Bookmark and Share
fauzia
 
भोपाल में पढ़ीं-बढ़ीं और फिलवक़्त मुंबई की निवासी फौजिया अर्शी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं।  वे पत्रकार, लेखक, फ़िल्मकार, प्रोफ़ेसर, कलाकार और न जाने क्या-क्या हैं!  वे मुस्लिम हैं, महिला हैं, 'प्रगतिशील' हैं और इसीलिए देश के बारे में सोचने का उनका अपना नज़रिया भी है।  उनकी किताब 'द सन राइसेस फ्रॉम द वेस्ट'  (प्रकाशक :  वॉरीअर्स विक्ट्री, यूके) में उन्होंने में जो मुद्दे उन्होंने उठाए हैं वे  अखबारों की सुर्खियां और टीवी चैनलों की डिबेट का हिस्सा रहे हैं। वे मानती हैं कि यह 'फूल्स एरा' यानी मूर्खता का दौर है।  इस दौर की पहचान यही है कि यहाँ घटिया मानक वाले विचार, उत्पाद, संगीत, फ़िल्म, रोज़मर्रा की चीजें, वाहन, किताबें, फैशन, नेता , मीडिया, जीवनशैली, आधारभूत संरचना, भोजन आदि का बोलबाला है। देश के 80 प्रतिशत लोगों को जीवन में यही नसीब  है। केवल 20 प्रतिशत लोगों को ही गुणवत्ता का माल उपलब्ध है।

पुस्तक में देश और काल की चिंता की गई है। लेखिका का मानना है कि पहले हम सभी को भारतीय बनना होगा। एक आम आदमी नहीं, एक सेलिब्रिटी नहीं, किसी धर्म  या किसी विचारधारा का प्रतिनिधि नहीं,  बल्कि सचमुच भारतीय  होना ही पड़ेगा।    आज देश को तबाह कौन कर रहा है? कौन-सी शक्तियां हैं जो देश को आगे बढ़ने से रोक रही हैं और एक राष्ट्र के रूप में भारत को स्थापित करने में आड़े आ रही हैं? 
 
इस किताब में फौज़िया ने इन तमाम मुद्दों पर चर्चा की है - भारत की युवा शक्ति, कंज़्यूमर क्लास, कोरोनावायरस के बाद के हालात,  वर्ग-विभेद, बदहाल कामकाजी वर्ग, शहरी और ग्रामीण पलायन, कमीशनखोरी और दलाली, आरएसएस वर्सेस इंडियंस, मदरसे, नामकरण, किसान, महिला इकोनॉमी आदि। देश और हालात को देखने का उनका नजरिया है और कहीं - कहीं उनका चश्मा भी है। 
 
कई मायनों में उनके विचार बहुत ही महत्वपूर्ण है।  इसमें शिक्षा के मुद्दे पर  विचार किया गया है। भारत के वर्क फोर्स के बारे में इसमें काफी गंभीर चिंता जताई गई है  और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के द्वारा किए जाए जा रहे कार्यों का भी उल्लेख है। भारत में  82 प्रतिशत संपदा केवल एक प्रतिशत लोगों के पास है।  28 प्रतिशत संपदा अन्य के पास है। मध्यमवर्ग के पास केवल 3 प्रतिशत और 14 प्रतिशत निम्न मध्य वर्ग के पास है। देश के 9 अरबपतियों के पास देश की आधी आबादी के बराबर जितनी सम्पत्ति है। 

शहरी और ग्रामीण माइग्रेशन के बारे में काफी चर्चा की गई है। कोरोना काल में जो कुछ हुआ, उसे लेखिका ने खुद देखा, महसूस किया। इस दौर में जितना माइग्रेशन भारत में हुआ,  उतना दुनिया में पहले कभी नहीं देखा गया। भारत में रोज़गार की स्थिति 5 साल में बद से बदतर हो चुकी है। देश में करीब 5 करोड़ लोगों के पास कोई काम नहीं है।
लेखिका ने इस बात पर भी चिंता जताई है कि आज के दौर में अर्थशास्त्रियों और इतिहासकारों  को पूरी व्यवस्था से एकदम विलोपित कर दिया गया है। "ये अगर कोई बात कहने के लिए खड़े होते हैं तो उन्हें चुप करा दिया जाता है।" भारत में जो 1 प्रतिशत प्रभावशाली - धनपति लोग हैं, वे  दुनिया के किसी और देश के धनपतियों से ज्यादा पावरफुल है। वे अमेरिका और इजरायल के मालदारों  से भी ज्यादा पावरफुल !
 
पुस्तक के एक अध्याय में कमीशनखोरी की भी चर्चा की गई है। सत्ता की दलाली जिस तरह से हो रही है, उसका जिक्र है। बताया गया है कि किस तरह कमीशनखोरी की कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ती है। फौजिया  ने एक अध्याय में आरएसएस और भारतीयता को दो अलग-अलग समुदाय के रूप में निरूपित किया है। ''दोनों को जमीन और आसमान बताया है। भारत के पास कोई एजेंडा नहीं है लेकिन आरएसएस के पास एक एजेंडा है। जो भी व्यक्ति भारत को प्यार करता है, वहआरएसएस से नफरत करता है। इसका कारण यह है कि सच्चे भारतीय आरएसएस की विचारधारा से कभी इत्तेफाक नहीं रखते।''  लेखिका के अनुसार आरएसएस फासिस्ट समुदाय है।  पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, इंदिरा गांधी, जयप्रकाश नारायण, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी, राजीव गांधी, एपीजे अब्दुल कलाम  आदि ने काफी अध्ययनशीलता का परिचय दिया है। ये लोग रचनात्मक रहे हैं। उन्होंने लोगों को शिक्षित किया है।  उन्होंने समाज को विभाजित नहीं किया। किसी भी तरह की नफरत को बढ़ावा नहीं दिया। उनके मन में नया नामकरण, दलित, गोमांस, जेएनयू, जामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, लव जिहाद,  एंटी रोमियो स्क्वाड, एनआरसी, सीएए  दंगे आदि  विचार नहीं आये। 

लेखिका के अनुसार कुछ मुस्लिमों का रवैया भी इस बातों के लिए जिम्मेदार कहा जा सकता है। भारत में अधिकांश मुस्लिम निरक्षर हैं और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। भारत में दो तरह के ही मुसलमान रहते हैं। निरक्षर  और पढ़ने-लिखने वाले।   अपढ़ मुस्लिम ज्यादातर समस्याओं को पैदा करने वाले हैं। वे धर्म को बहुत ज्यादा मानते हैं। ववे  बेफिक्र-बेखौफ रहते हैं। वह अपनी बात खुलकर कहते हैं और उनके पास दिमाग की कमी है। अतिवादी हैं। वे पांच बार की नमाज लाउड स्पीकर पर पढ़ते हैं। इस तरह की कंपटीशन करते हैं कि कौन सबसे तेज आवाज में नमाज अदा करता है । कुछ नेता मुसलमान समुदाय को देश के लिए खतरा बताते हैं और यह कहते हैं कि एक  दिन मुसलमानों की आबादी भारत  में  सबसे ज्यादा हो जाएगी।  इसलिए नारे लगते हैं कि इनको क्यों नहीं पाकिस्तान भेजते?  देश के गद्दारों को, गोली  मारो सालों को आदि बातें कही जाती है।  भारत में मुसलमान! खुदा से खौफ खाते हैं, खुदा को प्यार नहीं करते।  

एक अध्याय फिल्म उद्योग के बारे में भी  है। भारत में हिन्दी, मराठी, तमिल, तेलुगू, बांग्ला और अन्य भाषाओं की फिल्में खूब बनती है। 2019 में भारतीय फिल्म उद्योग का कारोबार  18300 करोड़ भारतीय रुपए  था। 2020 में इस इंडस्ट्री को 2500 करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हुआ।  कोविड-19 ने  फिल्म उद्योग की रीढ़  की हड्डी तोड़ दी।


लेखिका का मानना है कि भारत में मुसलमानों के बच्चों को अलग से मदरसों में नहीं भेजा जाना चाहिए। उन्हें सरकारी स्कूलों में या प्राइवेट स्कूलों में ही अपने बच्चों के साथ पढ़ाई करनी चाहिए जो बच्चे वहां पढ़ाई नहीं कर सकते, उन्हें कोचिंग से भेजा जाना चाहिए। हज यात्रा को लेकर भी किताब में काफी कुछ लिखा गया है। भारत के लोग हज यात्रा पर हर साल करीब 10000 करोड़  रुपए खर्च करते हैं।मुस्लिमों द्वारा विवाह में किया जाने वाला खर्च भी लेखिका के लिए चिंता का विषय है। नामकरण, बेटी बचाओ, इलाहाबाद की महत्ता, महिलाओं के प्रति होनेवाले अपराध आदि पर भी काफी कुछ लिखा गया है।  अंत में लेखिका ने लिखा है कि भारतीयों को जाग्रत हो जाना चाहिए।  

Search

मेरा ब्लॉग

blogerright

मेरी किताबें

  Cover

 buy-now-button-2

buy-now-button-1

 

मेरी पुरानी वेबसाईट

मेरा पता

Prakash Hindustani

FH-159, Scheme No. 54

Vijay Nagar, Indore 452 010 (M.P.) India

Mobile : + 91 9893051400

E:mail : prakashhindustani@gmail.com