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श्रीलंका यात्रा की डायरी (2)

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पानी की बूंद जैसा दिखता है श्रीलंका का नक्शा। श्रीलंका है भी चारों तरफ पानी से घिरा हुआ। इसके सभी प्रमुख शहर समुद्र के किनारे पर बसे है। कोलंबो, गाल, जाफना, त्रिंकोमाली, काठीरावेली, बत्तीकालोआ, चिलाव, ओकांडा आदि समुद्र तट पर बसे है, लेकिन कैंडी श्रीलंका का ऐसा शहर है जो किसी हिल स्टेशन का एहसास दिलाता है। कैंडी के पास ही है नुवारा एलिया जो शिमला या मसूरी का एहसास देता है। जो भी सेनानी कैंडी जाता है वह नुवारा एलिया भी घूूम ही लेता है। कैंडी और नुवारा एलिया दोनों ही पर्यटकों के प्रिय स्थान है। यहां पर सैकड़ों होटल है और उन होटलों का आर्विâटेक्चर ब्रिटिश या पुर्तगाली है। औपनिवेश काल की झलक यहां देखने को मिलती है। 

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कैंडी कभी श्रीलंका की राजधानी हुआ करता था। श्रीलंका के राजा यहां रहते थे। जब राजशाही का अंत हुआ तब कैंडी में औपनिवेशीक आवाजाही बढ़ी। कैंडी का धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है, क्योंकि यहां अनेक महत्वपूर्ण बौद्ध मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध के देह त्यागने के बाद उनका अंतिम संस्कार वर्तमान में उत्तरप्रदेश के कुशीनगर में हुआ था, लेकिन भगवान बुद्ध के एक अनुयायी ने उनकी चिता में से उनका दांत निकाल लिया और राजा ब्रह्मदत्त को दे दिया। राजा ब्रह्मदत्त के पास गौतम बुद्ध के प्रतीक का वह दांत शासन करने के अधिकार के रूप में रहा। उस दांत के लिए अनेक लड़ाईयां लड़ी गई। इसी बीच भगवान बुद्ध का वह दांत उनके अनुयायी ने चोरी-छुपे श्रीलंका पहुंचा दिया। ऐसा कहा जाता है कि यह घटना सन् 301 से 328 के बीच की है। वह दांत श्रीलंका के ही अनुराधपुर, पोरोनारुआ, दम्बादेनिया, यापाहुआ, कुरुनेगाला और रत्नद्वीप होता हुआ कैंडी पहुंच गया। कैंडी के तत्कालीन राजा ने अपने महल के पास उस दांत के लिए एक विशाल भव्य मंदिर बनाया। तब से वह दांत एक भव्य मंदिर में रखा हुआ है और उसे दांत का मंदिर के नाम से ही लोग जानते है। सन् 1603 में पुर्तगालियों ने श्रीलंका पर हमला किया, तब इस दांत को रक्षा के लिए दुम्बारा ले जाया गया, लेकिन बाद में फिर उसे कैंडी लाया गया। यह दांत एक छोटी डिबिया में रखा हुआ है और मंदिर के भीतर जाने वाले लोगों को उस डिबिया के दर्शन कराए जाते है। डिबिया खोलकर दांत दिखाने का कोई रिवाज नहीं है। यह कुछ-कुछ वैसा ही है जैसे हजरत बल दरगाह में हजरत साहब का बाल रखा हुआ है। कैंडी में हर साल जुलाई और अगस्त के महिने में कैंडी पेराहेरा नाम का एक उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान भगवान बुद्ध के दांत की यह डिबिया पूरे शहर में घुमाई जाती है। बुद्ध के दांत का यह मंदिर 1998 में यूनेस्को ने विश्व विरासत में शामिल किया। आज यह मंदिर श्रीलंका का सबसे लोकप्रिय पर्यटन केन्द्र भी है। इस मंदिर के साथ में मौजूद महल का हिस्सा अब पुरातत्व संग्राहलय बना दिया गया है। इसी के पास एक झील है। झील के दक्षिणी किनारे पर मलवत्ते विहार है। यहां इस इलाके की अनेक दुर्लभ पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी है।

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कैंडी से भी सुंदर है नुवारा एलिया। सुंदर पर्वतीय स्थान। चाय बागानों वाले रास्ते से गुजरते हुए यहां अनेक झीलें, नदियां, झरने आदि देखने को मिलते है। कैंडी से नुवारा एलिया जाते वक्त रास्ते में एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो हनुमानजी का है। कहा जाता है कि यहीं हनुमान वाटिका है। इसी के पास है एक सीता मंदिर। यह भी कहा जाता है कि यह सीता मंदिर उसी जगह पर है जहां कभी अशोक वाटिका हुआ करती थी। इसके आसपास ही पहाड़ी स्थानों पर विशालकाय चट्टानें है। इन चट्टानों पर कुछ निशान बने हैं। हिन्दू धर्म को मानने वाले कई लोगों की आस्था है कि चट्टानों पर बने यह निशान हनुमानजी के है। पास ही में एक नदी बहती है। 

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कैंडी के दांत मंदिर में जितने लोग दर्शनों के लिए आते है उसके दस प्रतिशत लोग भी अशोक वाटिका या हनुमान मंदिर में नहीं आते। अशोक वाटिका और हनुमान मंदिर दोनों ही उपेक्षित है। श्रीलंका पर्यटन विभाग का सारा ध्यान यूरोप से आने वाले पर्यटकों को लुभाने में लगा हुआ है। हनुमान मंदिर में आने वाले लोगों में निम्न आय वर्ग वाले तमिल लोग और भूले भटके भारतीय पर्यटक होते हैं। श्रीलंका की सरकार शायद यह समझती है कि अगर हनुमान मंदिर में आने वाले पर्यटक बढ़ेंगे तो श्रीलंका में तमिल असंतोष फिर उबल सकता है और आतंकी गतिविधियां जन्म ले सकती है। इसलिए पूरी कोशिश है कि भारतीय पर्यटक यहां नहीं पहुंचे।

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