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किताबों से उनकी मोहब्बत पागलपन की हद तक है और इसी का परिणाम है इंदौर के पुस्तकप्रेमियों की आदर्श जगह शासकीय अहिल्या लाइब्रेरी। आज इस लाइब्रेरी में क्या नहीं है? जीडी की कोशिशों और कुछ ईमानदार लोगों के कारण यह लाइब्रेरी न केवल बची है, बल्कि हजारों लोगों के लिए आकर्षण भी है।जीडी इस लाइब्रेरी के मुख्य ग्रंथपाल हैं। इंदौर शहर के हृदयस्थल की साठ साल पुरानी इस लाइब्रेरी में 70,000 किताबें हैं, 7,0 00 'आजीवन सदस्य' हैं; सभी OPEL (ऑनलाइन पब्लिक एक्सेस कैटलॉग) से जुड़े हुए हैं। सदस्य कंप्यूटर पर ऑनलाइन देख सकता है कि कौन-कौन सी किताबें लाइब्रेरी में उपलब्ध हैं और सदस्य कौन-कौन हैं? रोजाना सैकड़ों लोग लाइब्रेरी के वाचनालय में आकर अखबार, पत्रिकाएं आदि पढ़ते हैं।

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14 साल से यहाँ ई-लाइब्रेरी भी है। 12 कंप्यूटर वाली यह लाइब्रेरी 'डेलनेट' (डेवलपमेंट लाइब्रेरी नेटवर्क) से जुडी है, जिसके माध्यम से आप दुनिया में उपलब्ध 2 करोड ईबुक्स में से अपनी पसंद की ईबुक डाउनलोड कर सकते हैं। इतना ही नहीं, दुनिया भर की लाइब्रेरी में से आपकी ज़रूरत की किताब आप इस लाइब्रेरी के माध्यम से कोरियर के माध्यम से मगंवा सकते हैं। लाइब्रेरी में उपलब्ध फोटो कॉपी मशीन से आप किताबों के पन्ने ( केवल कॉपी राइट नियमों के तहत ही, शुल्क देकर) फोटोकॉपी करा सकते हैं।

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यह लाइब्रेरी लेखकों-पाठकों के लिए अनेक आयोजन कराती है। पुस्तक विमोचन समारोह से लेकर साहित्यिक गोष्ठियों तक। यहाँ राजनैतिक, धार्मिक और पारिवारिक आयोजन नहीं हो सकते। हर महीने के पहले सोमवार की शाम साढ़े पांच से साढ़े छह बजे तक यहाँ अनूठी 'पाठक संसद' का आयोजन होता है, जिसमें पाठक किताबों के बारे में चर्चा करते हैं। कॉम्पीटिशन कॉर्नर नामक एक विशेष अध्ययन कक्ष है जहाँ विद्यार्थी अपनी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी कर सकते हैं।

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लाइब्रेरी के कुछ हिस्से एयर कंडीशंड हैं. लाइब्रेरी का परिसर करीब चार एकड़ का है। यहाँ करीब 100 कारों की पार्किंग की जगह है। 16 सीसीटीवी कैमरों से निगरानी की जाती है। 114 सीटों का एक एयर कंडीशंड सभागृह है, जिसे पीपीपी मॉडल पर बनाया गया है। एक आर्ट गैलरी है और एक किताबों के लिए एक्जीबिशन हॉल भी अलग से है। परिसर में एक हराभरा गार्डन है, जिसमें महान ग्रंथपाल पद्मश्री रंगराजन की प्रतिमा है।

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...और अब इसे बचाये रखने की बात ! इंदौर के रीगल चौराहे के पास हाई कोर्ट से सटी करीब दो लाख वर्ग फुट दो अरब से ज्यादा रुपये की इस ज़मीन पर भू माफिया बरसों से घाट लगाये बैठे हैं. राज्य सरकार ने इसके एक हिस्से में जनसम्पर्क कार्यालय बना डाला। जैन धर्म के कुछ लोगों ने धर्म के नाम पर 2500 वर्ग फुट जमीन लेकर एटीएम खोल डाले, फिर 42, 436 वर्ग फुट 'हड़पकर' सिंगापुर मार्केट बना डाला। अजित जोगी कलेक्टर थे, तब उन्होंने 7043 वर्गफुट जगह एक अन्य लाइब्रेरी के नाम पर दे दी। लगातार भू माफिया की निगाहें इस पर रहीं।

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अशोक दास ने इंदौर के आयुक्त रहते इसे बचाने की व्यवस्था की।  डॉ जीडी सरकारी स्कूल में लाइब्रेरियन थे, 1999 में उनकी नियुक्ति इस लाइब्रेरी में हुई। वे केवल 9 सरकारी और 6 ठेके के कर्मचारियों के साथ सफ़ेद कोठी बंगले की यह लाइब्रेरी चला रहे हैं। इंदौर आयुक्त संजय दुबे, कलेक्टर पी. नरहरि, अनिल भंडारी, प्रोफ़ेसर मोना, विमल मित्तल, प्रीतमलाल दुआ, कप्तानसिंह सोलंकी (राज्यपाल) आदि के सहयोग से जनता की यह अमानत बची है, वरना भू माफियाओं का भोजन बन चुकी होती। 

.... बुरी नज़रवाले तो अब भी बहुत हैं, पर वे नेता, समाजसेवी, अखबार मालिक का रूप धरकर आते हैं!

14 feb. 2016

8.45 am 

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