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सेनेटाइजर और मॉस्क वितरण के साथ शुरु हुई नेशनल ब्लॉगर्स समिट-2020’

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 डॉ भीमराव अंबेडकर सिर्फ संविधान निर्माता या दलित नेता ही नहीं थे बल्कि वे महात्मा गांधी के समकक्ष थे।गांधी ने यदि एक धोती लपेट कर देश के आमजन को एकजुट किया तो डॉ आंबेडकर ने छोटे लोगों में आत्म विश्वास जगाने के लिए टाई-कोट पहनना नहीं छोड़ा। वे कृषि को उद्योग का दर्जा देने के पक्ष में थे। ब्रिटिश हुकूमत भी अर्थव्यवस्था सुधार के मामले में उनसे सलाह लेती थी।

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डॉ अंबेडकर के व्यक्तित्व के बहुमुखी पहलुओं पर देश भर से जुटे ब्लॉगर्स ने ‘नेशनल ब्लॉगर्स समिट-2020’ के उद्घाटन सत्र में चर्चा की।पहले यह समिट अंबेडकर विवि महू में होना थी लेकिन कोरोना वाइरस को लेकर बरती जा रही सतर्कता के चलते उच्च शिक्षा विभाग द्वारा एडवायजरी जारी करने पर इंदौर प्रेस क्लब के सहयोग से आयोजित की गई।दूसरे सत्र में ब्लॉगर्स ने ब्लॉग लेखन से जुड़ी विभिन्न विधाओं पर चर्चा के साथ अपने अनुभव भी शेयर किए।मंगलवार को इस समिट का समापन सत्र होगा।

छोटे लोगों को आर्थिक रूप से ताकतवर बनाना चाहते थे-प्रकाश दुबे

 

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प्रेस क्लब में समिट का उदघाटन करते हुए मुख्य अतिथि-वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश दुबे( एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया के पूर्व महासचिव) ने कहा - आर्थिक चिंतन के मामले में गांधी और अंबेडकर की सोच अलग-अलग थी। गांधीजी ने ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को आगे बढ़ाया, अंबेडकर भी ऐसा ही करना चाहते थे लेकिन उन्होंने वंचित लोगों की हिस्सेदारी के लिए फिरंगी सरकार को समर्थन दिया था।अंबेडकर ने गांव के लोगों को सुरक्षित करने पर दबाव डाला, क्योंकि वे जानते थे कि शहर आधारित अर्थव्यवस्था से गांवों की तरक्की नहीं हो सकती।अंग्रेज भारत को सीमित आजादी देने के पक्ष में थे।छोटे लोगों की आर्थिक ताकत को मजबूत करने के लिए उन्होंने मजदूरों को संगठित किया। टाई-कोट पहनने के माध्यम से छोटे लोगों में वो आत्म विश्वास लाना चाहते थे।

 

राजनीतिज्ञ नहीं होते तो बड़े अर्थशास्त्री होते डॉ. अंबेडकर-जयशंकर गुप्त

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प्रेस आयोग के सदस्य जयशंकर गुप्त ने कहा कि बाबासाहब अम्बेडकर राजनीतिज्ञ नहीं होते तो बड़े अर्थशास्त्री के बतौर उनकी पहचान होती। समाज व्यवस्था को बदलने के संघर्ष में उनका आर्थिक चिंतन वाला पक्ष दबकर रह गया। वे मानते थे कि जातिवाद के खात्मे के बगैर आर्थिक असमानता दूर होने के कोई मायने नहीं हैं। अम्बेडकर के आर्थिक चिंतन को अगर किसी ने समझा तो वे लोहिया थे। जयशंकर गुप्त ने वर्तमान समय में देश की जीडीपी में आई गिरावट का जिक्र करते हुए बीजेपी और आरएसएस पर भी तंज कसा।

कृषि को उद्योग का दर्जा देने के हिमायती और अर्थशास्त्री थे बाबासाहब-राजेश बादल

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वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा डॉ . बाबासाहब अंबेडकर मूलतः अर्थशास्त्री थे पर उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के इस पहलू की जानकारी बहुत कम लोगों को है। 1930 में आई वैश्विक मंदी में ब्रिटेन की हालत पतली हो गई थी, तब उससे उबरने के लिए ब्रिटेन ने बाबासाहब के आर्थिक चिंतन को ही अपनाया था। आर्थिक उदारीकरण की सोच डॉ. अंबेडकर की ही थी।कृषि को उद्योग का दर्जा देने के वे हिमायती थे। सरकारी उपक्रमों के जरिये औद्योगिकरण का विचार उन्होंने ही दिया था।भारतीय रिजर्व बैंक का गठन बाबासाहब की सिफारिश पर ही हुआ था। यही नहीं भूमि सुधार कानून भी उन्हीं के प्रयासों से बना।

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दूसरे सत्र में पीयूष बबेले (चर्चित किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’ के लेखक) ने कहा सोशल मीडिया पर सूचना की बाढ़ आती रहती है, लेकिन किसी के प्रति राय बनाने से पहले उसके बारे में सही जानकारी जरूर पढ़ लें। गांधी महामानव हैं लेकिन भविष्य में नेहरु का व्यक्तित्व उनकी महानता से और अधिक उभरेगा।

प्रकाशक-संपादक विश्व दीपक दीक्षित ने ‘ब्लॉगिंग एंड मोनेटाइजेशन’ पर बोलते हुए कहा ब्लागिंग कम्यूनिटी चार में बंटी है-सोशल, पोलिटिकल, इकॉनामिक, लेजर एंड इंटरटेनमेंट। इंटरटेनमेंट के अलावा बाकी तीन कम्युनिटी में आप को गहरा ज्ञान जरूरी है, आप का कंटेंट सही होगा तो ही आप का ब्लॉग अन्य को आकर्षित करेगा, कॉपी-पेस्ट नहीं चलेगा।

अंबेडकर विवि महू के केशव पटेल ने ‘न्यू मीडिया, ह्यूमन राइट्स और टेररिज्म’ पर बात करते हुए कहा कि वर्तमान में टेररिज्म का स्वरूप बदलता और फैलता जा रहा है।टेक्नालॉजी ने हमारी जिंदगी को आसान तो किया लेकिन अपनी करने दखलंदाजी भी बढ़ा दी है।गूगल को आप की पल पल की जानकारी है।

पत्रकार दीपक पाचपौर का कहना था सोशल मीडिया स्ट्रांग तो हो गया है लेकिन इसमें जो बड़ी समस्या है वह है फेक इफरमेशन। सोशल मीडिया पर गंभीर लेखन नहीं हो रहा है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले 70फीसदी से अधिक लोग फेसबुक पर हैं।

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तीसरे सत्र में टाइम्स नेटवर्क की हिमिका गांगुली (कंटेंट रायटर) ने गुड कंटेंट मार्केटिंग ब्रांड को स्थापित करने का खास माध्यम है। जैसे पहले टपरवेयर की डिब्बा पार्टी होती थी।(जोमेटो)टारगेटेड एडवटाइजिंग, करता है।(स्वीगी) ई मेल मार्केटिंग, टारगेटेड मार्केटिंग, जनरल मार्केटिंग (प्रेशर कूकर)इन सारी विधाओं का ब्रांड मुताबिक उपयोग किया जाता है।

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पत्रकार वर्षा मिर्जा (जेंडर एंड ब्लॉगिंग) राजस्थान में जेंडर डिस्क्रिप्शन महसूस किया जो मप्र में नहीं देखने को मिला।राजस्थान में मुझे जातिवाद भी पता चला। ‘लिख डाला’ ब्लॉग लिखती हूं। उनकी पीड़ा थी कि 2014 के बाद से वर्षा मिर्जा को अलग चश्मे से देखा जाने लगा और वर्षा मरजा तक कहा जाने लगा।उनका कहना था जो हालात हैं तो सोशल मीडिया पर मन की बात कहने में डर लगता है। 

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रवि शेखर (वीडियो स्टोरी टेलिंग) ने कहा मुझे कुछ सीखना होता है तो यू ट्यूब पर/ फेसबुक पर जा कर सीखता हूं।ज्यादा सोच कर करेंगे तो वो काम उतना ही बेहतर होगा लेकिन सोशल मीडिया पर सोचने से पहले पोस्ट करने की जल्दबाजी रहती है।अभिनेत्री पूजा जोशी ने पत्रकारिता के दिनों को याद करने के साथ ही कविता भी सुनाई।युवा पत्रकार दीपक राय ने ’सोशल मीडिया राजनीति और समाज’ विषय पर लिखी किताब से जुड़े अपने अनुभव सुनाए।

 

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इससे पहले समिट में सभी को मॉस्क भेंट करने के साथ ही सेनेटाइजर से हाथ साफ कराए गए। आयोजक-एमपी सीजी के प्रेसीडेंट प्रकाश हिंदुस्तानी ने कहा कोरोना के दबाव, राजनीतिक उठापटक के चलते सब अस्तव्यस्त हो गया।फिर भी 80फीसदी वक्ता आए।आयोजन में पूरा प्रिकाशन रखा है।हमारी कोशिश ब्लॉगर के माध्यम से समाज बदलाव करना है।अलायंस के को फाउंडर देवेंद्र जायसवाल ने कहा ब्लागर अलायंस पर दो साल से काम कर रहे थे। दो सत्रों का संचालन ऋतु अग्रवाल ने और अंतिम सत्र का संचालन कवि पंकज दीक्षित ने किया आभार प्रेस क्लब महासचिव हेमंत शर्मा ने माना। 

Kirti Rana

- कीर्ति राणा

मो. 89897-89896

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