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आनंद मंत्रालय (4)
हम दोनों पति-पत्नी इंदौर से मुंबई ट्रेन से जा रहे थे। सेकंड एसी के डिब्बे में हमारे सामने दो महिलाएं बैठी हुई थी। एक स्टेशन पर चाय बेचने वाला आया। मैंने दो चाय ऑर्डर की और सामने बैठी महिला से पूछा कि क्या आप चाय लेंगी? उसने न तो मेरी बात सुनी, न मेरी ओर देखा, न कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की। मुझे बड़ा अटपटा लगा, थोड़ी बेइज्जती भी लगी, थोड़ी देर बाद उस महिला के साथ बैठी सहयात्री ने कहा - ये लो चाय। उस महिला ने खट से हाथ बढ़ाया और चाय ले ली। मैं बुदबुदाया कि क्या मैं चाय में जहर मिलाने वाला था? बहरहाल मैंने अनदेखा करना बेहतर समझा। करीब दो घंटे बाद अगले स्टेशन पर काफी सारे नए यात्री आने लगे। हमारी बर्थ आरक्षित थी, लेकिन डिब्बे का शुरुआती हिस्सा होने से लोग हमारी तरफ से गुजर रहे थे। ट्रेन में एक वृद्धा चढ़ी, उसने टिकिट निकाला और महिला की ओर बढ़ाकर पूछा - 39 नंबर बर्थ कहां होगी? महिला ने कोई जवाब नहीं दिया। वैसी ही अनजान बनी रही। कुछ घंटे बाद नागदा स्टेशन आया। तब उस महिला की सहयात्री ने कहा जयश्री नागदा आ गया है, खाना खा लें। उस महिला ने खट से टिफिन निकाला और टिफिन खोलने लगी।
आनंद मंत्रालय (3)
कई ऐसे लोग आपको वक्त आने पर पहचानते नहीं, जिनके जीवन में आपने कभी बहुत सकारात्मक भूमिका निभाई होगी और कई ऐसे लोग भी मिलते है, जिनसे आप दो मिनट भी नहीं मिलते, लेकिन वे आपको पहचानते है।
बात पुरानी है। सिंहस्थ के प्रभारी मंत्री ने कहा कि उज्जैन में व्यवस्था का जायजा लेने साथ-साथ चलेंगे। मुझे लगा कि अच्छा मौका है, सो चला गया। सोचा हींग-फिटकरी नहीं लग रही है, चलो ! अस्थायी सिंहस्थ नगरी देख लेंगे !
सबसे पहले हम एक आश्रम में गए। महामण्डलेश्वर अभी पधारे नहीं थे, लेकिन उनके स्टॉफ के लोग मौजूद थे। दो हाथी बंधे थे, जिन्हें संभालने के लिए वन विभाग के कर्मचारी तैनात थे। घोड़े भी थे। सेवक ने महामण्डलेश्वर के लिए बनी एसी ‘कुटिया’ बनाई गई थी, चमाचम। जिसमें आधुनिक शौचालय था, बाथटब भी लगा था। कार्पेट बिछा था। मंत्रीजी से महामण्डलेश्वर के ‘पीए’ ने शिकायत की - आश्रम के लिए जो प्लॉट मिला है, वह मुख्य सड़क से दो सौ मीटर अंदर है। यह ठीक नहीं। यह अपमान है।
आनंद मंत्रालय (1)
प्रसिद्ध गणेश मंदिर के बरामदे में बैठकर बड़ा सुकून मिलता है। उस दिन पता नहीं क्या सूझा कि सुबह-सुबह मंदिर चला गया। दर्शन के बाद बरामदे की सीढ़ियों पर टिककर बैठ गया और आने-जाने वाले लोगों का मुआयना करने लगा। एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अपनी पत्नी के साथ आए थे और बात कर रहे थे। गणेशजी की कृपा हुई, तो मनचाही पोस्टिंग मिल ही जाएगी। यहां न तो कमाई हो रही है और न ही शांति है। हे गणेशजी, मेरी प्रार्थना सुनना। चेहरे पर उदासी का भाव था।