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महाराष्ट्र के नासिक संभाग का जिला मुख्यालय है जलगांव। मुंबई से सवा चार सौ किलोमीटर दूर गिरनार नदी के तट पर बसा कस्बाई नगर, जलगांव में मुंबई या दिल्ली जैसे खुलेपर की तो बात ही नहीं, इस नगर में किसी रेस्तरां या सिनेमाघर में आप किसी एक अकेली लड़की को शायद ही कहीं देख पायें। कल्पना करना भी मुश्किल है कि ऐसे ‘परंपरागत भारतीय नगर’ में एक-दो नहीं, तकरीबन ५०० युवतियों के साथ जबरदस्ती की जाती रही हो और किसी ने उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत तक नहीं की हो।

शायद इसलिए कि अपराधी कांग्रेस पार्टी के छुटभैये नेता थे और स्थानीय नगरपालिका के अध्यक्ष और कांग्रेस के नेता सुरेश दादा जैन का शायद उन्हें अभयदान था। आर्थिक रूप से ये अपराधी ताकतवर थे। उनमें से एक प्रमुख आरोपी तो एक प्रसिद्ध वंâपनी में लेबर कांट्रेक्टर था, जिसकी मासिक आमदनी एक लाख रूपये तक थी। लेबर कांट्रेक्टर के रूप में उसका काम यही रहा करता था कि मजदूरों को अपने वाजिब हक के लिए संगठित न होने दो। मजदूर संगठन बनाने की कोशिश करने वाले हर मजदूर की मरम्मत करना ही उसका कार्य था।

 

इन अपराधियों की शिकार थी निम्न मध्यम वर्ग की युवतियां। एक युवती ने पुलिस को दिये बयान में कहा भी है कि वह अपनी बीमार मां को लेकर अस्पताल गयी थी। जब डॉक्टर ने ऑपरेशन की बात बतायी और तकरीबन ३५,००० रूपये के खर्च की बात कही तब रो पड़ी थी। तभी वहां एक पार्षद आया और उसने कहा कि उसकी एक चिठ्ठी से उसकी मां के ऑपरेशन की व्यवस्था हो सकती है। फिर वह पार्षद उस युवती को अपने घर ले गया और उसके साथ जबरदस्ती की। उस युवती ने यह बात बताने की हिम्मत कई महीने बाद जुटायी जबकि पूरे कांड का भंडाफोड़ हो चुका था।

उन अपराधियों का काम करने का तरीका यह था कि ये लोग पहले जरूरतमंद युवतियों से अच्छा संपर्वâ कर लेते थे। उनकी जरूरत की चीजें मुहैया करा देते थे। परीक्षा में मदद कर देते या फिर कोई छोटा-मोटा अहसान कर देते और आगे मदद के बहाने बुला कर उसे किसी पेय पदार्थ में नशे या बेहोशी की कोई चीज मिला कर पिला देते और फिर बलात्कार करके उसकी तस्वीरें या विडियो वैâसेट तैयार कर लेते और उसी के सहारे वे उसे ब्लैकमेल करते। ब्लैकमेल में रूपया मांगने से ले कर देह शोषण तक की हरकतें होती रही।

इन घृणित अपराधों का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ। अपराधियों ने ब्लैकमेल के लिए खींचे गये विडियो वैâसेटस की प्रतियां बना कर उन्हें ब्लू फिल्मों की तरह बेचने की कोशिश भी की और ‘जलगांव वैâसेटस’ के नाम से कई वैâसेट बिके भी। अपराधियों में दो चिकित्सक, दो पार्षद, एक पूर्व विधायक का पुत्र और कई अन्य प्रभावशाली लोग शामिल बताये गये हैं।

मुंबई के बमकांड की जांच के दौरान एक आरोपी की सूचना पर यह मामला प्रकाश में आया। तब इस पर हल्ला मचा। आनन-फानन में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक दीपक जोग ने पत्रकार वार्ता बुलायी और कहा कि इस मामले में ५०० युवतियों के साथ बलात्कार का संदेह है। पुलिस को कई घरों और लॉकरों से १८९ प्रिंट और नेगेटिव भी मिले हैं। कहा जाता है कि इनमें कई प्रभावशाली लोगों के फोटो भी है।

इस मामले का भंडाफोड़ होने के बाद भी कई दिनों तक कोई पीड़ित युवती आगे आ कर पुलिस को शिकायत करने का साहस नहीं जुटा सकी। पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा-२९२ के तहत अश्लील तस्वीरें रखनेवाली को गिरफ्तार किया। बाद में जब राज्य सरकार ने तीन वरिष्ठ महिला अधिकारियों की एक जांच समिति बनायी तब जा कर कुछ युवतियां अपनी आपबीती सुनाने आयी।

समिति के सामने जो आपबीती सुनायी गयी, उसके अनुसार ज्यादातर पीड़ित युवतियां निम्न या निम्न-मध्य वर्ग की हैं और उनमें से भी ज्यादातर जलगांव के बाहर की रहने वाली है, वे जलगांव आयी थी, नौकरी या पढ़ाई के लिए। ये अपराधी तत्व उन लड़कियों की तलाश में रहते, जिन्हें परीक्षा, बीमारी या नौकरी के लिए किसी की मदद की आवश्यकता होती। पहले तो ये शराफत से पेश आते और फिर उन्हें अपने किराये के मकान या स्थानीय तिरूपति होटल के कमरा नंबर २०६ में ले जाते। इस कमरे में छुपा कर विडियो वैâमेरा रखा हुआ था। जो भीतर की गतिविधियों की तस्वीरें खींचता रहता। बाद में ये लोग उसी वैâसेट को उजागर करने की धमकी दे कर उस युवती के साथ बार-बार जबरदस्ती करते या उसे किसी वरिष्ठ नेता के साथ जाने के लिए दबाव डालते।

समिति का अनुमान है कि इस कांड की शिकार सिर्पâ कॉलेज जानेवाली युवतियां ही नहीं हुई। कुछ ऐसी महिलाओं को भी शिकार बनाया गया, जिनके विवाहेत्तर संबंध रहे होंगे।

अब तो सभी प्रमुख आरोपी गिरफ्तार किये जा चुके हैं, लेकिन अपराधियों के खिलाफ खुल कर सामने आने का साहस किसी में नहीं है, होगा भी वैâसे? नागपुर से जलगांव आयी स्त्री मुक्ति संघटना की एक सदस्या नम्रता आप्टे का सवाल है कि क्या कोई लड़की सामने आ कर यह कहेगी कि मेरे साथ बलात्कार हुआ है? क्या कभी हमारे समाज ने किसी बलात्कार हो चुकी लड़की को उचित सम्मान दिया है? जिस लड़की से बलात्कार हो चुका हो, क्या कोई नौजवान सामने आ कर उससे शादी को तैयार हो सकता है? फिर कितनी ही युवतियों के साथ यह सब बरसों से हो रहा होगा। कितनी ही लड़कियों की शादी हो चुकी होगी। जिनकी शादी नहीं हुई होगी वे भी क्यों सामने आयेंगी? यानी युवतियों पर जुल्म हुआ यह तो एक अपराध और उन पर दूसरा जुल्म यह कि वे उस पहले जुल्म के खिलाफ खुल कर सामने भी नहीं आ सकती।

जलगांव के इन अपराधियों का होंसला बढ़ने के कई कारण रहे हैं। एक तो कानून की कमजोरी ही बड़ा कारण है, जो हर बात के लिए गवाह और सबूत मांगता है, दूसरा कारण था अपराधियों का बढ़ता राजनीतिक संरक्षण। उन्हें यह लगने लगा था कि वे राजनीति से जुड़े हुए हैं, इसलिए प्रशासन उनका कुछ भी नहीं कर पायेगा। कोई कानून उन्हें सजा नहीं देगा, क्योंकि पुलिसकर्मियों की इतनी हिम्मत नहीं। नगरपालिका परिवार में इन लोगों की चलती थी और वहां अपने पद का दुरूपयोग करके उन्होंने लाखों रूपये भी कमा लिये थे। इस तरह उन्होंने राजनैतिक सत्ता के जरिये आर्थिक सत्ता पर भी कब्जा कर लिया था।

आज भी जलगांव के अधिकांश सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि जलगांव कांड के अपराधियों को सजा होगी, इसमें हमें शक है। ऐसा ही एक कांड कुछ साल पहले अजमेर में सामने आया था, उसमें किसी अपराधी को सजा नहीं हुई, क्योंकि वे बड़े लोग थे। उनके पास पैसे और सत्ता की ताकत थी। जलगांव में भी जो लोग पकड़े गये हैं उनमें से कई का आपराधिक रेकॉर्ड रहा है। उनसे बैर मोल कौन लेगा? फिर इस बात की क्या गारंटी है कि हमारी गवाही के बाद उन्हें सजा होगी ही? वे भी तो कानूनी छिद्रों का सहारा ले कर बच जायेंगे!

जलगांव की एक महिला कार्यकर्ता का कहना है कि अगर हम पूरा जोर लगा कर अपराधियों को सजा दिलवा भी दें तो भी क्या उन युवतियों को न्याय मिलेगा, जो इस कांड में पीड़ित है? क्या अपराधियों को जेल में भेज देने से पीड़ितों की यंत्रणा खत्म हो जायेगी? अमरीका में ऐसे अपराधियों पर अर्थदंड भी किया जाता है और उसके एक भाग से तथा राजकीय कोष से पीड़ितों के पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है, क्या हम ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं कर सकते?

जलगांव ने राजनीति का घृणित रूप तो दिखाया ही है एक सबक भी सिखाया कि हम अपनी बेटियों-बहनों को साहस दिलायें कि कोई उनके साथ जबरदस्ती न कर सवेंâ। हमें उन्हें यह भी सिखाना होगा कि वे ब्लैकमेल करने वालों से डरें नहीं और कानून की मदद के लिए कोई न कोई रास्ता अवश्य निकालें। ब्लैकमेल होने की स्थिति आये इससे पहले ही अपराधियों को पकड़वाना कितना जरूरी है, यह समझने का मौका दिया है जलगांव ने।

जलगांव कई सवाल भी ले कर आया है। कब तक अपराधियों को राजनीति अपना मोहरा बनाती रहेगी और उसमें निम्न और मध्यम वर्ग के लोग पिसते रहेंगे? क्या कानून बगैर खुले गवाहों के भी अपराधियों को सजा दिला सकेगा? क्या आगे और जलगांव नहीं होंगे?

पुलिस तो अपना काम करेगी !

दीपक जोग (डीसीपी मुंबई)

जलगांव शहर के लोग भयभीत है, अंदर ही अंदर सुगबुगाहट है उनकी बहू बेटियों का क्या होगा? जलगांव सैक्स कांड की चपेट में जो लड़कियां आयी है, उनमें कई ब्याहता है तो कुछ की शादी तय हो चुकी है। हम भी समझते हैं कि छोटे शहरों में सैक्स कांड में लड़कियों का नाम उछालने का क्या मतलब होता है। अगर कोई शादीशुदा स्त्री बयान देने आगे आयेगी तो उसके ससुरालवाले और परिवारवाले निश्चित ही उससे नाता तोड़ लेंगे। हम किसी अभियुक्त स्त्री पर दबाव नहीं डाल रहे। अगर कोई लड़की अपनी इच्छा से बयान दे तो उसका स्वागत है।

जलगांव शहर में यह अफवाह पैâली है कि इस सैक्स कांड की शुरूआत बारह वर्ष पहले हो चुकी थी। तत्कालीन म्युनिसिपल अध्यक्ष दिलीप कोल्हे के पुत्र ने एक कॉलेज छात्रा के साथ बलात्कार किया था। साथ ही यहां के अखबार भी तथ्यों को उलट-पुलट कर पेश कर रहे हैं। एक स्थानीय अखबार ने जलगांव की ५०० लड़कियों को इस कांड से पीड़ित बताया तो दूसरे अखबार ने ३००। सही आंकड़े अब तक सामने नहीं आये। निश्चित ही संख्या इतनी भयावह नहीं है, जितना कांड।

हमने इस कांड के जिन अपराधियों को अब तक गिरफ्तार किया है, उनमें युवक कांग्रेस के अध्यक्ष नरेंद्र पाटील का भाई नरेश पाटील, नगर सेवक चंद्रकांत सोनोने का भाई नाना सोनोने और मंगला चौधरी प्रमुख है। मंगला अपने घर में लड़कियों को पंâसा कर लाती थी। उसका घर पंडित सपकाले के लिए एक अड्डा था। यहां तक कि वह नगर पालिका चुनावों में भी खड़ी हुई थी।

सिर्पâ जलगांव में ही नहीं, हाल में इस तरह के कांड अहमदनगर और परभणी में भी हुए हैं। पुलिस तो अपना काम करेगी, लोगों को भी अपराधियों को पकड़वाने में मदद करनी होगी और असामाजिक तत्वों के खिलाफ लड़ना होगा। जलगांव में जो कुछ हुआ है उसका प्रभाव पूरे महाराष्ट्र पर पड़ा है और हम इस शहर की सामाजिक स्थितियों को एकाकी बना कर अपना पंजा नहीं झाड़ सकते।

धर्मयुग 1 सितंबर 1994

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