जैन धर्म की पहली आचार्य पद प्राप्त करने वाली साध्वी म.सा. चंदनाजी से मिलना एक विलक्षण अनुभव रहा। साध्वी जी को हाल ही में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। 86 वर्ष की उम्र में भी वे मानव सेवा के कार्य में सतत् जुटी हैं। इंदौर प्रवास के दौरान उनसे निजी मुलाकात प्रेरणादायी रहीं। कई विषयों पर उन्होंने अपनी बेबाक राय व्यक्त की।
मात्र 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया था। उन्होंने केवल तीसरी कक्षा तक ही औपचारिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उसके बाद उन्होंने अनेक जैन धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया। अपने स्वाध्याय के बल पर उन्होंने भारतीय विद्या भवन मुंबई से दर्शनाचार्य की उपाधि प्राप्त की और साहित्य रत्न तथा स्नातकोत्तर उपाधियां भी पाई।
चंदना जी लगभग 50 लाख लोगों का इलाज करा चुकी हैं। करीब 4 लाख नेत्र रोगियों के ऑपरेशन उन्होंने करवाए। बिहार जैसे इलाके में उन्होंने अनेक स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की। कच्छ में भूकंप आने के बाद उन्होंने दस अस्थायी स्कूल खोले थें, जिन्हें बाद में स्थायी कर दिया गया था। उन्होंने फॉर्मेसी का पहला कॉलेज भी कच्छ में खोला। पर्यावरण की जागरूकता के लिए भी वह सतत् कार्यरत हैं। आपने अमेरिका में सर्वोदय तीर्थ की स्थापना की हैं और कई देशों में आध्यात्मिक केन्द्र खोले हैं।
बिहार में उन्होंने एक धार्मिक संगठन वीरायतन की स्थापना की हैं, जो जाति, धर्म, पंथ या लिंग के भेदभाव के बिना समाजसेवा में रत हैं। साध्वी जी का सूत्र हैं कि जहां जिनालय (मंदिर) वहां विद्यालय और औषधालय।
निजी बातचीत में साध्वीजी ने कहा कि जब तक मानव अहंकार से मुक्त होकर एक दूसरे के प्रति सहयोग का भाव नहीं रखेगा, तब तक मानवता का उद्धार नहीं हो सकता। हम निस्वार्थ रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सेवा करें, तो पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में तैयार कर सकते हैं। जहां जाति-पाति, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेद बिल्कुल भी न रहें। 12 वर्ष तक कठोर मौन वृत रखने वाली और जैन साध्वियों जैसी कठिन तपस्या में लीन रहने वाली साध्वीजी मानती हैं कि पूरे विश्व में मानवता का एक ही धर्म होना चाहिए और पूरा विश्व ही एक परिवार की तरह रहना चाहिए।