''चोरी में भी है मज़ा..."
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (16).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
चोरी या चौर्य कर्म में मज़े की यह बात 1998 में आई विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 'करीब' के गाने में कही गई। गाना लिखा था जानेमाने शायर डॉ. राहत इन्दोरी ने। गाने की शुरुआती लाइन हैं :
यह क्या हुआ कैसे हुआ
यह कब हुआ क्या पता
चोरी चोरी जब नज़रें मिली
चोरी चोरी फिर नींदें उड़ी
चोरी चोरी यह दिल ने कहा
चोरी में भी है मज़ा
यानी चोरी चोरी नजरें मिलाना, नज़रें चुराना या नींदें उड़ाना जुर्म नहीं है, बल्कि मज़ा लेने या देने का मामला है। इस पर आईपीसी की धारा 354-A अथवा 354-D नहीं लगती! यह रोमांटिक गाना था और इसमें बताया गया कि इस चौर्य कर्म में क्या मिलता है उसे लफ़्ज़ों में बयां नहीं किया जा सकता। न यह बताया जा सकता है कि इसमें क्या खो जाता है ? इस चौर्य कर्म में जो कम्युनिकेशन होता है- ज़बरदस्त होता है! कोई जे कृष्णमूर्ति भी उसका विश्लेषण शायद नहीं कर पाए।
क्या जाने क्या मिल गया
क्या जाने क्या खो गया
तूने यह क्या कर दिया
मुझको यह क्या हो गया
आगे राहत साहब ने सरलता से इशारा कर दिया कि पूरी प्रकृति चौर्य कर्म करती है। हवा फूलों से ख़ुश्बू चुरा ले जाती है, और बादलों के कोमल आँचल को कहाँ से कहाँ लेकर चली जाती है, क्या पता? प्रकृति को इस कार्य के लिए तो न तो कोई सजा नहीं दी जा सकती क्योंकि वह अपनी नियामक खुद ही है। इस गाने में जीवन और मौत की, पाप और पुण्य की कोई बात नहीं है, प्रेम की बात है। मुझे लगता है कि मानव जीवन में प्रेम की उपस्थिति ही सबसे बड़ा और पवित्र दर्शन है। बाकी मिथ्या !
करीब फिल्म में यह गाना बॉबी देओल और शबाना रज़ा पर फिल्माया गया था। ज़बर्दस्त था वह गाना। शबाना का फ़िल्मी नाम नेहा था, लेकिन मनोज वाजपेयी से शादी के बाद उन्होंने नेहा नाम ही अपना लिया।
इस गाने की तरह ही 'इज्जत की रोटी' नाम फिल्म में अनजान ने गाना लिखा था, जो कुछ ऐसा ही था -
चोरी चोरी प्यार में है जो मजा
थोड़े इंतज़ार में है जो मजा
ओ मेरी जा जाने न तू क्यों
इस्लाम में चोरी को लेकर सख़्त हिदायतें हैं, लेकिन हिन्दुओं के सुपरगॉड श्रीकृष्ण को माखन चोर कहने में बुरा नहीं माना जाता ! ऐसी चोरी, जिसमें किसी का नुक्सान न हो, शायद अपराध नहीं है। गरुण पुराण में तप्तमूर्ति का जिक्र है कि जो लोग सोने या अन्य किसी धातु को चुराते हैं, उन्हें नरक की गर्म आग में खौलते कढ़ाव में ज़िन्दा उबाला जाता है। भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों में कई बार तो चोरी हक़ से भी की जाती है, जैसे कई लोग बचपन में पिता की जेब से माल उड़ा लेते हैं। कई बार पिता को भी पता होता है, पर कोई धारा नहीं लगाई जाती।
कई बच्चे बड़े होकर मालदार और फेमस हो जाते हैं, पर तब तक इस चौर्य कला में मज़ा आने लगता है और वे सुपर मार्केट या मॉल्स से सुरक्षा दस्ते द्वारा धर लिए जाते हैं। खुशवंत सिंह को जब 'ऑनेस्ट मैन ऑफ़ द ईयर' का पुरस्कार मिला उन्होंने कहा था - "मैं ईमानदारी का दावा नहीं कर सकता। ईमानदारी में दो चीज़ें होनी चाहिए। एक तो किसी पराये का माल नहीं लेना और दूसरा कभी झूठ नहीं बोलना। मैंने ये दोनों ही काम किए हैं। मुझे पेन चुराने की बीमारी है। यूँ तो मेरे पास पेन का अच्छा संग्रह है, लेकिन जो बात चोरी के पेन में है वो खरीदने में नहीं।''
एम. जे. अकबर बहुत बड़ेवाले सम्पादक थे। केन्द्र में मंत्री भी रहे। उन्हें होटलों के टॉवेल अपने सामान के साथ घर ले जाने का भयंकर चस्का था। एक बार वे इंदौर आये और उनके साथ मुझे लंच का मौका मिला तब मैंने उनसे ही पूछ लिया कि क्या यह 'शौक' उन्हें अब भी है? उन्होंने प्रतिप्रश्न किया -तुम्हें कैसे पता? मैंने कहा आपके गुरु वीएस ने किस्सा सुनाया था। वैसे यह नाचीज़ भी कई बार दफ्तर की स्टेशनरी-लिफाफे, पेन, पेन्सिल आदि अपनी जागीर समझकर ला चुका हूँ। भारतीय रेलों के ए सी यात्री भी नैपकिन, चादर आदि को अपनी सम्पत्ति समझकर ले जाने का पवित्र कार्य करते रहते हैं, जो बड़ी समस्या है।
एक बीमारी होती है जिसे अंग्रेज़ी में कहा जाता है Kleptomania Syndrome.यह ऐसी ही लाइलाज बीमारी है, जो व्यक्ति को छोटी-छोटी चोरियां करने को उकसाती है। यह एक मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर है। सभी इससे प्रभावित होते हैं। कम या ज़्यादा।
अभी राहत इंदौरी साहब ने बहुत खूब लिखा है। उनकी शायरी की कई पंक्तियाँ नारों की तरह इस्तेमाल हुई हैं। इससे बड़ा सम्मान और क्या है ? उनकी सर्वश्रेष्ठ शायरी अब तक फिल्मों में नहीं आई है। साहिर लुधियानवी या नीरज ने कई गज़लें, नज़्में, गीत पहले लिखे थे, बाद में उन्हने फिल्मों में लिया गया। राहत साहब ने फिल्म की सिचुएशन के हिसाब से गाने लिखे। वे लोकप्रिय ही हुए। राहत साहब अपने साहित्य के निर्मम संपादक भी थे और उन्होंने दो या तीन अन्तरे के गाने के लिए तीस तीस अंतरे तक यानी दस गुना लम्बे गाने लिखे और फिर खुद ही कांट-छांट करके उसे लोकप्रियता के शिखर तक पहुँचाया।
एक बार उनके घर पर मैंने उनसे कहा कि इस गाने से प्रेरित होकर मैं भी कुछ करना चाहता हूँ। उन्होंने पूछा तो मैंने कहा कि आपके ड्राइंग रूम में एमएफ हुसैन की जो पेंटिंग है, वह आपके बंगले से भी ज्यादा कीमत की है। इसे चुराने का इरादा है! उन्होंने उदारता से कहा कि यह हुसैन सब की गिफ्ट है। मैंने उनकी मीनाक्षी फिल्म के गाने लिखे थे। वैसे इससे भी बढ़िया पेंटिंग हुसैन साहब ने आदिल ( राहत साहब के छोटे भाई, पत्रकार और रंगकर्मी आदिल कुरैशी) को दी थी। आदिल भाई को राहत साहब की अगवानी के लिए खुदा ने उनसे पहले ही बुला लिया था। हुसैन साहब और राहत साहब दोनों ही मूल रूप से पेंटर थे और दोनों ने ही बरसों तक फिल्मों के होर्डिंग्स बनाते थे।
तीन साल पहले 11 अगस्त 2020 को कोरोना ने राहत साहब को हमसे छीन लिया। राहत साहब ने मृत्यु के बारे में कुछ नायब बातें लिखी थीं :
अब के बारिश में एक नज़र चल कर
देख आएंगे अपना घर चल कर
एहतराम इसका हम पे लाज़िम है
मौत आई है उम्र भर चल कर !
एक और बात उन्होंने कहीं थीं :
उसकी याद आई है सांसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है।
राहत साहब का लिखा पूरा गाना इस प्रकार है :
य ह क्या हुआ कैसे हुआ
यह कब हुआ क्या पता
चोरी चोरी जब नज़रें मिली
चोरी चोरी फिर नींदें उड़ी
चोरी चोरी यह दिल ने कहा
चोरी में भी है मज़ा
क्या जाने क्या मिल गया
क्या जाने क्या खो गया
तूने यह क्या कर दिया
मुझको यह क्या हो गया
पलकें झुकी पलकें उठी
क्या कह दिया क्या सुना
फूलों के ख़्वाबों में आकर
खुश्बू चुरा ले गयी
बादल का आँचल भी आकर
ओ पागल हवा ले गयी
गीतकार : डॉ. राहत कुरैशी 'इंदौरी'
गायक/गायिका : संजीवनी भेलान्दे और केदारनाथ भट्टाचार्य 'कुमार सानू'
संगीतकार : अनवर सरदार 'अनु' मलिक
फिल्म : क़रीब (1998)
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-प्रकाश हिन्दुस्तानी
28-07-2023
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