवजह
(नीचे दिए गए ये दो अन्तरे भी इसी गाने में थे, लेकिन इन्हें फिल्म में नहीं लिया गया।)
घोल दें इक सांस में आ सारा फासला
कि ऐसे भर जाएँ रहे खाली ना जगह
झील किनारे
आजा ना खेल बिछा लें,
और जोड़ें साड़ी कौड़ियाँ।
कि जैसे पानी का इक मीठा सा कुआँ
हाथ जो तू थाम ले, तो छंट चलेगा धुआँ
कि मिला पानी का इक मीठा सा कुआँ।
झूठ कहानी
तेरी है सारी मानी
तू भी इशारा सुन ज़रा।
फिल्म : दम लगा के हईशा (2015)
गीतकार : वरुण ग्रोवर
गायक : मोनाली ठाकुर और पापोन
संगीतकार : अनु मलिक
------------
--प्रकाश हिन्दुस्तानी
7-7-2023
#onelinephilosophy
#philosophyinoneline
#एक_लाइन_का_फ़लसफ़ा