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रूस और यूक्रेन के बीच जंग और भारत के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के कारण एनएसई घोटाले की चर्चा डाब गई है, लेकिन यह घोटाला है किसी फ़िल्मी कहानी या ओटीटी की किसी सनसनीखेज सीरीज की तरह की। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) दुनिया का 10वां सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज हैं। इसका फिफ्टी सूचकांक भारत के ही नहीं, पूरी दुनिया के निवेशकों के लिए बहुत मायने रखता है। एनएसई में शामिल स्टॉक्स की कुल कीमत भारत के जीडीपी से भी ज्यादा है। अंदाज लगा सकते है कि एनएसई कितना महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। एनएसई ऑप्शन और फ्यूचर सहित कई तरह की सिक्योरिटी खरीदने और बेचने की सुविधा देता है। शेयर की खरीद-फरोख्त का असल खेल इसी एनएसई में होता है।

इतना महत्वपूर्ण संस्था में जिस तरह से कामकाज होता है और घोटालों के तार जिस तरह उजागर हुए, वे आंखें खोल देने वाले है। एनएसई घोटाले में कार्पोरेट गवर्नेंस की कलई खोल दी है। एनएसई की पूर्व सीईओ और एमडी चित्रा रामकृष्ण को घोटाले के मामले में सेबी और ईडी की जांच का सामना करना पड़ा। अब तक वे बेहद सम्माननीय अधिकारी के रूप में मानी जाती थी। अब यह बात उजागर हुई कि वे हिमालय में रहने वाले किसी आध्यात्मिक गुरू के आदेश पर निर्णय लिया करती थी। ये वही चित्र रामकृष्ण हैं जिन्होंने एनएसई की स्थापना में बड़ी भूमिका निभाई थी। बड़ी बात यह सामने आई कि हिमालय में रहने वाला वो आध्यात्मिक गुरू और कोई नहीं बल्कि एनएसई का ही आनंद सुब्रमण्यम था। पहले उन्होंने यह बात कही थी कि हिमालय में रहने वाले ये परंपहंस नामक गुरू 20 वर्षों से उनके मार्गदर्शक हैं।

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घोटाले की परते खुलने लगी तो पता चला कि उस तथाकथित गुरु के कहने पर ही चित्रा रामकृष्ण ने आनंद सुब्रमण्यम नामक व्यक्ति को एनएसई का चीफ स्ट्रेटेजिक एडवाइजर और फिर समूह संचालन अधिकारी नियुक्त किया। इस सुब्रमण्यम नामक व्यक्ति के पास नौकरी के लिए जरूरी योग्यता नहीं थी, क्योंकि वह कोई प्रमाण पत्र पेश नहीं कर पाया। यह नियुक्ति केवल चित्रा रामकृष्ण ने इंटरव्यू के आधार पर की थी। सुब्रमण्यम को जो तनख्वाह दी गई, वह उसकी पुरानी तनख्वाह से 10 गुना ज्यादा थी यानी एक हजार प्रतिशत की वेतनवृद्धि के साथ यह नियुक्ति की गई थी। इतना ही नहीं सुब्रमण्यम का वेतन बार-बार बढ़ाया गया। हालत यहां तक हो गई कि यह व्यक्ति चित्रा रामकृष्ण का दाहिना हाथ बन बैठा और उनके कैबिन के ठीक पास उसे कैबिन दे दिया गया। एनएसई के संचालन की तमाम शक्तियां सुब्रमण्यम को सौंप दी गई। उसके ऊपर एक ही व्यक्ति था और वह थी चित्रा रामकृष्ण।

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किसी फिल्मी कहानी या ओटीटी की सीरीज की तरह जब इस मामले की जांच शुरू हुई, तब सेबी ने अर्न्स्ट एंड यंग कंपनी को फॉरेंसिक जांच के लिए तैनात किया। जांच में पता चला कि चित्रा रामकृष्ण का वह आध्यात्मिक गुरू और कोई नहीं बल्कि यह सुब्रमण्यम ही था। यानी घोटाले की हद यह है कि कोई एक व्यक्ति एनएसई में बिना योग्यता के न केवल नियुक्ति पा गया, बल्कि एनएसई का दूसरा सबसे ताकतवर अधिकारी भी बन बैठा।

इस पूरे मामले में सनसनीखेज बात यह थी कि चित्रा रामकृष्ण ने सुब्रमण्यम की नियुक्ति में भारी धांधली की। गोपनीयता के नाम पर सेबी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को धोखे में रखा। सुब्रमण्यम द्वारा किए गए घोटालों (जिसे अपराध कहा जा सकता है) के बारे में जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। सेबी को इस बारे में लगातार अंधेरे में रखा गया। इन सब बातों से स्पष्ट है कि सीईओ ने अपने विशेषाधिकारों का लगातार दुरुपयोग किया। इस घोटाले से यह भी साफ है कि कॉर्पोरेट जगत में घोटाले करने के बाद भी लोग किस तरह बचे रह सकते है। नियमों का उल्लंघन किए जाने के बाद भी दोषी कैसे बचा रह सकता है, यह बहुत गंभीर बात है।

सेबी ने आरोप लगाया है कि एनएसई के अनुमानों, डेटा, लाभांश अनुपात, व्यापार योजना और बोर्ड की कार्यसूची संबंधी कंपनी की सभी जानकारियां शायद ही सुरक्षित रही हो। चित्रा रामकृष्ण जिस आध्यात्मिक गुरु की बात करती रही, वह वास्तव में कोई आध्यात्मिक गुरु था ही नहीं और उसने जो ई-मेल आईडी शेयर की थी, वह जांच के बाद सुब्रमण्यम की ही पाई गई।

ऐसी गड़बड़ियों की जानकारी एनएसई को आगे बढ़ानी चाहिए थी। खासकर सेबी को इस बारे में सूचित करना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इससे साफ है कि पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है, जिसके लिए बड़े और कड़े फैसले ज़रूरी हैं।

यह बात सामने आई है कि एनएसई के संगठन में संरचनात्मक समस्या है। बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति किसी व्यक्ति का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए। जब कोई निर्देशक एनएसई के हित में काम नहीं करता या उसका प्रदर्शन खराब होता है, तब उसे सजा देने का प्रावधान होना चाहिए। भेदभाव करने वाले निदेशकों को तत्काल पद से हटाना चाहिए। सेबी वह संस्था है, जो उन निदेशकों के खिलाफ कार्रवाई करती है, जो वित्तीय अनियमितताएं करते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई कंपनी वित्तीय अनियमितताएं करती है, तब वह कानून के दायरे में होती है, लेकिन एनएसई के इतने बड़े अधिकारी कानून से बच निकलते है। उनके लापरवाही के कारण वित्तीय संस्थानों, बैंकों, शेयर होल्डरों और कर्मचारियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। एनएसई के कामों का स्वतंत्र रूप से ऑडिट क्यों नहीं होता? इस कथित घोटाले में परमहंस की खोज के लिए सेबी ने साइबर पुलिस की मदद क्यों नहीं ली?

परमहंस के नाम से योगी बनकर धोखाधड़ी करने वाले आनंद सुब्रमण्यम ने जो कारनामा किया है, उसके सामने नटवरलाल के कारनामे भी फीखे लगते है। एनएसई की सीईओ चित्रा रामकृष्ण और चीफ स्ट्रेटेजिक एडवाइजर आनंद सुब्रमण्यम ने मिलकर जो घोटाले किए, उसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि घोटाले के सूत्रधार और खलनायक ये ही लोग है। चित्रा रामकृष्ण पर तीन करोड़ रुपये और सुब्रह्मण्यम पर दो करोड़ रूपये का अर्थदंड लगाया गया है। हास्यास्पद बात यह भी है कि एनएसई की सीईओ जैसी हैसियत वाली महिला आंखें मूंदकर काम कैसे करती रही? चित्रा रामकृष्ण पर जांच के बाद यह सामने आई कि सन 2013 से 2016 के बीच उन्होंने कई ऐसे काम किए, जो शेयर बाजार के हितों से जुड़े हुए नहीं थे। इस अवधि में वे एनएसई की सीईओ और एमडी एक साथ थी। सन 2009 में वे एनएसई में संयुक्त प्रबंध निदेशक बनी थी और 4 साल बाद ही वे सीईओ बन गई। 2016 में उन्हें पद के गलत इस्तेमाल और एक घोटाले में शामिल होने के कारण एनएसई से निकाल दिया गया। जब उनसे पूछताछ की गई, तब उन्होंने कहा कि एनएसई से जुड़ी कई गोपनीय जानकारियां उन्होंने एक सिद्ध पुरूष योगी के साथ शेयर की थी, जो हिमालय में विचरण करते हैं और 20 साल से चित्रा का मार्गदर्शन कर रहे हैं। वे ऐसे योगी है, जो केवल अपनी इच्छा से ही प्रकट होंगे।

चित्रा रामकृष्ण ने सुब्रमण्यम की नियुक्ति उस पद पर कर दी थी, जो पद एनएसई में था ही नहीं। जांच की पहली कड़ी सुब्रमण्यम पर जाकर टिकी। सुब्रमण्यम पहले बामर एंड लॉरी नामक कंपनी में काम करते थे। उन्हें पूंजी बाजार में काम करने का कोई अनुभव नहीं था, उनकी वार्षिक तनख्वाह करीब 15 लाख रुपये थी। चित्रा रामकृष्ण ने उन्हें एनएसई में चीफ स्ट्रेटेजिक ऑफिसर के पद पर भर्ती कर लिया और उन्हें जो सैलरी दी गई वह थी 1 करोड़ 68 लाख रुपये वार्षिक। इस नियुक्ति के लिए उन्होंने एनएसई के एचआर विभाग से भी कोई सलाह नहीं ली। न ही कोई विज्ञापन जारी किया गया। सुब्रमण्यम ने सीधे आकर चित्रा रामकृष्ण को इंटरव्यू दिया और भर्ती हो गया। इंटरव्यू के बारे में भी कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है।

सेबी ने इस मामले में जांच करने के लिए अलग-अलग तकनीकों का उपयोग किया। किसी गंभीर अपराध की पड़ताल जैसा ही यह मामला था। सेबी ने मनोवैज्ञानिकों की मदद भी ली, जिन्होंने चित्रा रामकृष्ण की गतिविधियों को देखते हुए उनसे बातचीत की और मामले को अंजाम तक पहुंचाया। एनएसई जैसी नियामक संस्था में इस तरह के घोटाले ने पूरे व्यावसायिक जगत को हिला दिया है।

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