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आजकल रेलवे के किराए में बढ़ोत्तरी के पक्ष में माहौल बनाने में लगे है। इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि रेल भाड़ा बढ़ रहा है और लोग उसके पक्ष में तर्वâ ढूंढ रहे है। यह कहा जा रहा है कि भाड़ा तो बढ़ जाने दीजिए। फिर देखिए रेलवे स्टेशन हवाई अड्डों की तरह जग-मग नजर आएंगे। रेल के डिब्बे में एयर होस्टेस से भी सुंदर-सुंदर परियां चाय बिस्कुट बाटेंगी। साफ-सफाई पूरी रहेगी। शौचालय में खुशबू महकेगी और धोने-पोछने की उत्तम व्यवस्था उपलब्ध रहेगी। यानि पानी के मग्गे में बंधी चेन लंबी होगी और पेपर नेप्कीन की जगह अखबारों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा।
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (05 जुलाई 2014)
हमारा मध्यप्रदेश उस बीपीएल परिवार की तरह है, जिसमें खाने के लाले पड़ते हैं, लेकिन शादी-ब्याह का जश्न बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। प्रदेश की हालत चाहे जो हो, सरकारी आयोजनों में करोड़ों रुपए खर्च करना सामान्य बात है। प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम होने के बावजूद मध्यप्रदेश में पेट्रोलियम पदार्थों पर सर्वाधिक टैक्स है। बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री जयंत मलैया इस पर कुछ नहीं कहते और बाद में जब पत्रकार पूछते हैं तब कहते हैं कि केन्द्र सरकार के बजट के बाद इस पर विचार होगा। शब्दों पर गौर करें 'इस पर विचार होगा
आजकल नरेन्द्र मोदी के सलाहकार बहुत बढ़ गए हैं। पता नहीं, कब इनकी भर्ती हुई होगी, लेकिन इन लोगों की जो सलाहें अखबारों में छप रही हैं, वे अद्भुत हैं. बाबा रामदेव के सहयोगी और कई भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों का सलाहकार होने का दावा करनेवाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने तो हद ही कर दी. जरा उनके लेखों के शीर्षक तो देखिए--कैसी हो प्रधानमंत्री की टीम, प्रधानमंत्री की दिनचर्या कैसी हो, प्रधानमंत्री की पोशाक इस तरह हो, कैसा होना चाहिए प्रधानमंत्री का कार्यालय, पडोसी देशों से कैसे हो प्रधानमंत्री के रिश्ते, प्रधानमंत्री की साख बढ़ाने के कुछ तरीके ये रहे, बाहरी दखल से कैसे बचे प्रधानमंत्री कार्यालय।
'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम (18 अक्टूबर 2014)
कुछ बरसों से इंदौर में होर्डिंग लगाने का चलन बहुत बढ़ गया है। होर्डिंग के ‘रचनाकारों’ ने अलग ही शब्दावली गढ़ दी है। इस शब्दावली में ‘मध्यप्रदेश के सबसे ... शहर में’ आपका स्वागत लिखा जाना पहली प्राथमिकता बन गया है। यह ... स्थायी है इसके बीच में कोई भी अपना मनचाहा शब्द लिखकर होर्डिंग लगवा सकता है।
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (03 मई 2014)
इंदौर इंडिया का अनूठा शहर है। यह वैसे तो इंडिया में ही है, लेकिन यहां के अपने ट्रैफिक रूल्स हैं। अगर आपको नहीं मालूम हों तो कृपया नोट कर लें या इस कॉलम को काटकर अपने पर्स में रख लें। अगर आपने अपनी गाड़ी पर 'प्रेस' नहीं लिखवाया है तो अभी लिखवा लें। इससे कोई फायदा-वायदा नहीं होता, पर यहां पर यही चलन में है। अगर आप ऑटो रिक्शा, टेम्पो या ट्रक भी चलाते हैं, तो यह लिखवाने में कोई हर्ज नहीं। 90 प्रतिशत वाहनों पर यह लिखा होता है।
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (13 सितम्बर 2014)
आम अमेरिकी खुद को मस्त मौला और लोगों की मदद करनेवाला दिखाता है, लेकिन ऐसा है नहीं। भारतीयों ने उनके 'आइस बकेट चैलेन्ज' को 'राइस बकेट चैलेन्ज ' बनाकर इस फर्जी सेवा अभियान की हवा निकाल दी। ए. एल. एस. ( अम्योट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस ) नामक बीमारी के खिलाफ अभियान चलाने के नाम पर 'एएलएस आइस बकेट' की धूम मच रही थी। पिछले साल तक 'कोल्ड वाटर बकेट' नाम चल रहा था जिसका मकसद कैंसर रोगियों की मदद का था पर 30 जून 2014 से यह खेल मीडिया के प्रभाव में आकर आइस वाटर बकेट बन गया।
'वीकेंड पोस्ट' में मेरा कॉलम ((15 नवंबर 2014)
पिछले हफ्ते पूरे देश में ‘किस ऑॅफ लव’ के चर्चे रहे। केरल के कोच्चि शहर में आपस में चुम्मा-चाटी करते हुए युवक-युवती को पीटने वाले लोगों के खिलाफ यह अभियान था। इस अभियान को चलाने वाले लोगों का मानना है कि उन्हें चुम्मा-चाटी करना पसंद है और वे इसे खुलेआम करना बुरा नहीं मानते। इन लोगों का कहना है कि चूमना एक निजी प्रक्रिया है और इससे किसी को कोई खतरा नहीं है।
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (06 सितम्बर 2014)
एक ज़माने में टाइम्स ऑफ़ इंडिया की हिंदी पत्रिका 'धर्मयुग' का बड़ा जलवा था। 'धर्मयुग' में एक कहानी छप जाने पर ही लोग किसी को लेखक मान लेते थे और एक कविता भर छपने से कवि। मैं धर्मयुग में उप संपादक बनने के लिए फाइनल इंटरव्यू दे रहा था। प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ धर्मवीर भारती उसके संपादक थे। डॉ भारती ने पूछा --''क्या-क्या पढ़ते हो?''
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (28 मई 2014)
कुछ दिन से ज्ञानचंद लोग बहुत बिज़ी हैं. चुनाव के आसपास उनका सीजन रहता है। वे ही सवाल खड़ा करते हैं और वे ही जवाब भी तैयार रखते हैं. जो पहले कहते थे कि एनडीए को बहुमत नहीं मिलेगा, अब कह रहे हैं--देखा ले आये न मोदी अपने बूते पर भाजपा का बहुमत.
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (30 अगस्त 2014)
बचपन में सड़कों के बारे में दो ही तरह की जानकारी थी। कच्ची सड़क और पक्की सड़क। गिट्टी और मिट्टी से जो सड़क बनती थी उसे कच्ची सड़क कहा जाता था, जिसके ऊपर मुरम बिछा दी जाती थी और दूसरी होती थी डामर की सड़क जिसे पक्की सड़क कहा जाता था। जैसे-जैसे बड़े होते गए, सड़कों के बारे में भी ज्ञान बढ़ता गया। सरकार का भी ज्ञान सड़क के बारे में बढ़ता गया। पहले इतना ही पता था कि कच्ची सड़क बनाने में ठेकेदार और नेता को कम कमाई होती है और पक्की सड़क बनाने में ज्यादा।
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (26 अप्रैल 2014)
इस चुनाव में बड़ी गड़बड़ी हो गई है. जिनको खड़ा नहीं होना चाहिए था, वे खड़े हो गए और जिनको घर बैठना था, वे दर दर वोट मांग रहे। यह हाल पूरे देश का है. अगर मेरे मनपसंद ये उम्मीदवार मैदान में होते तो चुनाव कितना दिलचस्प, रोमांटिक और ग्लैमरस हो जाता। अब आप ही बताइये--मैं ऐसी कौन सी गलत अपेक्षा रख रहा हूँ?
वीकेंड पोस्ट में मेरा कॉलम (23 अगस्त 2014)
केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि आरटीओ कार्यालय लक्ष्मी दर्शन की दुकान बन गए हैं, इसलिए उन्हें बंद किया जाएगा। इसकी जगह वे महालक्ष्मी दर्शन की दुकान खोलने जा रहे हैं। आरटीओ कार्यालय बंद होंगे और उनकी जगह खुलेंगे एलटीए का कार्यालय। रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस का नाम अब लैंड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी होगा। आरटीओ वालों की कमाई से नितिन गडकरी संतुष्ट नहीं हैं, उन्हें लगता है कि आरटीओ वालों की कमाई और ज्यादा होनी चाहिए। ज्यादा कमाएंगे तभी तो ज्यादा पैमेंट कर पाएंगे बेचारे।