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कांग्रेस के नेताओं द्वारा पिछले कुछ समय से चौकीदार पर आरोप लगाने और राफेल सौदे को लेकर सवाल खड़े करने के जवाब में सरकार जो कार्रवाई कर रही है, उससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है। इटली की कंपनी फिनमैकेनिका की ब्रिटिश सहयोगी कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड से वीवीआईपी हेलीकॉप्टर खरीद मामले की जांच आगे बढ़ रही है। इस मामले में आरोपित ब्रिटिश नागरिक क्रिश्चियन मिशेल को प्रत्यर्पित कर भारत ले आया गया और कोर्ट में पेश किया जा चुका है। मिशेल की तलाश 3600 करोड़ रुपए के हेलीकॉप्टर सौदे के मामले की जांच कर रही एजेंसियों को थी। यह प्रत्यर्पण की यह प्रक्रिया इंटरपोल और सीआईडी के सहयोग से हुई। इसके लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यूएई के विदेश मंत्री से कई बार बातचीत की थी।

क्रिश्चियन मिशेल वह व्यक्ति है, जिस पर आरोप है कि अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में उसे 225 करोड़ रुपए मिले थे। सीबीआई और ईडी की तरफ से दायर आरोप पत्र के अनुसार यह राशि रिश्वत में दी गई थी। मिशेल को भारत प्रत्यर्पित करने के ऑपरेशन को यूनिकॉर्न नाम दिया गया। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विश्वस्त अजीत डोभाल के निर्देशन में यह कार्रवाई की गई। क्रिश्चियन मिशेल अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर मामले में अकेला बिचौलियां नहीं है। ईडी और सीबीआई के जांच के अनुसार गुईडो हश्के और कार्लो गेरोसा नाम के दो दूसरे बिचौलिएं भी इस सौदे में है। इनकी गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण की कोशिशें जारी है। भारतीय वायुसेना के लिए 14 वीवीआईपी हेलीकॉप्टर खरीदे जाने थे, लेकिन इस मामले में बिचौलिएं के होने के कारण जनवरी 2014 में ही सौदे को रद्द कर दिया गया था। तब मनमोहन सिंह की सरकार थी।

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इस तरह के मामले में अब जो भी हो, राजनैतिक लाभ उठाने की कोशिशें भरपूर होंगी। भारतीय जनता पार्टी इसे कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगी और कांग्रेस सफाई में कहेगी कि यह सौदा तो पहले ही रद्द किया जा चुका था। कुल मिलाकर इस तरह के रक्षा सौदों में बिचौलियों को फायदा पहुंचाने की बात के बजाय आरोप-प्रत्यारोपों पर ज्यादा उर्जा नष्ट होगी। जब अगस्ता वेस्टलैंड मामले के आरोप लगना शुरू हुए, तब यूपीए सरकार को विपक्षी दलों ने बुरी तरह घेल लिया था। यह भी कहा गया था कि मोदी की सरकार इटली से सोनिया गांधी के खिलाफ सबूत लाएगी। हेलीकाॅप्टर बिक्री में भ्रष्टाचार करने को लेकर फिनमैकेनिका के पूर्व सीईओ गुसेप ओरसी पहले ही फंस चुके है। उन्हें रिश्वत के मामले में साढ़े चार साल की सजा भी सुनाई गई थी, लेकिन इटली के मिलान की अपीलीय अदालत ने उस सौदे को पलट दिया था।

रक्षा सौदों में बिचौलियों की सेवाएं लेना और उन्हें कमिशन के तौर पर करोड़ों रुपए देने के आरोप नए नहीं है। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते बोफोर्स तोपें खरीदी गई थी। तब राजीव गांधी के सहयोगी रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आरोप लगाया था कि बोफोर्स तोपों की खरीदी में कमिशन खाया गया और 64 करोड़ रुपए ब्रिटेन में रह रहे भारतीय मूल के एक उद्योगपति ने प्राप्त किये। बोफोर्स प्रकरण को चुनाव में बहुत हवा मिली और राजीव गांधी के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। बोफोर्स की जांच के आदेश दिए गए, लेकिन आज तक यह बात साबित नहीं हुई कि बोफोर्स में किसी तरह का कमीशन दिया गया था। अब क्रिश्चियन मिशेल का कहना है कि उसके किसी राजनैतिक दल से कोई संबंध नहीं रहे और न ही वह किसी नेता के संपर्क में है। जब वह दुबई की जेल में था, तब एक पत्रिका को इंटरव्यू में कहा था कि अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में यूपीए सरकार की लीडरशीप शामिल नहीं थी। सवाल यहीं है कि अगर लीडरशीप शामिल नहीं थी, तो इस सौदे को अंजाम तक कैसे पहुंचाया गया और इस मामले में इतनी मोटी रकम का कमीशन क्यों दिया गया? हथियारों की अरबों की डील में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते है और उनसे बचने के रास्ते भी खोजे जाते रहे है। जिस कंपनी से डील नहीं होती, वह करोड़ों रुपए प्रतिस्पर्धी कंपनी की डील रुकवाने के लिए लॉबिंग पर खर्च कर देती है। इस तरह की व्यवासियक प्रतिस्पर्धाओं के चलते हमारी सरकारें हथियार खरीदने में सुस्ती करती रही है। देश का करोड़ों रुपया दलालों को देना किसी भी रूप में तर्क संगत नहीं है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बिना बिचौलियों की खरीदारी होती रहे।

06.12.2018

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