मिलिन्द काम्बले दलित चेंबर ऑफ़ कॉमर्स (डिक्की) के फाउंडर-चेयरमैन हैं. जिसका ध्येय वाक्य है : Be Job Givers, NOT Job Seekers. उनके बारे में मैंने सबसे पहले जाना मेरे मित्र मिलिन्द खांडेकर की किताब 'दलित करोड़पति' से. फिर जब शेखर गुप्ता के वॉक द टॉक में उनकी बातचीत देखी तो उनके बारे में पढ़ा और पढता चला गया. उन्होंने यह धारणा तोड़ी कि कारोबार में किसी जाति या समुदाय विशेष की महारथ होती है.
मिलिन्द काम्बले का बचपन महाराष्ट्र के लातूर में बीता. नांदेड में उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढाई की और इंजीनियर बनने के बाद उन्होंने नौकरी के बजाय खुद के कारोबार को चुना. वे पुणे में रहते हैं. वे कई कन्स्ट्रशन कंपनियों के डायरेक्टर हैं और उनका कारोबार एक अरब रुपये से भी ज्यादा है. हजारों लोगों को वे रोजगार दे रहे हैं. आज हर कोई नौकरी लेने में आरक्षण चाहता है. अगर नौकरी में आरक्षण मांगनेवाले लोग नौकरी देने लग जाएँ तो? मिलिन्द काम्बले जैसे लोग सरकार से नौकरी नहीं मांग रहे, दूसरों को नौकरी दे रहे हैं. मिलिन्द काम्बले का कहना है कि आज कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में 70 - 80 प्रतिशत कामगार दलित हैं, लेकिन वे निर्माण कंपनियों के मालिक कम ही हैं.
आज देश और दुनिया में दलित कारोबारियों की तादाद बढ़ रही है. मिठाई की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां दलितों की हैं, ऑटो पार्ट्स के निर्माण और कारोबार में दलितों का बोलबाला है ! बजाज पल्सर जैसी गाड़ियां चाहे जिस ब्रांड से बिके, उनके दो तिहाई पार्ट्स दलित ही बनाते हैं. यूपी में कम से कम 50 ऐसे बड़े अस्पताल हैं, जिनके मालिक दलित डॉक्टर हैं, यह बात अलग है कि उनमें से ज्यादातर आरक्षण का लाभ लेकर ही डॉक्टर बने हैं. गाँवों की बात छोड़ दें तो शहर में कोई यह भेद नहीं कर सकता कि दलित कौन है और गैर दलित कौन? यह सब समाज में बदलाव के इशारे हैं.
2005 में मिलिन्द काम्बले ने दलित चेंबर ऑफ़ कॉमर्स गठित किया. इस में जेएनयू से पढ़कर निकले चन्द्र भान प्रसाद का खास योगदान रहा. गठन के वक़्त तो लोगों ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन 2010 में जब 'डिक्की' ने पहला ट्रेड फेयर लगाया और उसमें रतन टाटा, अदि गोदरेज जैसे महारथियों ने शिरकत की, तब लोगों की धारणाएं टूटीं. आज देश भर में तो 'डिक्की' की शाखाएं हैं ही; यूके, यूएई,जापान, जर्मनी, नीदरलैंड आदि में भी 'डिक्की' मौजूद है.
मिलिन्द काम्बले मानते हैं कि तीन साल पहले जब 'सेबी' ने 500 करोड़ रुपये का वेंचर केपिटल फंड केवल दलितों के लिए लांच किया था, यह एक क्रांतिकारी कार्य था. इसके लाभार्थी भले ही केवल दलित उद्यमी ही हों, उसका असली लाभ समाज के हर वर्ग को हो रहा है.
मिलिन्द काम्बले की पत्नी और बेटी भी उनके कार्य में सहयोग देते हैं. 3 साल पहले उद्योग -व्यवसाय के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
मिलिन्द काम्बले का फेसबुक पेज
https://www.facebook.com/milind.kamble.90813
'डिक्की' की वेबसाइट का लिंक
http://www.dicci.org/index.php
28 Feb 2016
08.10 am