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भूटान यात्रा की डायरी (1)

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भारत के पूर्वोत्तर में सीमा से जुड़ा हुआ भूटान दुनिया के सबसे खुशमिजाज लोगों का देश माना जाता है। ग्रास हेप्पीनेस इंडेक्स में भूटान दुनिया में पहले स्थान पर रहा है। भूटान के राजा का भी यहीं कहना है कि हम जीडीपी नहीं ग्रास हेप्पीनेस इंडेक्स को मानते हैं। ज्यादा से ज्यादा उत्पादन का लक्ष्य भी तो यहीं है कि लोग खुश रहे, लेकिन हमें यह बात पता है कि भोग विलासिता की वस्तुएं खुशी नहीं दे सकती। खुशी हमारे भीतर से आती है।

भूटान में कहीं भी घूमने जाओ, तो सब जगह शांति का एहसास होता है। कहीं भी झोपड़पट्टी नहीं, गंदगी का नामो निशान नहीं, शहर की सड़कों पर वाहनों के हॉर्न की आवाज तो सुनाई ही नहीं देती। 30-40 किलोमीटर से ज्यादा की स्पीड में वाहन भी दौड़ते नजर नहीं आते। मजेदार बात यह है कि पूरे देश में न तो कहीं ट्रैफिक सिग्नल है और न ही यातायात के लिए अलग से कोई पुलिस। भूटान में एक ही पुलिस है और वहीं सारे कार्य करती है। अगर जरूरत पड़े तो यातायात भी संभाल लेती है और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए गश्त भी कर लेती है। यहां तक कि राजा की सुरक्षा भी यहीं पुलिस करती है। भूटान की अपनी अलग से कोई सेना नहीं है। भूटान की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत की है। भारतीय सेनाएं भूटान की सीमा की रक्षा करती है और भारतीय विदेश नीति भूटान की विदेश नीति को संभालती है। इन्हीं कारणों से भूटान जाना हो तो पासपोर्ट की जरूरत नहीं। हां परमिट जरूर लेना पड़ता है। यह परमिट पासपोर्ट या वोटर आईडी कार्ड्स के आधार पर लिया जा सकता है। भारत के नागरिकों से किसी तरह का परमिट शुल्क भी नहीं लिया जाता।

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सड़क मार्ग और हवाई मार्ग दोनों से भूटान जाया जा सकता है। हाल ही में भारत, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल के बीच एक संधि हुई है, जिसके अनुसार अब इन देशों में आने जाने के सड़क मार्ग खुल रहे है। फिलहाल भूटान जाने के लिए आप भारत की गाड़ी लेकर तो जा सकते है, लेकिन उसके लिए भी अनुमति आवश्यक है। यह अनुमति सीमावर्ती क्षेत्र में भूटान सीमा के प्रवेश के वक्त लेना होती है। भूटान में पहाड़ी मार्ग है। यह मार्ग बेहद संकरे और घुमावदार है। इन पहाड़ी मार्गों पर चलने के लिए छोटी-छोटी कारें या मिनी बसें ज्यादा सुविधाजनक होती है। डीजल के वाहनों को पर्यावरण के विरुद्ध मानकर प्रोत्साहित नहीं किया जाता।

हवाई मार्ग से भूटान जाने के लिए एक ही कंपनी का विमान चलता है, वह है ड्रुक एयर। भूटान का पुराना नाम ड्रुक है और इसीलिए इस विमानसेवा को ड्रुक एयर कहा जाता है। यह विमान कंपनी वहां के राजा की है और किसी दूसरे देश की विमान कंपनियों को भूटान के इकलौते एयरपोर्ट पारो पर उतरने की अनुमति नहीं है। इकलौती विमान कंपनी होने के कारण इस विमान सेवा का किराया भी मनमाना है। न ही आप इस विमान कंपनी में ऑनलाइन बुकिंग करा सकते है, ट्रुक कंपनी के कुछ ट्रेवल एजेंट है और वे ही इसका टिकिट खरीदते-बेचते है।

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पारो हवाई अड्डे पर उतरो तो बड़ा अजीब लगता है। पतली सी पट्टी में बना हुआ यह हवाई अड्डा दुनिया के 10 सबसे खतरनाक हवाई अड्डों में गिना जाता है। भूटान में खुले और लंबे मैदान बहुत कम है। इसलिए छोटी सी जगह में यह एयरपोर्ट बनाया गया है। रनवे के पास ही एक नदी बहती है और दूसरी तरफ ऊंची-ऊंची पहाड़ी है। विमान टेकऑफ करता है तो सामने पहाड़ी आती है और उतरता है तब भी पहाड़ी।

कोलकाता से पारो जाते वक्त यात्रियों का रोमांच और भी बढ़ जाता है जब विमान का पायलेट यह घोषणा करता है कि अभी हम जिस जगह के ऊपर से उड़ रहे है उसके नीचे बायी तरफ दुनिया की सबसे ऊंची पर्वतमाला हिमालय की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट दिखाई दे रही है। बादलों के ऊपर से उड़ते हुए विमान की खिड़की से भूटान की नदियां, सड़कें और पहाड़ देखने का अपना ही रोमांच है। यह रोमांच और भी बढ़ जाता है जब विमान पारो हवाई अड्डे पर उतरता है। पारो ही भूटान का एक मात्र हवाई अड्डा है। यहीं से अंतरराष्ट्रीय उड़ाने जाती है। पारो के अलावा और कोई हवाई अड्डा भूटान में है ही नहीं इसलिए यहीं नेशनल है और यहीं इंटरनेशनल।

हवाई अड्डे से बाहर आओ तो लगता है कि आप किसी बौद्ध विहार में प्रवेश कर रहे है। हवाई अड्डे की इमारतें बौद्ध शैली की बनी हुई है। लकड़ी का शानदार काम उस पर है। कम विमानों की आवाजाही के कारण एयरपोर्ट पर गहमा-गहमी बहुत सीमित है। बड़े जम्बो जेट यहां उतर नहीं सकते इसलिए छोटे विमानों से ही काम चलाना पड़ता है। छोटे विमान यानी कम यात्री। पारो एयरपोर्ट पर ही भारत के किसी छोटे हवाई अड्डे की तरह सभी सुविधाएं उपलब्ध है। भारत के अलावा जापान, कोरिया, सिंगापुर, मलेशिया आदि देशों से भी पर्यटक यहां आते है। यूरोप के पर्यटकों की संख्या भी काफी है और भारतीय पर्यटक भी बड़ी संख्या में यहां देखे जा सकते है।

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भूटान में भारतीय रुपए में कारोबार भी होता है। दुकानदार भारतीय रुपया भी स्वीकार करते है। भूटानी रुपए की कीमत भी भारतीय रुपए के बराबर है। एयरपोर्ट पर ही भूटान की मोबाइल कंपनियों के सिम कार्ड उपलब्ध है। आप यहां से भारतीय रुपए को भूटानी रुपए में भी बदल सकते है। भूटानी रुपए पर वहां के राजा और रानी की तस्वीर प्रमुखता से है। पुराने रुपयों में पुराने तत्कालीन राजा की तस्वीरें देखी जा सकती है। एयरपोर्ट से जब हम अपनी मिनी बस में रिसोर्ट की ओर बढ़ें तब नजारे नयनाभिराम थे। हर कोई खिड़की से बाहर झांक रहा था। बर्फ से लदे हुए पहाड़, हरी-भरी वादियां, बल खाती हुई सड़कें और कल-कल बहती हुई नदियां भूटान की प्राकृतिक संपन्नता बयान कर रही थी।

पूरे रास्ते कहीं भी कोई ट्रैफिक सिग्नल नहीं और न ही किसी भी चौराहे पर कोई सिपाही। सारे लोग अनुशासन में थे और कोई भी वाहन ओवरटेक नहीं कर रहा था। जहां-जहां पार्किंग लाट थे, वहां वाहन बेहद करीने से पार्क किए हुए नजर आ रहे थे। हमारे गाइड ने बताया कि भूटान में हर कोई दूसरे वाहन के लिए पहले जगह देना पसंद करता है। आगे निकलने की होड़ नहीं होने से हॉर्न बजाने की घटनाएं बहुत कम होती है। वाहनों में ओवरलोडिंग भी नहीं देखने को मिली।

हमारी मिनी बस के वंâडक्टर ने कम से कम तीन बार यात्रियों की गिनती की। उसने बताया कि यहां ट्रैफिक पुलिस वाले नहीं होते, लेकिन कभी-कभी आरटीओ के अधिकारी जांच करने सड़क पर आ जाते है। अगर कोई भी वाहन ओवरलोड पाया जाता है तो उस पर तत्काल जुर्माना ठोंक दिया जाता है। जुर्माने के नियम भी बेहद आसान है। अगर एक यात्री ओवरलोड पाया गया तो एक हजार रुपए जुर्माना, दो पाए गए तो दो हजार और अगर दस पाए गए तो दस हजार रुपए का जुर्माना। यह जुर्माना मौके पर ही भरना पड़ता है, वरना वाहन जब्त कर लिया जाता है।

पूरे दिन में अगर आपने एक-दो बार हॉर्न की आवाज सुन ली तो भी बहुत बड़ी बात होगी। जब हमारी गाड़ी एक घाट से गुजर रही थी, तब हमारे गाइड ने बताया कि अभी हम जिस जगह से गुजर रहे है यह बहत ही खतरनाक घाट है। इस जगह पर सन् 2007 में एक कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिससे दो लोग घायल हो गए थे। हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था कि 2007 में हुई एक दुर्घटना जिसमें 2 लोग घायल हुए थे, को यह गाइड किसी बड़ी ऐतिहासिक दुर्घटना की तरह बता रहा था। इसका कारण यह था कि वहां सड़क दुर्घटनाएं नहीं के बराबर होती है।

यहीं था हमारा भूटान से पहला परिचय। जब हम रिसोर्ट पहुंचे, तब भूटान के प्रति हमारे मन में जिज्ञासा बहुत बढ़ चुकी थी।

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लेस इज मोर- भूटान का दर्शन

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भारत में रहने वाले हम भारतीयों की आदत है भव्यता से प्रभावित होना। हमारी सभ्यता चाहे जो हो, हमारा दर्शन चाहे जो कहें पर हमें भव्य चीजें बहुत आकर्षित करती है। विशालता भी हमें लुभाती है। इससे ठीक उलटा भूटान में लोग ज्यादा की चाह नहीं करते। लेस इज मोर भूटान के लोगों का दर्शन है।

राजा और प्रजा में पिता-पुत्र का रिश्ता है बरकरार

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हमारे गाइड ने बताया कि राजा हमारे पिता के समान है और वे हमारा पूरा ख्याल रखते है। कॉलेज में लड़के और लड़कियों के होस्टल अलग-अलग होते है, लेकिन लड़कियों के होस्टल में भी लड़के आराम से आ-जा सकते है। वहां ऐसी कोई बंदिश नहीं है।

 भारत के पड़ोस में बसा स्वर्ग

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दुकानों पर पोस्टरों में भूटान के राजा और रानी के पोस्टर बिकते हुए देखे जा सकते है। वहां के लोगों में राजा और रानी के प्रति खास लगाव देखने को मिला। कोई भी भूूटानी अपने राजा की बुराई नहीं सुन सकता। राजशाही के खिलाफ बोलो तो भी किसी को पसंद नहीं आता। भूटानियों का कहना है कि हमारा राजा पिता के समान है और हमारा बहुत ध्यान रखता है। राजा के साथ ही रानी भी काफी लोकप्रिय है।

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