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जयंती रंगनाथन का नया उपन्यास 'मैमराज़ी' कई बातों से ख़ास है।  यह सरल भाषा में है, दिलचस्प है, किस्सागो शैली में है और भिलाई जैसे शहर की 'सेलेब्रिटी टाइप' भाभियों और देवर की जिंदगी के बारे में व्यंग्यात्मक लहजे में है। कभी लगता है कि वापस छोटे शहर की जिंदगी में लौट आये हैं, कभी लगता है कि कोई सीरियल डीडी पर देख रहे हैं!

'मैमराज़ी' की जान उसके कैरेक्टर हैं।  सभी उपन्यासों के होते हैं, लेकिन इसमें वे जीवंत लगते हैं।  व्हाट्सप्प पर घूमते किस्से हैं।  यहाँ गर्लफ्रेंड का मारा बेचारा है, जिसे गे समझ लिया गया है।  भिलाई का लोकल रणवीर सिंह हैं, भाभी या कहें कि भाभियाँ हैं, देवर है, गर्लफ्रेंड के मामले में तंगहाल लड़के हैं, भाभी के स्कर्ट और उससे जुड़े गॉसिप हैं. और भी किस्से हैं।  उपन्यास नहीं, दिलचस्प किस्सों का गुलदस्ता या कहें चटखारे हैं। उस शहर के चटखारे, जहाँ की लेडीज़ लोगों का फेवरेट टाइमपास है - दूसरों की हेल्प करना, दूसरों का लाइफ कंट्रोल करना ...  पर ये नहीं करेगा तो फिर वह लोग क्या करेगा ! अगर आप इस किताब का बीच में भी कोई भी पन्ना खोल लें तो भी आपको उसकी रोचकता वैसी ही लगेगी।

जयंती रंगनाथन का शहर है भिलाई। कुछ पुरानी घटनाएं, कुछ अतिरंजना, कुछ नॉस्टेल्जिया, कुछ गुदगुदाती वारदातें इसमें हैं। उपन्यास में वहां के एक -दो कैरेक्टर नहीं, पूरा की-बोर्ड है ! उनके नाम भी मज़ेदार हैं, बड़े रोचक और प्यारे,  जैसे स्वीटी, सुंदरी, झंडालाल, डीडी,  झुमकी वगैरह वगैरह ! जयंती रंगनाथन लेखिका, पत्रकार, पॉडकॉस्टर, डॉक्यूमेंट्री निर्माता और न जाने क्या-क्या हैं।   प्रिंट और टीवी में काम किया है। ऑडियो बुक्स, टीवी सीरियल, पॉडकास्ट की दुनिया में प्रयोग किये।  धर्मयुग, वनिता, दैनिक हिंदुस्तान, अमर उजाला, नंदन आदि में वरिष्ठ पदों का दायित्व संभाला। बच्चों के लिए लिखा, बड़ों के लिए भी। वेब सीरीज़ लिखी।  गे और लेस्बियन के साथ भी काम किया और उन्हें समझा। उन्होंने लेखन में विविध प्रयोग किये हैं। लिव इन पर भी लिखा और हॉरर भी।  30 शेड्स ऑफ़ बेला का संपादन भी किया। फिल्मों के लिए लिखने में भी हाथ आजमाया। वे जो भी है जबरदस्त हैं।  खास बात यह है कि वे  ओरिजिनल हैं। उनका लेखन जिंदगी से जुड़े उनके अनुभव और कहानी कहने की उनकी कला अच्छी लगती है।

हाल ही में उनका धारावाहिक ऑडियो उपन्यास 'कुछ लव जैसा'  सुना था। उसमें दोस्ती और प्यार की खट्टी-मीठी कहानी थी और उन लोगों की कहानी थी जो विज्ञापन की दुनिया से हैं। ग्लैमर की दुनिया! जयंती की खूबी है किउनके पात्र सही जगह, सही अल्फ़ाज़ का उपयोग करते हैं।  सही जगह डरते हैं, प्यार करते हैं और सिसकारी लेते हैं। वक्त आने पर जाम और वक्त आने पर आंसूं छलकते हैं।  उन्हें पता है कि लोगों के क्या सपने होते हैं, लोगों के जीवन में किस तरह के संघर्ष आते हैं और कहां-कहां उन्हें समझौते करके निकल जाना होता है!

मैमराज़ी एक अलग ही तरह की कहानी अलग स्टाइल में कहता है। यह उपन्यास उन पात्रों को लेकर रचा गया है जो छोटे शहर में हैं, एक दूसरे के जीवन में ताक-झांक करते हैं, मदद करते हैं, मदद लेते हैं और इस तरह मदद लेते हैं जो आम शहरी लोगों की कल्पना से बाहर है। तरह-तरह के पात्र ऐसे हैं जैसे किसी आर्केस्ट्रा के वाद्य यंत्र हों। उनकी सामूहिक ध्वनियाँ और स्वर किसी शहर का संगीत हो। उन लोगों की अपनी चुनौतियां हैं, भाग दौड़ भरी जिंदगी है और उनके मासूम सपने हैं!

जयंती के नए उपन्यास की कहानी में उजागर नहीं करना चाहूंगा।  बस इतना ही कहूंगा कि यह उपन्यास हल्की-फुल्की घटनाओं को लेकर गूंथा गया है।  जैसे कि आप कोई रोचक फिल्म देख रहे हों ।  इसमें रोचकता का पूरा ध्यान रखा गया है और बड़े दिलचस्प तरीके से बताया गया है कि कैसे छोटे  शहर की आंटी  अपने पड़ोस में रहने वाले पड़ोसी के बारे में ताक-झाँक  करती रहती है।  ऐसा लगता है कि सब कुछ आपके सामने ही घट रहा हो। पृष्ठभूमि भिलाई की है, जहां जयंती ने जिंदगी के कई साल गुजारे।  दिलचस्प बात यह है की जयंती दक्षिण भारत मूल की हैं और हिन्दी में लिखती हैं।  

 

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