भूटान यात्रा की डायरी (2)
भारत में रहने वाले हम भारतीयों की आदत है भव्यता से प्रभावित होना। हमारी सभ्यता चाहे जो हो, हमारा दर्शन चाहे जो कहें पर हमें भव्य चीजें बहुत आकर्षित करती है। विशालता भी हमें लुभाती है। इससे ठीक उलटा भूटान में लोग ज्यादा की चाह नहीं करते। यह फिल्मी गाना शायद उन्हीं लोगों के लिए लिखा गया है- ‘थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है’। लेस इज मोर भूटान के लोगों का दर्शन है। इसीलिए भूटान की हरियाली, सादगी, भोगहीनता, संतोष, अंधविश्वासहीनता और ईमानदारी लुभाती है। भूटान जाने वाले भारतीयों की काफी खोजबीन होती है।
आमतौर पर श्रमिक वर्ग के लोगों को वहां प्रवेश के लिए परमिट देने में बहुत आनाकानी की जाती है। भूटान की सरकार को डर है कि श्रमिक वर्ग के लोग वहां जाकर बस गए तो वहीं मजदूरी करने लगेंगे और फिर भारत नहीं लौटेंगे। अपने यहां आने वाले पर्यटकों को लेकर भूटान इतना सख्त है कि उसने उन पर्यटकों की संख्या पर सीलिंग लगा रखी है। एक संख्या से अधिक पर्यटकों को वह आमंत्रित ही नहीं करता। खुलेपन की नीति वहां नहीं है। उसे पर्यटकों से होने वाली आय का भी कोई लालच नहीं है।
भूटान में बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या सबसे ज्यादा है। भूटान में भगवान बौद्ध से बड़ा कोई नहीं माना जाता है। यहां के राजा को लोग अपने पिता के समान मानते हैं और पूरे देश में राजा और रानी के अलावा किसी और के होर्डिंग्स नजर नहीं आते। राजा और रानी की तस्वीरें, लॉकेट, स्मृति चिन्ह जगह-जगह दुकानों पर बिकते है। भूटान में हर परिवार को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। पुरुष आमतौर पर नौकरियां करते है और महिलाएं खेती और दुकान संभालती है। यहां की दुकानों में भारत की दुकानों जैसे बड़े-बड़े दरवाजे नहीं होते। घर की तरह छोटे दरवाजे होते है और दुकानें भी अंदर होती है। फुटपॉथ पर दुकानें नहीं लगाई जा सकती। इन दुकानों में आमतौर पर महिलाएं ही पूरा कारोबार संभालती है। बच्चे भी दुकान के अंदर ही खेलते रहते है या मां की गोद में लिपटे पाए जाते है। भूटान के दुकानदारों में माल बेचने की कोई होड़ नहीं है। ग्राहकों को लुभाने के लिए भी वो कोई मोल-भाव करना पसंद नहीं करते। दुकानदारों की धारणा है कि जिसको जितना खरीदना है वह उतना ही खरीदेगा। इसलिए ज्यादा मोल-भाव का चलन वहां नहीं है। भूटान में हर सरकारी कर्मचारी को वहां की राष्ट्रीय पोशाक पहनना जरूरी है। पुरुषों के परिधान को ‘घो’ और महिलाओं की पोशाक को ‘कीरा’ कहते है।
पूरे भूटान में सिगरेट और तम्बाकू पर प्रतिबंध है। पूरे देश में पॉलिथीन पर भी रोक है। आप सड़क पर कुड़ा नहीं फेंक सकते और अगर कूड़ा फेंकते हुए पाए गए तो न केवल आर्थिक जुर्माना देना पड़ सकता है बल्कि जेल की यात्रा भी करनी पड़ सकती है। इन कारणों से पूरा भूटान साफ-सुथरा नजर आता है। भूटानी लोग कहते है कि भूटान एक पवित्र पुण्य भूमि है और इस भूमि का कोई भी कण ऐसा नहीं, जिसे प्रभु का आशीर्वाद न मिला हो। उन्हें लगता है कि भगवान बुद्ध हर जगह विराजमान है और हमारे शोर मचाने से उनके ध्यान में खलल पड़ सकता है। इसलिए भूटान के लोग धीमे स्वर में बात करना पसंद करते है। लाउड स्पीकर का उपयोग कहीं नजर नहीं आता। वाहनों के हॉर्न कभी-कभार ही सुनने को मिलते है, लेकिन वे भी करकश नहीं होते। चिल्लाकर कोई भूटानी बात नहीं करता।
भूटान के चौथे महाराजा जिग्मे सिग्वे वांगचुक ने भूटान में ग्रास नेशनल हेप्पीनेस की अवधारणा रखी थी। उनका मानना था कि भौतिक साधनों से कोई खुशी नहीं मिलती। जीडीपी एक बेमतलब की बात होती है। नेशनल हेप्पीनेस से उनका आशय लोगों की आर्थिक आत्मनिर्भरता, पर्यावरण की सुरक्षा, भूटान की संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करना शामिल है। भूटान मानता है कि उसकी सांस्कृतिक पहचान ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। सरकार चाहती है कि लोग भौतिक संसाधनों के कारण नहीं दिल से खुश रहे। भूटान में राजा का जनता से संपर्क बना रहता है और वह आम लोगों के बीच भी जाते है।
भारत में लोग शिवलिंग की पूजा करते है। शिवलिंग के रूप में शिला की पूजा की जाती है। भूटान में लोग लिंग और यौनी दोनों की पूजा करते है। भूटान के लोग मानते है कि रतिकर्म ही मोक्ष प्राप्ति का साधन है। यहां की दुकानों में लकड़ी के छोटे-छोटे से लिंग बिकते है। इन लिंगों को पूजा स्थान पर रखा जाता है। चाभी के गुच्छे में लगाने के लिए भी छोटे-छोटे लिंग के आकार की वस्तुएं मिलती है। कई दुकानों के बाहर दरवाजे के दोनों तरफ लिंग के आकार के चिन्ह और तस्वीरें भी लगाई जाती है। ऐसा कहते है कि भूटान के एक संत द्रुुकपा कुनले ने यहां के लोगों को संभोग से समाधि तक जाने का मार्ग बताया था। यह भी कहा जाता है कि सन्त कुनले ने करीब पांच हजार महिलाओं के साथ यौन संबंध स्थापित किए थे। तिब्बत में जन्मे संत कुनले के पास यह शक्ति थी कि वे किसी भी व्यक्ति को दुष्टों से रक्षा करने वाले देवताओं में बदल सकते थे। कुनले के लिंग को थंडर बोल्ट ऑफ फ्लेमिंग फिजडम कहा जाता है। कुनले की तुलना भारत में चार्वाक से की जा सकती है। संत कुनले अपने आश्रम में सोमरस पीकर मस्त रहते थे और दुनियाभर की महिलाएं उनका आशीर्वाद पाने के लिए उनके मट में आती थी। कुनले ने बौद्ध धर्म के भीतर ही अपनी एक अलग शाखा बना ली। अपने आश्रम में आने वाली महिलाओं को वे उनके साथ यौन संबंध बनाकर आशीर्वाद देते थे। अनेक परिवार अपनी युवा पुत्री को कुनले के पास ले जाते थे ताकि उनका कौमार्य भंग किया जा सके। सैकड़ों साल बाद भी भूटान में कुनले के शिष्य उनकी परंपरा का निर्वाह कर रहे है और अपने आश्रम में आने वाली महिलाओं को अपने लिंग से आशीर्वाद दे रहे है। भारत में दिगंबर जैन संप्रदाय के साधु भी निर्वस्त्र रहते है, लेकिन लिंग से आशीर्वाद देने की परंपरा यहां नहीं है। ये दिगंबर साधु कठोर जीवन जीते है और भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते है। इन साधुओं का भूटान के साधुओं से कोई लेना-देना नहीं है।
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दुनिया के सबसे खुशमिजाज लोगों का देश भूटान
भारत के पूर्वोत्तर में सीमा से जुड़ा हुआ भूटान दुनिया के सबसे खुशमिजाज लोगों का देश माना जाता है। ग्रास हेप्पीनेस इंडेक्स में भूटान दुनिया में पहले स्थान पर रहा है। भूटान के राजा का भी यहीं कहना है कि हम जीडीपी नहीं ग्रास हेप्पीनेस इंडेक्स को मानते हैं।
राजा और प्रजा में पिता-पुत्र का रिश्ता है बरकरार
हमारे गाइड ने बताया कि राजा हमारे पिता के समान है और वे हमारा पूरा ख्याल रखते है। कॉलेज में लड़के और लड़कियों के होस्टल अलग-अलग होते है, लेकिन लड़कियों के होस्टल में भी लड़के आराम से आ-जा सकते है। वहां ऐसी कोई बंदिश नहीं है।
दुकानों पर पोस्टरों में भूटान के राजा और रानी के पोस्टर बिकते हुए देखे जा सकते है। वहां के लोगों में राजा और रानी के प्रति खास लगाव देखने को मिला। कोई भी भूूटानी अपने राजा की बुराई नहीं सुन सकता। राजशाही के खिलाफ बोलो तो भी किसी को पसंद नहीं आता। भूटानियों का कहना है कि हमारा राजा पिता के समान है और हमारा बहुत ध्यान रखता है। राजा के साथ ही रानी भी काफी लोकप्रिय है।