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किताबों से उनकी मोहब्बत पागलपन की हद तक है और इसी का परिणाम है इंदौर के पुस्तकप्रेमियों की आदर्श जगह शासकीय अहिल्या लाइब्रेरी। आज इस लाइब्रेरी में क्या नहीं है? जीडी की कोशिशों और कुछ ईमानदार लोगों के कारण यह लाइब्रेरी न केवल बची है, बल्कि हजारों लोगों के लिए आकर्षण भी है।जीडी इस लाइब्रेरी के मुख्य ग्रंथपाल हैं। इंदौर शहर के हृदयस्थल की साठ साल पुरानी इस लाइब्रेरी में 70,000 किताबें हैं, 7,0 00 'आजीवन सदस्य' हैं; सभी OPEL (ऑनलाइन पब्लिक एक्सेस कैटलॉग) से जुड़े हुए हैं। सदस्य कंप्यूटर पर ऑनलाइन देख सकता है कि कौन-कौन सी किताबें लाइब्रेरी में उपलब्ध हैं और सदस्य कौन-कौन हैं? रोजाना सैकड़ों लोग लाइब्रेरी के वाचनालय में आकर अखबार, पत्रिकाएं आदि पढ़ते हैं।
अनिल त्रिवेदी पेशे से वकील और किसान है, लेकिन इसके अलावा भी वे बहुत कुछ हैं। वे सर्वोदयी और समाजवादी चिंतक विचारक हैं। मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। वे आरटीआई कार्यकर्ता और नेता हैं। उन्हें चित्रकारी और फोटोग्राफी का शौक हैं। जिंदगी जीने का उनका अपना तरीका है। उस तरीके के हजारों लोग प्रशंसक भी है।
अब्दुर रक़ीब इंडियन सेंटर फॉर इस्लामिक फाइनेंस के महासचिव हैं. बरसों से भारत में इस्लामिक बैंकिंग को बढ़ावा देने के अभियान में जुटे हैं। करीब तीन साल पहले मैंने उनका एक इंटरव्यू किया था, उसी के बाद मेरी दिलचस्पी इस्लामिक बैंकिंग में बढ़ी। इन तीन साल में भारत में इस्लामिक बैंकिंग काफी आगे बढ़ी, लेकिन यह कुल बैंकिंग का 1 प्रतिशत भी नहीं है।
अरुणिमा सिन्हा पहली दिव्यांग युवती हैं, जिन्होंने एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। एक नेशनल वॉलीबॉल और फुटबॉल खिलाड़ी का पर्वतारोही बनने के पीछे एक ऐसी कहानी है, जो किसी मोटिवेशनल गुरू ने नहीं सुनाई होगी। हाल ही में उन्हें भारत की सौ सबसे महत्वपूर्ण महिलाओं में चुना गया है और 22 जनवरी को राष्ट्रपति ने उन्हें भी लंच पर बुलाया है।
इंदौर में एक पुरानी संस्था है अभ्यास मंडल - जो कोई सरकारी मदद नहीं लेती, 57 साल में उसने कोई भी सम्पत्ति (दफ़्तर आदि) नहीं खरीदी, जिसका वास्तव में कोई अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष नहीं, ( होता है तो खानापूर्ति के लिए, नेतागीरी के लिए नहीं). इस संस्था ने इंदौर के मास्टर प्लान बनवाने में, मध्यप्रदेश के लिए केंद्रीय वित्त आयोग से लड़कर अरबों रुपयों (जी हाँ, 485 करोड़ ) रुपये की मदद दिलवाने, पर्यावरण - यातायात - सौहार्द की बेहतरी के अनेक काम किये हैं। कई अल्प ज्ञानी उसे भाषण-गोष्ठी के लिए 'थर्टी प्लस' लोगों का ग्रुप भी कहते हैं.
जब अमित नागपाल छोटे से शहर की स्कूल में पहली कक्षा में थे, तब उनकी आंखों पर मायनस सिक्स का मोटा चश्मा था। डॉक्टर ने कहा- तुम क्यों स्कूल गए? इतना मोटा चश्मा लगाते हो, दसवीं तक जाते-जाते तो अंधे हो जाओगे। स्कूल में उन्हें किसी आउटडोर खेल में शामिल नहीं किया जाता. लेकिन अमित ने स्कूल जाना नहीं छोड़ा। पीएचडी की और विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी, लेकिन आज भी खुद को स्टूडेंट ही समझते हैं। उन्हें टीवी, सिनेमा, कंप्यूटर से दूर रहने की सलाह भी दी जाती थी, वह भी नहीं मानी गई. आज वे ऐसे क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जिसे लोग काम ही नहीं मानते थे. वे इंटरनेशनल बिजनेस स्टोरीटेलर, स्पीकर, डिजिटल स्टोरीटेलिंग कोच होने के साथ ही भारत के प्रमुख सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं. उन्हें भारत का माइकल मारगोलिस माना जाता है.