एक क़िताब, जिसे पढ़कर बुश ने 15 साल पहले वायरस के खतरे से बचने के लिए तैयारी कर ली थी। साथ ही 7100 करोड़ डॉलर का बजट रखा था।द ग्रेट इन्फ्लुएंजा: द एपिक स्टोरी ऑफ द डेडली प्लेग इन हिस्ट्री' किताब को 2004 में जॉन एम बैरी ने लिखा था। यह एक नॉनफिक्शन किताब है, जो 1918 के स्पेनिश फ्लू महामारी के बारे में है। इसे अमेरिकी इतिहास की पृष्ठभूमि और चिकित्सा के इतिहास की किताब भी कहा जा सकता है। (किताब ऑनलाइन उपलब्ध है और इसके लेखक अमेरिका में रहते है। उनकी वेबसाइट है : http://www.johnmbarry.com/ )
वास्तव में जॉर्ज बुश और बिल गेट्स जैसे लोग बहुत पहले से कोरोना जैसी महामारी की आहट पहचान गए थे। उन्होंने दुनिया को न केवल आगाह किया, बल्कि उससे निपटने की तैयारियां भी शुरू कर दी थीं। अगर यह तैयारी न होती तो आज हालात और भी ज़्यादा खतरनाक हो जाते। बिल गेट्स ने कहा था कि अब अगर लाखों लोगों के सामने मौत आई तो वह किसी विश्वयुद्ध के कारण नहीं, बल्कि वायरस के कारण होगी। वायरस का खतरा विश्व युद्ध के खतरे से कम नहीं है। यह बात अब हम तो क्या, पूरी दुनिया मानती है कि यह संक्रमण एक तरह का विश्वयुद्ध ही है।
पूरी दुनिया कोरोना (सार्स कोविद-19) वायरस के कारण त्राहि-त्राहि कर रही है। कई लोग समझ रहे हैं कि किसी को इस वायरस की भनक तक नहीं लगी। यह वायरस अचानक आया। ऐसा नहीं है। 'प्रजातंत्र' ने 5 अप्रैल के अंक में 2011 की स्टीवन सोडरबर्ग की फिल्म 'कन्टेजियन' के बारे में एक लेख प्रकाशित किया था। लेख में बताया गया था कि यह फिल्म किस तरह एक खतरनाक वायरस पर आधारित थी जो जान लेने के लिए आमादा था। फिल्म की कहानी के अनुसार एक पिता-पुत्र की मौत के कारणों की जांच होती है तब पता चलता है कि एक खतरनाक वायरस के कारण ही दोनों की मृत्यु हुई थी। कहानी में बताया इस तरह का कोई वायरस कभी भी वापस आ सकता है और ऐसे वायरस के कारण लाखों लोगों की जान जा सकती है। स्टीवन सोडरबर्ग के निर्देशन में बनी यह फिल्म 'कंटेजियन' सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही है। आप इस फिल्म को अमेज़न रेंटल पर देख सकते हैं।
2018 में केरल में नीपा वायरस का आतंक फैल गया था। इससे केरल के दो जिलों में 17 लोगों की जान गई थी। इस सच्ची घटना से आइडिया लेकर ‘वायरस‘ फिल्म बनाई गई थी। एक युवक को अस्पताल में भर्ती किया जाता है। बुखार, सरदर्द और वोमिटिंग के इलाज लिए। कुछ समय बाद ही उसका ख्याल रखने वाली नर्स को सांस लेना मुश्किल हो जाती है। पता चलता है कि यह कोई जानलेवा वायरस है। क्या यह चमगादड़ से फैला है? आतंकवादियों का हथियार है? या दवाई की कंपनियों के माफिया का हथकंडा? पूरे शहर में मरीज़ बढ़ने लगते हैं। अफरा–तफरी के बीच कुछ वैज्ञानिक और डॉक्टर इस महामारी से टक्कर लेते हैं। आप इस फिल्म को अमेज़न प्राइम वीडियो पर देख सकते हैं।
1918 के स्पेनिश फ़्लू के दौरान अमेरिका में तैनात सिकित्सा दल
'द ग्रेट इन्फ्लुएंजा: द एपिक स्टोरी ऑफ द डेडली प्लेग इन हिस्ट्री' किताब को 2004 में जॉन एम बैरी ने लिखा था। यह एक नॉनफिक्शन किताब है, जो 1918 के स्पेनिश फ्लू महामारी के बारे में है। यह किताब उस महामारी की समीक्षा में लिखी गई है। स्पेनिश फ्लू से 1918 में दुनिया के 50 करोड़ से भी ज़्यादा लोग प्रभावित हुए थे।
इस महामारी ने दुनिया भर में 2 करोड़ से 5 करोड़ के बीच लोगों की जान ली थी। इतनी बड़ी संख्या में तो लोग पहले विश्वयुद्ध में भी नहीं मारे गए थे। इस महामारी में मरनेवालों की सही संख्या भी किसी को नहीं मालूम। माना जाता है कि स्पेनिश फ्लू पश्चिमी मोर्चे पर सैनिकों के तंग और भीड़ भरे ट्रेनिंग कैंपों में फैला। विशेष रूप से फ्रांस के साथ लगती सीमाओं पर स्थित खाइयों में प्रदूषित वातावरण ने इसके फैलने में मदद की।
नवंबर 1918 में जब युद्ध समाप्त हुआ और सैनिक घर लौटने लगे तो वायरस उनके साथ आया। उन दिनों हवाई जहाजों का चलन बहुत कम था, इसलिए यह धीरे-धीरे फैला। स्पेनिश फ्लू को इतिहास का सबसे बड़ा होलोकॉस्ट यानी नरसंहार कहा जाने लगा। असली तथ्य यह है कि इससे पीड़ित युवा और स्वस्थ लोग थे। स्पेनिश फ्लू ऐसे वक्त में सामने आया था जब दुनिया विश्व युद्ध से बाहर ही आई थी और पब्लिक हेल्थ योजनाओं का विचार शुरुआती दौर में था। झुग्गी-झोपड़ियों और शहर के अन्य गरीब स्थानों पर वो लोग मारे गए जो कम पोषित थे। उन दिनों लोग रेल और स्टीमरों के जरिए यात्रा करते थे। इस कारण यह कई साल तक फैलता रहा। इतिहास की इस सबसे खराब महामारी के तमाम पहलुओं की जांच करती यह किताब बेहद चर्चित रही है, क्योंकि इसने अमेरिका की सरकार को ऐसी किसी भी महामारी से निपटने के लिए प्रेरित किया था। इस किताब में लिखा था कि अमेरिकी प्रशासन ऐसी किसी आपदा के लिए तैयार है भी या नहीं? इसे अमेरिकी इतिहास की पृष्ठभूमि और चिकित्सा के इतिहास की किताब भी कहा जा सकता है। (इसके लेखक अमेरिका में रहते हैं और उनकी वेबसाइट है : http://www.johnmbarry.com/ )
अमेरिका के 43वे राष्ट्रपति थे जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश। वे सीआईए के प्रमुख रह चुके थे। 2005 में वे छुट्टियां बिताने अपने रेंच में यानी टेक्सस के इलाके के अपने पशुओं को पालने वाले फार्म पर गए थे। वे अपने साथ इतिहासकार जॉन एम बैरी की 2004 में प्रकाशित किताब 'द ग्रेट इन्फ्लुएंजा : द एपिक स्टोरी ऑफ द डेडली प्लेग इन हिस्ट्री ' पढ़ने के लिए ले गए। छुट्टियों में उन्होंने किताब पूरी पढ़ी तो बेचैन हो गए, क्योंकि यह किताब करीब 1918 में फैले उसी स्पेनिश फ़्लू महामारी के बारे में थी जिसमें करोड़ों लोग मारे गए थे। बुश जब छुट्टी से वापस राष्ट्रपति भवन आए तब उन्होंने आंतरिक सुरक्षा मामलों की टॉप सलाहकार फ्रैन टाउनसैंड को बुलवाया और कहा कि उन्हें भी यह किताब पढ़ने की सलाह दी। बुश का सवाल था कि अगर ऐसी महामारी की नौबत अब आ जाए तो अमेरिका क्या करेगा? अमेरिका में किसी महामारी से निपटने की विस्तृत योजना की नींव तभी पड़ी। आज पंद्रह साल बाद भी अमेरिका में उन नियमों का पालन किया जा रहा है। (www.whitehouse.gov/infocus/healthcare) राष्ट्रपति बुश ने छह कैबिनेट सचिवों, शीर्ष अमेरिकी स्वास्थ्य अधिकारियों और विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र के निदेशकों के सामने 30 मिनट का भाषण दिया, जिसमें एक इन्फ्लूएंजा महामारी जैसी किसी भी जोखिम से निपटने के लिए संघीय योजना की रूपरेखा तैयार की। 1918 की महामारी में अमेरिका के करीब पांच लाख लोगों की मौत हुई थी।
जॉर्ज डब्ल्यू बुश : अमेरिका के 43 वें राष्ट्रपति
उस महामारी से सबक लेते हुए बुश ने तीन लक्ष्य निर्धारित किए- प्रकोपों का पता लगाना, टीकों का स्टॉक करना और आपातकालीन योजनाएं लागू करना। इतना ही नहीं दुनिया भर में फैलने से पहले प्रकोपों का पता लगाने की पहल के तहत, बुश ने संयुक्त राष्ट्र की बैठक में एक नई अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी की घोषणा की थी। अस्सी देश और नौ अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस पहल में शामिल हो गए। अमेरिका में बुश प्रशासन ने ऐसी आपातस्थिति के लिए 710 करोड़ डॉलर की व्यवस्था की। यह भी तय किया कि अमेरिका वैक्सीन और एंटीवायरल ड्रग्स जैसे टैमीफ्लू (ओसेल्टामिविर) और रिलैन्ज़ा (ज़ानामिविर) का स्टॉक करेगा और नई वैक्सीन तकनीकों के विकास में तेजी लाएगा। अमेरिका का राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान वैक्सीन उद्योग के नेताओं के साथ मिलकर सेल कल्चर तकनीक के लिए काम करने लगा। अमेरिका में सभी 50 राज्यों और प्रत्येक स्थानीय समुदाय में आपातकालीन योजनाएं बनाई गईं। बुश की योजनाओं की अमेरिका में सराहना हुई और नेताओं ने उनका समर्थन किया। मैसाचुसेट्स के सीनेटर एडवर्ड केनेडी ने कहा कि बुश के प्रस्ताव को " और मजबूत करने की आवश्यकता है।" यह सुनिश्चित करने के लिए अधिक खर्च का आह्वान किया गया कि अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं में मरीजों की बाढ़ को संभालने की क्षमता हो।
रिपब्लिकन नेता बिल फ्रिस्ट ने कहा, "राष्ट्रपति का साहसिक और निर्णायक नेतृत्व आज इस मुद्दे का सामना करने की उनकी समझ को दर्शाता है।" यह भी कहा गया कि "यह सार्वजनिक स्वास्थ्य में एक ऐतिहासिक दिन है। " स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग ने राष्ट्रपति के भाषण के बाद, संघीय और राज्य योजना पर ध्यान केंद्रित करते हुए 396 पृष्ठ का महामारी फ्लू दस्तावेज जारी किया। यह मान लिया कि एक काल्पनिक बीमारी 9 करोड़ अमेरिकियों को बीमार कर सकती है और इस तरह की घटना में लगभग 20 लाख लोग तक मारे जा सकते हैं। उस समय बुश ने चेतावनी दी थी कि अगर हम महामारी का इंतजार करेंगे तो वह हमें तैयारी का समय नहीं देगी। सन 2009 में जब बराक ओबामा राष्ट्रपति बने तब उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार की योजनाओं का ध्यान से मनन किया। ओबामा के शासनकाल में महामारी से जूझने के लिए एक प्लेबुक बनाई गई थी कि महामारी फैले तो कब कब क्या-क्या कदम उठाए जाएं। हर स्थिति से निपटने की रूपरेखा तैयार थी। महामारी को अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल से जोड़ा गया था। उसके लिए काउंसिल में हेल्थ यूनिट बनाई गई थी। यह प्लेबुक 2016 में इबोला महामारी के मद्देनजर तैयार की गई थी, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। एक वेबसाइट पॉलिटिको के अनुसार ट्रम्प ने नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की हेल्थ यूनिट को ही भंग कर दिया, जिसकी जिम्मेदारी ऐसी किसी महामारी में लीड करने की थी।(https://www.politico.com/)
ट्रंप प्रशासन लापरवाह रहा, लेकिन फिर बी पिछले साल उसने किसी ऐसी महामारी की आशंका को देखते हुए ट्रेनिंग का सिलसिला शुरू किया। एक अमेरिकी अखबार के अनुसार इस ट्रेनिंग में कई परिदृश्य ऐसे थे जो आज बिल्कुल हूबहू अमेरिका के सामने हैं। उस समय कल्पना की गई थी कि वायरस चीन से आएगा और अमेरिका में मेडिकल सप्लाई की भारी कमी रहेगी। आज यह सब हो ही रहा है।
सन 2014 में इबोला वायरस का हमला हुआ था। इबोला एक क़िस्म की वायरल बीमारी थी। इसके लक्षण थे अचानक बुख़ार, कमज़ोरी, मांसपेशियों में दर्द और गले में ख़राश। अगले चरण में उल्टी होना, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव। मनुष्यों में इसका संक्रमण संक्रमित जानवरों, जैसे, चिंपैंजी, चमगादड़ और हिरण आदि के सीधे संपर्क में आने से होता था। इसका संक्रमण संक्रमित रक्त, द्रव या अंगों के मार्फ़त होता। यहां तक कि इबोला के शिकार व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी ख़तरे से ख़ाली नहीं होता था। शव को छूने से भी इसका संक्रमण हो सकता था। इबोला के संक्रमण के चरम तक पहुंचने में दो दिन से लेकर तीन सप्ताह तक का वक़्त लग सकता। इसकी पहचान और भी मुश्किल थी। चमगादड़, सुअर और बंदर से आये इस संक्रमण के कारण कई देशों में लोगों ने दस्ताने पहनना शुरू कर दिया था। कई देशों ने अपनी सीमाएं सील कर दी थी। इसका संक्रमण रोकने के दावे किये गए, लेकिन इसकी दवा अब तक नहीं खोजी जा सकी है।
बिल गेट्स ने इस बीमारी से निपटने के लिए काफी बड़ी धनराशि दान की थी। शायद उन्हें इसकी गंभीरता का अहसास था। बिल गेट्स ने भी 2015 में अपने टेड टॉक्स के प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि दुनिया ने हजारों निस्वार्थ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने हमें इबोला के वैश्विक प्रकोप से बचा लिया -यह हमारी अच्छी किस्मत रही। संकट के दौर में हम जानते हैं कि हमें क्या बेहतर करना चाहिए था। इसलिए, अब समय है, हमारे सभी अच्छे विचारों को व्यवहार में लाने के लिए। हमें योजना बनाकर अनुसन्धान में जुटना चाहिए। दवाइयां, टीके आदि बनाने में जुटना चाहिए। इसमें स्वास्थ्य कार्यकर्तां का प्रशिक्षण भी शामिल हैं। "घबराने की ज़रूरत नहीं है ... लेकिन हमें जानने की ज़रूरत है।" इसी भाषण में बिल गेट्स ने कहा था कि अब अगर लाखों लोगों के सामने मौत आई तो वह किसी विश्वयुद्ध के कारण नहीं, बल्कि वायरस के कारण होगी। वायरस का खतरा विश्व युद्ध के खतरे से कम नहीं है। यह बात अब हम तो क्या, पूरी दुनिया मानती है कि यह संक्रमण एक तरह का विश्वयुद्ध ही है। (https://www.ted.com/…/bill_gates_the_next_outbreak_we_re_no… )
17 /04/2020