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पिछले दिनों सलमान खान ने ट्वीट किया था -- "पलक मुछाल के खर्चे और प्रयासों से होनेवाली हार्ट सर्जरी की संख्या 800 हो चुकी हैं. पलक, तुम पर फ़ख़्र है! " अच्छा लगा। दोनों मानवतावादी, दोनों इंदौरी और दोनों बॉलीवुड स्टार ! पलक मुछाल जब बित्ते भर की बेबी डॉल थी, तब से उसे जानता हूँ. अब बी. कॉम. हो गई है, 23 साल की. स्टार तो वह पहले भी थी, आज भी है. पलक मुछाल हार्ट फाउंडेशन के सहयोग से 800 बच्चों के हार्ट ऑपरेशन के बाद पलक के कमरे में (प्रति ऑपरेशन एक डॉल के हिसाब से) 800 + डॉल्स हो गई हैं, जो उसके कारण धड़क रही हैं और उन बच्चों के परिजनों की हजारों धड़कने भी पलक के लिए हैं. पलक ने अपने गायन से धन इकठ्ठा कर इन ऑपरेशन का खर्च उठाया है. पलक का गाना दिल को छू जाता है और उसके काम भी, जो मिसाल हैं.
भलाई के बड़े काम करने के लिए अजीम प्रेमजी या आईएएस या बहुत बड़ी डिग्री जरूरी नहीं है; यह बात आठवीं पास, पेशे से सिलाई करनेवाले, 30 साल के अशोक नायक ने साबित कर दी है। अशोक नायक इंदौर में रक्त दान अभियान चलाते हैं. उनकी मेहनत के कारण 18 ,000 से ज्यादा लोग रक्तदान कर चुके हैं। 21,000 युवक-युवतियां उनके रक्त दान आंदोलन से जुड़े हैं और किसी भी जरूरतमंद को अपने प्रियजन के इलाज के दौरान रक्त के लिए भटकना नहीं पड़ता। वे जगह-जगह ब्लड डोनेशन कैम्प लगवाते हैं, रक्त दान के लिए फ्री कॉल सर्विस भी चलाते हैं और युवतियों के लि 'रक्त वाहिनी' के रूप में चलाते हैं जिसमें बैठकर युवतियां रक्त दान करने जा - आ सकती हैं।
इंदौर के ट्रैफ़िक पुलिस हवलदार रंजीत सिंह जी चौराहों पर यातायात नियंत्रण ऐसे करते हैं मानो माइकल जैक्सन 'मूनवाकिंग' कर रहे हों! उनके यातायात नियंत्रण के एक्शन को देखने कई लोग रुक जाते हैं और कई उन्हें मोबाइल कैमरे से शूट करने लगते हैं। बरसों तक वे हाईकोर्ट के सामने तिराहे पर ड्यूटी देते रहे, वहां से ड्यूटी हटाई गई तो अफसर के पास एक न्यायमूर्ति का फोन आया कि उसी हवलदार को वापस लगाओ. इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट हो या रविवार को होनेवाला वॉकर्स झोन का अभियान! रंजीत सिंहजी की ज़रूरत पड़ती ही हैं. इंदौर में 300 ट्रैफिक हवलदार हैं, जो 30 लाख की आबादी पर कम हैं लेकिन उनकी प्रेरणा से कई ट्रैफ़िक हवलदार बहुत ही शानदार कार्य करते देखे जा सकते हैं.
आबिद सुरती उर्फ ढब्बू जी लेखक है, कलाकार है, नाटककार है, कार्टूनिस्ट है और, और भी न जाने क्या-क्या हैं। वे वन मैन एनजीओ है, जो पानी की बर्बादी रोकने के लिए कार्य कर रहे है। ड्राप डेड फाउंडेशन के जनक आबिद सुरती एक अनोखी शख्सियत हैं। उनकी 80 से अधिक किताबें आ चुकी है। कई पुस्तकों के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में वे लिखते है। ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ फिल्म की कहानी भी उनकी एक कहानी से प्रेरित बताई जाती है। उनके बनाए कार्टून भारत की सभी प्रमुख पत्रिकाओं और पत्रों में प्रकाशित हो चुके है और होते रहते हैं। कॉमिक कैरेक्टर ‘बहादुर’ उन्हीं की पैदाइश है। टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की प्रतिष्ठित पत्रिका धर्मयुग मेंं ‘कार्टून कोना/ढब्बू जी’ उन्हीं की कला का नमूना था। यह इतना लोकप्रिय था कि लोग धर्मयुग को उर्दू की तरह पीछे से खोलना शुरू करते थे, क्योंकि ढब्बू जी का कार्टून अंतिम पृष्ठों पर होता था। ढब्बू जी के कार्टूनों को पसंद करने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी, आशा भोंसले और ओशो जैसी हस्तियां शामिल है। शाहरुख खान उनके बहुत बड़े प्रशंसक हैं, लेकिन यहां उनका जिक्र उनकी कलाकृतियों के बारे में बताने या उनके लेखन की तारीफ करने के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि एक एनजीओ के लिए किया जा रहा है।
वे इंदौर के पास सनावदिया गांव में रहती हैं। अपने स्वर्गीय पति जिम्मी के नाम से सस्टेनेबल डेवलपमेंट कार्यक्रम संचालित करती हैं और पवन ऊर्जा से मोहल्ला जगमगाती हैं, सूरज की धूप; सौर ऊर्जा से खाना पकाती हैं और फूलों, सब्जियों और फलों की अनोखी सुगंधों से परिचय कराती है। यहां अखबार, तेल और नमक के अलावा कोई चीज खरीदी नहीं जाती। अखबार की रद्दी से जलाने के कण्डे, पोई की भाजी, टमाटर और चुकंदर से रंग बनाये जाते हैं। तरह- तरह के फलों को सौर ऊर्जा से सुखाकर मिठाइयां बनती हैं।
12 की उम्र में उसने अपनी निजी वेबसाइट बना ली थी (18 साल पहले, जब भारत में इंटरनेट अपनी शुरूआत में ही था)। 13 की उम्र में उसे एक नौकरी का प्रस्ताव मिल गया था। 14 की उम्र में उसकी पहली किताब बाजार में आ गई थी (द अनआफिशियल गाइड टू इथिकल हैकिंग, जिसकी 10 लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी है)। 15 का होते-होते उसे सेलेब्रिटी का दर्जा मिल चुका था। 25 में वह खुद के नाम पर एक शैक्षणिक संस्थान खोल चुका था और अब तक वह संस्थान करीब पचास हजार लोगों को डिप्लोमा दे चुका है।