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shadi1

कुछ महीने से महंगाई बहुत ही तेज गति से बढ़ रही है। ऐसा होने पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी का रुझान होता है। दो साल से रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों को नीचे की ओर ही रखा है। यदि महंगाई में इसी प्रकार की तेजी बनी रहती है तो ब्याज दरों में फिर से बढ़ोतरी हो सकती है। जून में आरबीआई रेपो रेट को बढ़ाने पर विचार कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो होम लोन में बाज़ की दरें बढ़ जाएगी, जिसका असर महंगाई पर और पड़ेगा। सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार मार्च महीने में रिटेल महंगाई की दर 6.25 प्रतिशत रहीं। इसके पहले फरवरी माह में यह दर करीब 1 प्रतिशत कम थीं। मुद्रा स्फीति की दर भी परेशान करने की हद तक बढ़ चुकी हैं। रिजर्व बैंक ने इसके लिए जो टॉलरेंस बैंड बनाया है, यह उससे काफी ऊपर है।

पिछले एक महीने में भी पेट्रोल और डीजल के दाम 10 रूपये से ज्यादा बढ़ चुके हैं। सीएनजी के दाम भी बढ़े हैं और रसोई गैस की कीमतें 8 साल में कई गुना बढ़ चुकी हैं। महंगाई का असर सड़क के किनारे लगने वाले गुमटी-ठेलों तक पर बहुत बुरा पड़ा हैं। एक आम आदमी जो किसी गुमटी पर 5 रूपये की कट चाय पी लिया करता था, उसे अब 8 से 10 रूपये देने पड़ रहे हैं। महंगे परिवहन के कारण गन्ने के रस की दुकानें ग्राहकों के इंतजार में है। बिजली महंगी होने से गन्ना महंगा हुआ और उसे शहर तक लाना और महंगा हो गया।

सबसे ज्यादा महंगाई खाने-पीने की चीजों की बढ़ी हैं। इसका असर गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों पर सबसे बुरी तरह से पड़ रहा हैं। अन्य वर्ग के लोग तो खैर खाने-पीने की चीजें खरीद ही लेते हैं। यह भारत में विवाह का सीजन है। इस दौरान बाजार में अच्छी खासी रौनक रहती है। 19 से 29 अप्रैल के बीच विवाह के शुभ मुहूर्त हैं। व्यापारी वर्ग ऐसे अवसर के इंतजार में रहता हैं। महंगाई ने विवाहों की रौनक कम कर दी हैं। इसका एक कारण तो सरकार का जीएसटी भी है, जो विवाह में खर्च होने वाले साढ़े पांच लाख रूपये पर 94 हजार तक बैठता है। शादी में मंडप सजाना हो या सजावट करनी हो, बारातियों को भोजन कराना हो या बस में बैठाकर बारात ले जानी हो, हर बात के लिए जीएसटी देना पड़ती है। भारत में एक ऐसा मध्यम वर्ग हैं, जो दो-दो दशकों तक शादी के लिए पैसे बचाता है, लेकिन जब उसे हर चीज के लिए जीएसटी देनी पड़ती है, तब समझ में आता है कि अगर उसने 20 साल पैसे बचाए है, तो उसमें से करीब 4 साल की बचत जीएसटी में चली जाती है। अकेले दिल्ली में ही इस महीने साढ़े तीन लाख से अधिक शादियां होनी है। अगर एक परिवार शादी में 5 लाख रुपये भी खर्च करें, तो पूरे सीजन में केवल दिल्ली का कारोबार अरबों तक पहुंच जाता हैं। दिल्ली में 60 हजार से ज्यादा बैंक्वेट हॉल, विवाह गार्डन, फार्म हाउस, होटल और सामुदायिक भवन है। दो साल के बाद ऐसा मौका आया है, जब वहां रौनक हो रही हैं। जीएसटी के साथ ही फूल, बैंड-बाजे, बग्घी, घोड़ी आदि के महंगे होने का असर विवाद समारोहों पर हैं। महंगाई के कारण लोग खर्चों में कटोती कर रहे हैं, जिसका असर असंगठित क्षेत्र के इन छोटे कारोबारियों पर पड़ रहा हैं। दो साल पहले 10 लाख रुपये में कितनी भव्य शादी हो सकती थी, इस साल उतनी भव्य शादी करनी हो, तो 13 से 14 लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे। भारत में शादियों की एक अलग अर्थव्यवस्था है।

खाद्यान्न और तेलों के अलावा इस सीजन में पेट्रोल डीजल की महंगाई विवाहों को प्रभावित कर रही हैं। टैक्सी वालों को जितना कारोबार मिलना चाहिए था, उतना नहीं मिल पा रहा। उनके खर्च भी बढ़ गए हैं और महंगाई के कारण टैक्सी चालकों को ज्यादा वेतन देने की जरूरत भी पड़ रही हैं। महंगाई की मार बढ़ते हुए टोल टैक्स से लेकर महंगी होती पार्किंग तक पर पड़ी हैं। यह बात खोजना बड़ा मुश्किल है कि पिछले दो-तीन सालों में कोई चीज सस्ती भी हुई हैं क्या?

सरकारी कर्मचारियों को दिये जाने वाले महंगाई भत्ते की किश्त बढ़ती जा रही हैं। इससे उन्हें राहत जरूर हैं, लेकिन जिस तरह महंगाई बढ़ रही हैं, उससे निपटना उनके लिए भी मुश्किल पढ़ रहा हैं। डीजल के दामों के कारण स्कूलों ने परिवहन शुल्क बढ़ा दिया हैं। स्कूलों के विकास कार्य भी महंगाई ने बाधित किए हैं और एक आम आदमी का मकान बनाने का सपना उसकी पहुंच से दूर होता जा रहा हैं, क्योंकि सीमेंट और सरिये के दाम बेतहाशा बढ़ चुके हैं।

सरकार अपनी मजबूरी बता रही है। एक मजबूरी तो कोरोना है ही, दूसरी मजबूरी है रूस और यूक्रेन का युद्ध। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था इससे प्रभावित हुई है। आम आदमी को यह बात समझ में नहीं आती कि ऐसे में उसे ही सबसे ज्यादा सरकार से राहत की जरूरत है और इस तरफ सरकार का ध्यान नहीं है। सरकार की योजनाओं में बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों की चिंता तो झलकती हैं, लेकिन आम आदमी की चिंता नहीं झलकती। सरकार के आर्थिक नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना लाजिमी हैं।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरूण कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर सरकार को महंगाई पर नियंत्रण करना है, तो सबसे पहले पेट्रोल-डीजल के दाम कम करने चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद शुल्क घटाना चाहिए, जिससे परिवहन लागत कम हो। इसके अलावा निजी क्षेत्र की कंपनियां अपने उत्पादों के दाम बेतहाशा बढ़ा रही हैं, उन पर भी नियंत्रण किया जाना चाहिए। अरूण कुमार के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक मार्च 2022 में 13.11 प्रतिशत तक पहुंच गया था। अगर थोक में महंगाई इतनी बढ़ी हैं, तो उसका असर फुटकर क्षेत्र पर भी पड़ेगा ही। अगर सरकार पेट्रोलियम की कीमतें कम करती हैं, तो इसका मतलब होगा लोगों के पास ज्यादा क्रयशक्ति। इसका उपयोग रोजगार बढ़ाने में किया जा सकता है। दुर्भाग्य की बात है कि सरकार जीएसटी और आयकर में तो रिकॉर्ड वसूली कर चुकी हैं, लेकिन उस अनुपात में जनकल्याणकारी योजनाओं पर धन खर्च नहीं कर रही हैं। अगर लोगों को रोजगार देने की तरफ सरकार ध्यान दें, तभी अर्थव्यवस्था का बेहतर स्वरूप सामने आ सकता हैं।

सरकार को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण जैसी व्यवस्था में भी सुधार करना चाहिए, क्योंकि बिना कुछ किए जब लोगों को पैसा मिल रहा है, तो वे कोई भी उद्यम क्यों करेंगे? अब हाल यह है कि लोगों ने महंगाई की वजह से अपनी जरूरत की चीजें खरीदने में कटौती शुरू कर दी हैं। एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) उत्पादों की बिक्री में भी अभूतपूर्व कटौती देखी जा सकती हैं। इसका मतलब यह है कि अब लोग अपनी जरूरत का सामान भी कम खरीद रहे हैं। दक्षिण भारत के राज्यों में तो एफएमसीजी की बिक्री 18.3 प्रतिशत कम दर्ज की गई हैं। ओडिशा जैसे पिछड़े राज्य में यह कमी 32.4 प्रतिशत हैं, इसका मतलब यह है कि लोग अपनी जरूरत का दो तिहाई सामान ही खरीद रहे हैं। आमतौर पर एफएमसीजी के उत्पादों की खरीदी-बिक्री पर ऐसा ट्रेंड नहीं होता। जो नागरिक अपनी घरेलू जरूरत की चीजें खरीदने के लिए किराने की दुकान पर जाता हैं। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार ने महंगाई कम करने के लिए क्या-क्या घोषणाएं कर रखी हैं। उसे फर्क केवल इस बात से पड़ता है कि उसकी जेब में पैसे नहीं है और जरूरी चीजें महंगी हो रही है।

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