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कहा जाता है कि सत्य केवल सत्य होता है। न आगे, न पीछे। न आधा, न पूर्ण। सत्य को रचा नहीं जाता, वह खुद ब खुद हो जाता है, लेकिन अब आभासी और इंटरनेट की दुनिया में सत्य तेजी से रचा जा रहा है। मीडिया को हम सत्य और वस्तुगत जीवन मूल्यों का पहरेदार समझते है, लेकिन अब यह बात खुद ब खुद साबित होती जा रही है कि इंटरनेट और आभासी दुनिया में रचे जा सकने वाले सत्य का बोलबाला है।

9 अगस्त को इंदौर में जेएनयू के नेता कन्हैया कुमार और उनके साथी एक कार्यक्रम में आए। एक वर्ग के लोगों ने तय किया कि कन्हैया कुमार देशद्रोही है, इसलिए उसका कार्यक्रम नहीं होने दिया जाएगा। भारी पुलिस सुरक्षा के बीच वह कार्यक्रम संपन्न हुआ। मैं भी उस कार्यक्रम में उपस्थित था। कार्यक्रम खत्म होने के बाद घर पहुंचा ही था कि वाट्सएप पर संदेश आए कि कन्हैया कुमार की कार पर पथराव किया गया। बहुत अफसोस हुआ, क्योंकि कन्हैया कुमार में अपने भाषण की पहली ही लाइन में कहा था कि हम भारत के टुकड़े करने की बात कैसे कर सकते हैं? मेरे खिलाफ झूठा प्रकरण बनाया गया और यहीं कारण है कि न्यायालय ने मुझे जमानत पर रिहा किया। अगर मैंने देश के टुकड़े करने की बात का समर्थन किया होता, तो क्या न्यायालय मुझे जमानत पर छोड़ता? जमानत पर छोड़ने के पहले पुलिस से पूछा जाता है। ऐसे में पुलिस आपत्ति नहीं करती क्या? आगे कन्हैया कुमार ने कहा कि भारत को खमण-ढोकला है, जिसे कोई भी टुकड़े-टुकड़े कर सकता है? खैर, अगले दिन फेसबुक खोला, तो ऐसे कई चित्र उस पर पोस्ट थे, जिनमें कन्हैया कुमार अपना काला मुंह लटकाए मंच पर बैठा है। पोस्ट लिखने वाले को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता था, मैंने उसे फोन किया और पूछा कि मैं उस कार्यक्रम में शुरू से आखिरी तक था और वहां ऐसी कोई घटना तो हुई ही नहीं थी। मुझे जवाब मिला कि यह एक देशद्रोही के खिलाफ मेरी बगावत है। इससे पहले की पोस्ट देखिए, मैंने फेसबुक पर लिख दिया था कि अगर कन्हैया कुमार इंदौर आया, तो मैं उसका मुंह काला करूंगा। अब रूबरू जाकर उसका मुंह काला नहीं कर पाया, तो मैंने फेसबुक पर तो उसका मुंह काला कर ही दिया।

आभासी और इंटरनेट की दुनिया में हर एक व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार दिया है। फेसबुक, ट्विटर, लिंक्ड-इन, कोरा, इंस्टाग्राम आदि किसी भी मंच पर जाकर आप अपनी बात कह सकते है। हजारों-लाखों लोगों तक आप अपनी बात इंस्टेंट भेज सकते हैं। उस पर कोई सेंसरशिप नहीं है, कोई संपादन नहीं है। शायद इसीलिए यहां जमकर छिछालेदार की जाती है और अपनी भड़ास को सार्वजनिक किया जाता है। यहां तथ्य तर्क और सभ्यता के पैमानों को लागू नहीं किया जाता। यहां तो उल्टा असत्य, भ्रामक तथ्य और मनगणंत बातों को इस तरह प्रचारित किया जाता है कि वे सच का आभास देने लगती है। यह सच उन लोगों के लिए होता है, जो इससे लाभ कमाना चाहते हैं।

पहले केवल बाल ठाकरे ही ऐसे नेता थे, जो अपनी बात हिन्दू ह्रदय सम्राट की छवि को प्रचारित करते थे। आजकल तो हर शहर में मोहल्ले-मोहल्ले में हिन्दू ह्रदय सम्राट और युवा ह्रदय सम्राट पैदा हो गए है। अपने-अपने स्तर पर ये खास एजेंडा में लगे रहते हैं। सच को निर्मित करने का एजेंडा। बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से इन लोगों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन सारे अभियान का उद्देश्य है कि लोग बौधिकता के प्रभाव से दूर रहे। हर व्यक्ति इसी भ्रम में रहे कि वह महान बौद्धिक है, यहां बौद्धिक बनने के लिए उसे केवल माउस का क्लिक ही तो दबाना है या फिर कंट्रोल कॉपी और कंट्रोल पेस्ट के बटन।

सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इंटरनेट और आभासी दुनिया में झूठ को इस तरह लगातार परोसा जा रहा है कि आम आदमी उसे ही सच मानने लग जाता है। आज हम लोग यहां ओरछा में है और भोपाल में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिल रहे है। अमित शाह की तीन दिन की भोपाल यात्रा को इस तरह प्रचारित किया जा रहा है, मानो यह मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण राजनैतिक घटना हो। अखबारों और टीवी चैनलों को मैनेज किया जा रहा है। इस यात्रा के दो-तीन सप्ताह पहले से ही सोशल मीडिया पर लगातार यह बात कहीं और प्रचारित की जा रही है कि अमित शाह ने पार्टी को कहां से कहां तक पहुंचाया है। उन्हीं के बदौलत बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बनी है, जिसके ग्यारह करोड़ से भी ज्यादा सदस्य है। लगातार यह बात प्रचारित की जा रही है कि अमित शाह ने पिछले तीन साल में कितने लाख किलोमीटर की यात्राएं की और कितने लोगों से मिले। कोई यह नहीं बता रहा कि उनके खिलाफ पहले कौन-कौन से मामले चले। ये वहीं अमित शाह है, जिन्हें गुजरात से तड़ीपार कर दिया गया था।

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फोटो सौजन्य  : संदीप नाईक

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टियों की तरह ही दूसरी तमाम पार्टियों ने आभासी और इंटरनेट की दुनिया में सत्य रचने के लिए सैकड़ों लोगों की टीमें बना रखी है। पार्टी के कुछ सिपहसालारों के इशारे पर ये लोग सोशल मीडिया पर अभियान चलाना शुरू कर देते है कि उन्हें किस को बदनाम करना है और किस की जय-जयकार करनी है। अपने इस सत्य को रचने के अभियान में इन लोगों ने अपनी कुछ खास वेबसाइट और पोर्टल भी बना रखे है। अगर पार्टी का कोई सामान्य कार्यकर्ता अपनी तरफ से कोई बात कहें, तो ऐसा लगता है कि यह उसकी कोई निजी राय होगी, लेकिन वह सोशल मीडिया पर इन दुष्प्रचार करने वाली वेबसाइट्स के लिंक शेयर करते है और साथ में अपनी राय लिखते है। इन वेबसाइट्स के नाम जानी-मानी और मशहूर मीडिया कंपनियों के नाम से मिलते-जुलते है। जैसे देसीसीएनएन.कॉम, वायरलन्यूज.कॉम, बेस्टहिन्दीन्यूज.कॉम, देशयुग.कॉम, इंसीस्टपोस्ट.कॉम, दनमोप्रेस.कॉम, इंडियासंवाद.कॉम आदि। इन वेबसाइट्स पर गोवियल्स की विचारधारा के अनुसार कार्य किया जाता है। राहुल गांधी कितनी भी गंभीरता से कार्य करें, वे पप्पू ही कहलाएंगे। कन्हैया कुमार को देशद्रोही का सर्टिफिकेट बांटना हो, तो ये ही बांटेंगे। अरविन्द केजरीवाल इनके लिए जोकर हैं। किरण यादव इनके लिए सुपरस्टार है। इंसीस्ट पोस्ट का एक शीर्षक उल्लेखनीय है, जिसमें कहा गया कि अब सुधरेंगे देश विरोधी मुसलमान। 15 अगस्त को जिन मदरसों में नहीं होगा राष्ट्रगान, वहां यह काम करेगी योगी सरकार। प्रमुख नेताओं के ट्वीट को तोड़-मरोड़कर और गलत अनुवाद के साथ पेश करना भी इसी तरह की गतिविधियों का हिस्सा है। बात इससे भी आगे बढ़ चुकी है और अब डॉक्टर्ड वीडियो और फोटोशॉप किए हुए दृश्य उपयोग में लाए जाने लगे है।

इन वेबसाइट्स और पोर्टल के आलेखों को हजारों की संख्या में शेयर किया जा रहा है और यह बात प्रचारित की जा रही है कि भारत और चीन का युद्ध होना ही है। यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि नोटबंदी के बाद आतंकी गतिविधियां थम गई है। अन्ना हजारे अब इन लोगों के लिए उपहास का विषय है। विकास का गुजरात मॉडल बहुत कामयाब रहा है और अब पूरा देश उसी पर चल रहा है। यह सबकुछ ऐसा ही है, जैसा अमेरिका में हुआ था। वहां डोनाल्ड ट्रम्प ने तो बराक ओबामा के अमेरिकन होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया था। उन्होंने कहा था कि ओबामा का जन्म अमेरिका में हुआ ही नहीं, तो वे अमेरिकन कैसे हो गए? क्लिंटन परिवार को उन्होंने कातिलों का परिवार तक कह डाला। उन दावों में से कुछ भी सच्चाई की कसौटी पर नहीं कसा गया। पोलिटीफेक्ट.कॉम के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के बाद ट्रम्प ने जितने भी बयान दिए, उनमें से सिर्फ चार प्रतिशत ही सही थे। बराक ओबामा के बयानों में से 21 प्रतिशत बयान सही पाए गए।

ओबामा को इस्लामिक स्टेट का संस्थापक और हिलेरी क्लिंटन को सहसंस्थापक बताकर अमेरिका के पतन का दोषी ठहरा दिया गया। ट्रम्प ने यह बात पूरे अमेरिका को बार-बार समझाई कि मेक्सिकन आव्रजकों के कारण ही अमेरिका के मूल निवासियों को आर्थिक मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। यह बात भी प्रचारित की गई कि अमेरिका के लिए अगर कोई खतरा है, तो वह वहां के मुसलमान। अमेरिका जैसे देश में बड़ी संख्या में लोगों ने उस पर भरोसा किया और डोनाल्ड ट्रम्प को राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचा दिया।

इसी तरह ब्रिटेन में ब्रेक्सिट के मामले में यही प्रचारित की गई कि यूरोपीय संघ से जुड़े रहने के कारण ही ब्रिटेन में वहां के लोगों का भला करना संभव नहीं हो पा रहा है। ब्रिटेन में आव्रजकों को खतरा बताया गया और यूरोपियन संघ में ब्रिटेन के बने रहने पर वहां के लोगों को हो रहे नुकसान का खूब प्रचार किया। ‘यहां सत्य जाहिर होने के बाद की बात नहीं है, यहां बात है सत्य को गढ़ लेने की’। भारत में आप आए दिन दो कानूनों के खिलाफ चर्चाएं देख सुन सकते हैं, उनमें से एक है, दहेज उत्पीड़न विरोधी कानून (भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498ए) के खिलाफ बनाया गया माहौल और दूसरा है अजा-अजजा उत्पीड़न विरोधी कानून के दुरूपयोग का मामला। कुल मिलाकर ये दोनों अभियान समाज के पिछड़े और शोषित वर्ग के विरोध में ही चल रहे है। आभासी और इंटरनेट की दुनिया विकसित समाजों के लिए मुख्य माध्यम बन गया है। भारत में भी यह तेजी से बढ़ रहा है और मास मीडिया भी इसी माध्यम से अपनी राय निर्मित करता है। केथरिन वाइनर ने लिखा है कि डिजिटल युग में गलत सूचनाओं को प्रचारित करना अब ज्यादा आसान हो गया है। इन सूचनाओं को तेजी से शेयर किया जाता है और लोग उन्हें सच के रूप में स्वीकार कर लेते है। जिन मार्गों से तथ्यों का प्रसार होता है, झूठ का प्रसार भी उन्हीं मार्गों से हो रहा है। लोग एक-दूसरे की सोच को फॉरवर्ड करते जा रहे है, भले ही वह गलत, अधूरे और गुमराह करने वाली जानकारी ही क्यों न हो।

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने 16 नवंबर 2016 को यह घोषणा की थी कि पोस्ट ट्रूथ 2016 का सबसे चर्चित शब्द रहा है। एक साल में ही इसका प्रचलन 2000 प्रतिशत बढ़ गया है। अभी जिस तरह का सत्य रचा जा रहा है, वह दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान रचे जा रहे, सत्य की तरह है। विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद अनेक लोगों ने इस पोस्ट ट्रूथ को सच्चाई के पैमाने पर कसा और पाया कि वह सही नहीं है। वर्तमान दौर में ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती।

 

ओरछा में विकास संवाद द्वारा आयोजित ग्यारवें राष्ट्रीय मीडिया कान्क्लेव में पोस्ट ट्रूथ (रचा जाता सत्य) विषय पर 19 अगस्त को दिए गए भाषण का सारांश।

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