श्रमिक संगठनों की दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल के कारण लोगों को हुई असुविधाओं को प्रचारित करने के लिए फेक न्यूज़ की फैक्ट्रियां सक्रिय हो गई है। हालांकि श्रम संगठनों की मांग सरकार की नीतियों से सम्बंधित हैं। इसके साथ ही मनरेगा के तहत काम करने वालों के लिए आबंटित धनराशि को बढ़ाने की मांग की जा रही है। देशव्यापी बंद इंटक, एनटीयूसी, एआईटीयूसी, सीटू, एसडब्ल्यूए, एलपीएफ आदि महत्वपूर्ण संगठनों के द्वारा आयोजित है। इस आंदोलन में कोयला, इस्पात, टेलीकॉम, इनकम टैक्स, बीमा, पोस्टल आदि विभागों के कर्मचारियों की वे यूनियन शामिल हैं, जो हमेशा ही देश भर में लगातार सक्रिय रही हैं।
श्रम संगठनों की मांग बहुत स्पष्ट है। उनका कहना है कि सरकारी कंपनियों का निजीकरण बंद किया जाए। साथ ही सरकारी संस्थानों की बिक्री की प्रक्रिया को भी रोका जाए। ऐसी खबरें भारत के मास मीडिया को कहाँ पसंद आती हैं? देश के सबसे बड़े प्रकाशन संस्थानों और टेलीविजन कंपनियों पर जिन लोगों का कब्जा है, सरकार की तरह ही वे भी नहीं चाहते कि इस तरह की हड़ताल हो या लोग हड़ताल का समर्थन करें, क्योंकि यह उनके हित में नहीं है। इसीलिए हड़ताल को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैलाई जा रही है और यह बताने की कोशिश की जा रही है कि इस तरह की हड़ताल से देश का कितना ज्यादा नुकसान होता है।
यह बात सच है कि हड़ताल किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। हड़ताल से देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, उत्पादन रुक जाता है और आवश्यक सेवाओं के बंद होने से आम नागरिकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। हड़ताल के माध्यम से कुछ कर्मचारी संगठनों के नेता अपनी दादागीरी जमाते हैं जो ठीक नहीं कहा जा सकता। लेकिन हड़ताल अभिव्यक्ति का आखिरी जरिया है जब मांगों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। कर्मचारी संघों को इस स्थिति तक लाना भी सही नहीं। मांगों पर बिना हड़ताल के ही विचार हो तो कोई संगठन हड़ताल की अपील ही क्यों करे?
हड़ताल को लेकर जिस तरह की खबरें आनी शुरू हुई है, उनमें से बहुत सी खबरों का सच्चाई से कोई खास लेना-देना नहीं है। कोरोना काल में दो वर्षों तक इस देश में अराजकता को झेला है और आर्थिक रूप से देश पहले ही काफी पीछे जा चुका है। यह बात भी गौर करने लायक है कि कोरोना काल के दो वर्षों तक देश में किसी तरह की हड़ताल और जन आंदोलन नहीं हुए हैं। जबकि सरकार कोरोना के बावजूद बिना संगठनों के मशविरे के श्रम कानूनों में बदलाव कराती रही है ताकि श्रम संगठनों की ताकत कम हो जाए।
पड़ताल करेंगे तो पाएंगे कि देशभर में फेक न्यूज़ की जो फैक्ट्रियां चल रही है उनके संचालक वे लोग हैं जिन्हें इस तरह की खबरों से बहुत फायदा होता है। ऐसी खबरें उनके मुफीद बैठती हैं। राज्यों में होने वाले विधानसभा उपचुनाव के दौरान झूठ को परोसने वाली फैक्ट्रियां काफी सक्रिय रही। गैर सांप्रदायिक घटनाओं को भी सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश की गई। बांग्लादेश के वीडियो बंगाल के बता कर परोसे गए। उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा की खबरों को छत्तीसगढ़ और राजस्थान की खबरें बता कर प्रस्तुत किया गया। जब तक लोगों को उनके बारे में पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
फ़ेक न्यूज़ की फैक्ट्री चलाने वालों ने तो राष्ट्रपति तक को नहीं बख्शा। राष्ट्रपति अपने जन्म स्थान पर गए तो हेलीकॉप्टर से उतरते ही उन्होंने अपनी मातृभूमि को नमन किया। योगी जी उनके स्वागत में खड़े थे तो उस तस्वीर को यह बता कर प्रस्तुत किया गया कि राष्ट्रपति जी ने योगी का इस्तकबाल किया है। अब फेक न्यूज़ फैलाने में फिल्मी दुनिया भी शामिल हो गई है। द कश्मीर फाइल्स फिल्म के बाद विवेक रंजन अग्निहोत्री के चेलों ने तो उनकी पुरानी फिल्म ताशकंद फाइल्स को ही नए रूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। यह बताना शुरू किया है कि यह उनकी आने वाली फिल्म का ट्रेलर है। ताशकंद फाइल्स फिल्म को इतना जबरदस्त प्रतिसाद नहीं मिला था।भक्तों को लगता है कि इस बहाने हो सकता है कि ताशकंद फाइल्स भी बॉक्स ऑफिस पर वापस चल जाए। खैर, यहाँ तक तो ठीक है लेकिन अगर उनके भक्तों ने विवेक रंजन द्वारा निर्देशित हॉट फिल्म द हेट स्टोरी की क्लिपिंग दिखाना शुरू कर दिया तो क्या होगा?
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले इस तरह की खबरें ट्विटर पर चलाई गई कि दिल का दौरा पड़ने से स्वामी प्रसाद मौर्य बेहोश हो गए और उन्हें मेदांता अस्पताल में भर्ती किया गया है। बताया गया कि बीजेपी से हटने के बाद उन्हें घुटन महसूस हो रही है। मध्य प्रदेश के एक पुराने वीडियो को, जो 2 साल से भी ज्यादा पुराना था कौशांबी की घटना से जोड़ कर दिखाया गया। यह भी फर्जी वीडियो चलाया गया कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि मुसलमानों को टैक्स भरने की कोई जरूरत नहीं है। चुनाव के नतीजे आने के बाद उत्तर प्रदेश के बारे में इस तरह की खबरें भी लगातार चलती रही की 142 सीटों पर फिर से चुनाव होंगे। योगी आदित्यनाथ ने भले ही द कश्मीर फाइल्स नहीं देखी हो, लेकिन इस तरह के दृश्य भी फेक न्यूज़ में चलाए गए की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द कश्मीर फाइल्स फिल्म देखकर टसुए बहाने लगे थे। उनकी आंखों से झर-झर आंसू बहने की चर्चा हुई।
पंजाब में आम आदमी की पार्टी सरकार बनने के बाद से ही लगातार ऐसी खबरें आना शुरू हुई है मानो पंजाब की
नदियों में पानी नहीं, शराब बहने लगी है। पंजाब के मुख्य मंत्री के जिस तरह के पुराने वीडियो बार-बार प्रचारित प्रसारित हो रहे हैं, वे भी यही दर्शा रहे हैं। दुर्घटना में घायल पंजाब पुलिस के सिपाही को शराब पीकर लुढ़कते हुए बताया जा रहा है। जलवायु प्रदर्शन को लेकर निकली रैली को रूस और यूक्रेन युद्ध से जोड़कर दिखाया जा रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री को महा बाहुबली बताने का कोई अवसर मीडिया नहीं छोड़ रहा है। बताने की कोशिश की जा रही है कि अगर भारतीय प्रधानमंत्री चाहें तो रूस और यूक्रेन युद्ध रुक सकता है। अगर शराब पीकर दो पक्ष ढाबे पर झगड़ा करने लगे तो उसे भी सांप्रदायिक दंगे की तस्वीर बताकर सोशल मीडिया पर चला दिया जाता है।अखिलेश यादव के उस बयान को भी बहुचर्चित बयान के रूप में प्रचारित किया गया जो उन्होंने दिया ही नहीं था।फेक न्यूज़ चलाने वालों ने खबर बना दी कि अखिलेश यादव ने साफ-साफ कहा है कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता दारू और मुर्गे की चाहत में आम सभाओं के लिए आते हैं।
फेक न्यूज़ की इन फैक्ट्रियों में असली खबरें गायब है। जनता के सरोकार अब खबर नहीं बनते। आम आदमी को होने वाली परेशानी किसी को नजर नहीं आ रही। अयोध्या में रामलला के मंदिर के शिलान्यास के बाद मीडिया में लगातार इस तरह की खबरें प्रचारित और प्रसारित की जा रही है कि अब अयोध्या देश का सबसे सुविधाजनक तीर्थ स्थल बन चुका है। कई राज्यों की तीर्थ दर्शन की योजना में लोगों को रेलगाड़ियों में भर-भर कर अयोध्या ले जाया जा रहा है, वहां व्यवस्था के नाम पर जो अराजकता है, उसका कहीं कोई जिक्र नहीं। भीषण गर्मी में भी अयोध्या आने वालों के लिए मंदिर परिसर में पीने का पानी तक मुहैया नहीं है। कोरोना प्रोटोकॉल के नाम पर दर्शन करने वालों को सताया जा रहा है। लोगों से सैनिटाइजर की बोतलें चीन चीन का से की जा रही है। सुरक्षा व्यवस्था करने वाले सैनिटाइजर की व्यवस्था करने में नाकाम है। बुजुर्ग तीर्थयात्रियों की दवा तक सुरक्षाकर्मी छीन कर फेंक रहे हैं और बदतमीजी कर रहे हैं। इस अराजक व्यवस्था का मीडिया में कहीं कोई जिक्र नहीं। क्या मीडिया व्यवस्था के खिलाफ कुछ भी नहीं लिखने का निश्चय कर चुका है ?