Bookmark and Share

Up1

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सीएए आंदोलन के दौरान जिन लोगों पर जुर्माना लगाया गया था और जिन लोगों ने जुर्माने की राशि जमा कर दी थी, उन्हें वह राशि रिफंड कर दी जाए। पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि हमने जुर्माने की भरपाई करने के आदेश वापस ले लिए है। 2019 में सीएए आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को लेकर उत्तरप्रदेश सरकार ने 274 लोगों को नोटिस दिए थे और कहा था कि वे जुर्माने की राशि जमा करें। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार के रवैये के प्रति नाराजगी जताई थी और जुर्माने के रिफंड में सरकार की सुस्ती को लेकर भी कड़ी टिप्पणी की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार को कड़ी चेतावनी दी थी और कहा था कि ये आखिरी मौका सुप्रीम कोर्ट दे रही हैं। अगर आदेश का पालन नहीं किया गया, तो हम इस पर अपने स्तर पर फैसला ले लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सीएए आंदोलन के दौरान हुए जन-धन के नुकसान की भरपाई के लिए राज्य सरकार ने जो काम किया है, उससे ऐसा लगता है कि सरकार ही यहां शिकायतकर्ता है, सरकार ही वकील है और सरकार ही न्यायाधीश है। ये तमाम नोटिस मनमाने तरीके से दिए गए है। एक नोटिस तो ऐसे व्यक्ति को भेजा गया, जिसकी उम्र 94 वर्ष थी और उसकी मृत्यु को6 साल हो चुके थे। 2 नोटिस ऐसे व्यक्ति को दिए गए, जो 90 साल से ज्यादा की उम्र के हैं और शारीरिक रूप से सक्षम नहीं है।

up2

सीएए आंदोलन के दौरान हुए जन-धन को लेकर उत्तरप्रदेश सरकार ने 106 एफआईआर दर्ज की थी और उसमें 835 लोगों के नाम लिखे गए थे। उसके बाद 274 लोगों को नोटिस जारी किए गए और उनमें से 236 के खिलाफ वसूली के आदेश जारी किए गए। 36 मामलों को बंद कर दिया गया।
इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश की सरकार ने सन 2020 में एक कानून बनाया, उस कानून के अनुसार उत्तरप्रदेश सरकार को इस तरह की स्थिति में नोटिस जारी करने और जुर्माना वसूल करने का अधिकार दिया गया। इस कानून का नाम यूपी रिकवरी ऑफ डैमेज टू प्रॉपर्टी एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट 2020 है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा कि वह चाहे तो इस कानून के तहत कार्रवाई कर सकती है, लेकिन सरकार ने जो आदेश जारी किए है, वे सुप्रीम कोर्ट के ही 2009 के आदेश का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने ही 2018 में फैसले के आदेश की पुष्टि कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि इस तरह जुर्माने की राशि की वसूली हाईकोर्ट की निगरानी में कोई न्यायिक न्यायाधिकरण ही कर सकता है, सरकार नहीं।
अब उत्तर प्रदेश की सरकार ने 274 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई को वापस ले लिया है। शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से आंदोलन की आड़ में मनमानी कार्रवाई की है। छोटी-मोटी दुकान चलाने वालों, रिक्शा चालकों और गरीब मजदूरों को इस मामले में फंसा दिया गया है। कई लोगों की संपत्तियां ज़ब्त कर ली गई और कई लोगों को इस बात के लिए मजबूर किया गया कि वे अपना घर बेचकर जुर्माने की राशि अदा करें।
उत्तरप्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद भी तर्क दे रही थी कि अभी विधानसभा के चुनाव होने वाले है, इसलिए आचार संहिता की वजह से जुर्माने का रिफंड करना मुश्किल है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट यथास्थिति बनाए रखने के लिए अनुमति दे दें। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि अगर सरकार प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ आचार संहिता के चलते कारण बताओ नोटिस दे सकती है और जुर्माना जमा कर सकती है, तो राज्य सरकार उस जुर्माने का रिफंड भी कर सकती है। आचार संहिता का मतलब यह नहीं कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का आदेश पालन करने से हिला हवाला करें।
सीएए प्रदर्शन के दौरान 1 करोड़ 94 लाख की सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। इस बात की जानकारी उत्तरप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दी थी। उत्तरप्रदेश सरकार ने लखनऊ, प्रयागराज और मेरठ में 3 ट्रिब्यूनल बना दिए थे, जिनके जरिये इस जुर्माने की राशि वसूल की जा रही थी। राज्य सरकार की तमाम प्रयासों के बाद भी 22 लाख 37 हजार रुयये की ही वसूली हो पाई।
उत्तर प्रदेश की सरकार सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने के लिए बाध्य है और सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश के माध्यम से यह संदेश दिया है कि कोई भी सरकार मनमाने तरीके से लोगों पर जुर्माना और वसूली की कार्रवाई नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन लोगों पर कार्रवाई हुई है, वह न्याय संगत नहीं है और सरकार अगर चाहती तो अपने नए कानून के तहत कार्रवाई कर सकती है। अब राज्य सरकार की तरफ से उत्तरप्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अब रिकवरी नोटिस वापस हो चुके है और कथित दंगाइयों पर कार्रवाई भी खत्म हो गई है, लेकिन रिफंड के आदेश से देश के लोगों के सामने अच्छा संदेश नहीं जाएगा।
दंगा करने वालों और सरकारी संपत्ति का नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ इसके पहले भी राज्य सरकारों में कार्रवाई की गई है। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए धार जिले के कुछ गांव में सामूहिक जुर्माना लगा दिया गया था, क्योंकि वहां सांप्रदायिक दंगे के दौरान वर्ग विशेष के लोगों की संपत्ति को काफी हानि पहुंची थी। उस फैसले से बहुसंख्यक समाज में काफी रोष पैदा हो गया था और सरकार की कार्रवाई से दंगों पर तो लगाम नहीं रही, लेकिन लोगों में इतना रोष बढ़ा कि दिग्विजय सिंह की सरकार को जाना पड़ा। लोकतंत्र में सभी को शांतिपूर्वक आंदोलन करने और अपनी बात कहने का अधिकार हैं। इस अधिकार का खंडन नहीं होना चाहिए, लेकिन यह बात भी सही है कि सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता। जब भी ऐसे मामले सामने आते है कि लोगों ने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, तब मानवाधिकार कार्यकर्ता यह बात कहने से नहीं चूकते कि दंगे के दौरान पुलिस पक्षपातपूर्ण रूख अपनाती है और कई बार तो दंगा कर रहे एक पक्ष को छूट दे देती है।
उत्तरप्रदेश में योगी सरकार द्वारा बनाए गए कानून की तर्ज पर ही मध्य प्रदेश की सरकार ने भी इस तरह का कानून बनाया है। इसका नाम मध्यप्रदेश लोक एवं निजी संपत्ति को नुकसान एवं नुकसान वसूली एक्ट 2021 नाम दिया गया है। मध्यप्रदेश के इस कानून के मुताबिक केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय और सहकारी संस्थाओं तथा सार्वजनिक कंपनियों की संपत्ति के नुकसान को अंजाम देने वालों के खिलाफ जुर्माने का प्रावधान है। अगर कोई व्यक्ति 15 दिन में नुकसान का हर्जाना नहीं देता, तो उसकी वसूली करने के लिए क्लैम्स ट्रिब्यूनल की मदद ली जाएगी और अगर जरूरत पड़ी तो आरोपी की चल और अचल संपत्ति जप्त कर ली जाएगी। कानून के मुताबिक नुकसान से दोगुना तक की राशि की वसूली की जा सकती है।
हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने इसी तरह का कानून बनाया था। 2021 में बने इस कानून के अनुसार यह व्यवस्था स्थायी नहीं है, बल्कि उन्हीं जिलों में लागू होगी, जहां हिंसा से निजी या सरकारी संपत्ति को नुकसान हुआ होगा। हरियाणा के कानून के अनुसार चल-अचल संपत्ति, वाहन, पशु, आभूषण आदि इसके दायरे में है। अगर किसी को 1000 रुपये से कम संपत्ति का नुकसान होता है, तो उसके लिए दावा नहीं किया जा सकेगा। अगर संपत्ति का पहले से कोई बीमा है, तो बीमा कंपनी से मिलने वाला धन मुआवजे की राशि में समायोजित कर लिया जाएगा। वसूली गई राशि से बीमा कंपनी को पैसा वापस करने का भी प्रावधान था। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपने इस कानून में यह व्यवस्था की है कि इस तरह की वसूली आदेश देने वाले ट्रिब्यूनल को किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। मध्यप्रदेश का कानून इतना सख्त नहीं है।
भारत में सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 पहले से ही विद्यमान है। इसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति निजी या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है, तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके अलावा कानून में 5 साल तक की सजा का प्रावधान भी है और यह प्रावधान भी है कि जुर्माना या सजा एक साल चलें। अगर कोई व्यक्ति जन-धन को नुकसान पहुंचाता है, तो वह जब तक जुर्माने की 100 प्रतिशत राशि जमा नहीं कर देता, तब तक उसे सजा से मुक्त नहीं किया जा सकता। केरल में सबरीमाला मंदिर को लेकर चले आंदोलन के बाद वहां की राज्य सरकार ने इस कानून में संशोधन करके दोषी व्यक्ति को 10 साल तक की सजा का प्रावधान कर दिया।
आईपीसी के सेक्शन 425 में इस बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी गई है। इस तरह के जुर्माने व वसूली को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में स्वत: संज्ञान लिया था। पूर्व न्यायमूर्ति के.टी. थॉमस और सीनियर एडवोकेट फली नरीमन की दो कमेटियां बनाई गई थी। 2009 में उन कमेटियों की सलाह पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन जारी की थी। इस गाइडलाइन के अनुसार सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाला व्यक्ति इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता है और उससे नुकसान की वसूली की जा सकती है। हार्दिक पटेल के नेतृत्व में गुजरात में हुए आरक्षण संबंधी आंदोलन में जन-धन की काफी क्षति हुई थी। हार्दिक पटेल के वकील ने कोर्ट में यह बात साबित की थी कि इस जनहानि में हार्दिक पटेल की कोई भूमिका नहीं थी और हार्दिक पटेल बरी हो गए थे।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार को झटका तो लगा ही है। राज्य सरकार की यह छवि भी बनी है कि वह मनमाने तरीकों से फैसले लेती है और उस पर अमल करती हैं। जन आंदोलनों के दौरान हिंसा किसी भी रूप में मान्य नहीं है और न ही जन-धन का नुकसान मान्य किया जा सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे आंदोलनों के दौरान सरकार खुद जिस तरह से अपनी ही संपत्तियों को नुकसान पहुंचाती है, उसकी भरपाई आखिर कौन करेगा? जैसे किसान आंदोलन के दौरान सरकार ने खुद ही अपनी सड़कें खोद दी थी। क्या ऐसे प्रयोगों को कानून और व्यवस्था का प्रयोग माना जाएगा या जन-धन की बर्बादी?

https://mediawala.in/refund-of-fine-in-uttar-pradesh-dr-prkash-hindusthani-column/

Search

मेरा ब्लॉग

blogerright

मेरी किताबें

  Cover

 buy-now-button-2

buy-now-button-1

 

मेरी पुरानी वेबसाईट

मेरा पता

Prakash Hindustani

FH-159, Scheme No. 54

Vijay Nagar, Indore 452 010 (M.P.) India

Mobile : + 91 9893051400

E:mail : prakashhindustani@gmail.com