करीब 30 साल बाद जमील गुलरेज साहब से मुलाकात हुई। मित्र सुमंत मिश्र से उनका मोबाइल नंबर मिला और मैंने फोन लगा दिया। कहा कि आपसे आज ही मिलना है क्योंकि कल मुंबई से वापस इंदौर जा रहा हूं। उन्होंने 4 बजे का वक्त मुकर्रर किया। जगह तय हुई बांद्रा में नेशनल कॉलेज के सामने कैफे कॉफी डे।
अगर आप किसी से 30 साल बाद मिलें तो बातचीत करने के विषयों की कोई कमी नहीं रहती। बहुत कुछ सुनाने के लिए भी होता है और सुनने के लिए भी। जिन दिनों में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के नवभारत टाइम्स में स्टॉफर था और विज्ञापन की दुनिया में संघर्ष कर रहा था, तब जमील गुलरेज साहब हमारे गुरू हुआ करते थे। विज्ञापन की दुनिया का एबीसी उन्होंने ही सिखाया। उनकी कक्षा में हिन्दी के हम दो ही विद्यार्थी थे। मैं और चेतन प्रकाश जांगिड़। चेतन उम्र में मुझसे करीब 10 साल छोटा था। वह ज्यादा चपल था और विज्ञापन की दुनिया के लिए प्रतिबद्ध भी। मेरे लिए विज्ञापन साइड जॉब की तरह था। मैं अपने मूल पत्रकारी कार्य से हटना नहीं चाहता था। इसके पहले मैं मुंबई के ही सेंट जेवियस कॉलेज से अनाउंसिंग और ब्रॉडकास्टिंग का डिप्लोमा ले चुका था पर वहां ज्यादा संभावनाएं नजर नहीं आ रही थी। एडवरटाइजिंग की दुनिया में कॉपीराइटिंग मेरे लिए सुविधाजनक काम था। इसमें नाम तो नहीं था, लेकिन नामा ठीक था और जल्दी था। इसी नामे ने मुझे विज्ञापन की दुनिया की तरफ आकर्षित किया।
जमील गुलरेज साहब हमें विज्ञापन की बारीकियां समझाते थे। एक अच्छी कॉपी में क्या होना चाहिए और क्या नहीं, यह उन्होंने ही सिखाया। अच्छे विज्ञापन तैयार करने के लिए कौन-सी किताबें, पत्रिकाएं पढ़ी जाना चाहिए, यह मार्गदर्शन भी उन्हीं का था। उन दिनों टीवी चैनलों में केवल दूरदर्शन था और एफएम रेडियो नहीं था। इंटरनेट का आगमन भी नहीं हुआ था। इसलिए प्रिंट मीडिया ही हमारे लिए आय का प्रमुख साधन था। अब प्रिंट विज्ञापन में चाहे कॉपी लिखनी हो या अनुवाद करना हो; प्रूफ पढ़ना हो या और कोई कलाकारी करनी हो- हमारे लिए विज्ञापन के यह काले अक्षर ही दूध देने वाली गाय थे।
जमील गुलरेज न केवल हमारे गुरू थे बल्कि हमारे निजी जीवन के मार्गदर्शक भी थे। बिल्कुल निर्लिप्त भाव से वे हमें ज्ञान देते थे। उन्होंने हमसे किताबी ज्ञान के अलावा प्रोजेक्ट भी बनवाए और हमने वे प्रोजेक्ट बड़ी गंभीरता से, स्कूल के विद्यार्थियों की तरह पूरे किए। कॉपीराइटिंग का वह डिप्लोमा आज भी हमारे लिए एक बड़ी पूंजी है।
जमील गुलरेज साहब के साथ ही हमारे एक और गुरू थे- लैरी ग्रांट। लैरी ग्रांट साहब अंग्रेजी के गुरू थे और उन्होंने न केवल महान कॉपीराइटिंग की बल्कि अनेक अच्छे ऐड गुरू पैदा भी किए।
यह एक महज दुखद संयोग ही था कि लैरी ग्रांट साहब अब इस दुनिया में नहीं है और मेरे सहपाठी रहे चेतन प्रकाश जांगिड़ भी। लैरी ग्रांट साहब का स्वर्गवास कुछ समय पहले पुणे में ब्रेन ट्यूमर के कारण हुआ और चेतन प्रकाश की करीब एक साल पहले उनके ही फ्लैट में निर्ममता से हत्या कर दी गई। ये दोनों सूचनाएं मुझे हिला देने वाली थी। चेतन प्रकाश से संपर्क करने की मैंने बहुत बार कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाया। बाद में पता चला कि वे अनेक विश्वविख्यात विज्ञापन एजेंसियों में सर्वोच्च पद तक पहुंचे और फिर उन्होंने खुद की सलाहकार सेवा शुरू कर दी। चेतन प्रकाश जांगिड़ ने पहले अपना नाम चेतन जांगिड़ कर लिया था और बाद में अपना गौत्र भारद्वाज लिखने लगे थे। मैंने चेतन प्रकाश जांगिड़ के नाम से इंटरनेट पर उनकी बहुत खोज की, लेकिन तब तक वे चेतन भारद्वाज बन चुके थे। इसी कारण इंटरनेट पर उनका नाम नहीं मिल पाया था। दुर्भाग्य की बात है कि जिस दिन चेतन प्रकाश की हत्या हुई उसी दिन उनका जन्मदिन भी था। जन्मदिन के मौके पर उन्हें बधाई और शुभकामनाएं देने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी। बाद में जब पुलिस ने पड़ताल शुरू की तब उन सभी लोगों को परेशान होना पड़ा, जिन्होंने बधाई दी थी। पुलिस अपनी जगह सही थी, लेकिन उनके अनेक मित्र और शुभचिंतक परेशान होते रहे। पुलिस जांच के मुताबिक चेतन प्रकाश की हत्या व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के कारण हुई होगी।
जमील गुलरेज साहब लैरी ग्रांट और चेतन प्रकाश दोनों को लेकर मानसिक पीड़ा में नजर आए। मेरे पास कहने के लिए कुछ बचा नहीं था।