sudhirTailang1

जो मित्र हमेशा प्रेरणा देते रहे हैं उनमें सुधीर तैलंग भी हैं. गज़ब की हिम्मत, अपनापन, सादगीपूर्ण स्टाइल और संघर्ष का जज़्बा. उन्होंने बताया कि बचपन में मैं सिनेमाघर का गेटकीपर बनने का सपना देखता था, मुक़द्दर ने कार्टूनिस्ट बना दिया. इलस्ट्रेटेड वीकली, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान टाइम्स, इन्डियन एक्सप्रेस, एशियन एज आदि में बरसों बरस रोजाना कार्टून बनाते रहे हैं.

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bhu1

किसानों की बेटियां आमतौर पर शादी करके अलग घर बसा लेती है या किसी नौकरी में प्रवेश कर जाती हैं। भूमिका कलम ने पत्रकारिता में मास्टर्स डिग्री लेने के बाद करीब 9 साल तक सक्रिय पत्रकारिता की। दैनिक भास्कर में रिपोर्टिंग और फिर पत्रिका दैनिक मेंं वरिष्ठ पदों पर काम किया और फिर अचानक पत्रकारिता की पकी-पकाई नौकरी छोड़कर हरदा जिले में खेती-किसानी में जुट गई। इस साल उनकी सोयाबीन की फसल अच्छी रही और अब वे अगली फसल की तैयारी में जुटी हैं।

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pallaviA

डॉ. पल्लवी अभी 31 की हैं. वे केवल 28 साल की उम्र में यूएसए की यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गई थीं । वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डाटा एनालिटिक्स (Big data analytics is the process of examining large data sets containing a variety of data types) के क्षेत्र में काम कर रही है.  कैंसर की बीमारी का पता लगाने और उसके इलाज में पल्लवी और उनकी टीम के प्रयास महत्वपूर्ण हैं.

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डॉ ललितमोहन पंत पेशे से सर्जन हैं. परिवार नियोजन के नसबंदी ऑपरेशन करने के क्षेत्र में  दुनिया के पहले से दसवें स्थान पर केवल डॉ पंत ही पंत  हैं. उन्होंने दूरबीन पद्धति (हिस्ट्रोस्कोपी) से साढ़े तीन लाख से भी ज़्यादा ऑपरेशन किये हैं, जबकि दुनिया का कोई और सर्जन एक लाख ऑपरेशन भी नहीं कर सका है. गिनीज़ जैसी रेकॉर्ड दर्ज करनेवाली हर किताब में उनका नाम शामिल है। वे सरकारी डॉक्टर हैं और माना जाता है कि उनके ऑपरेशन की वजह से भारत की कुल आबादी में कम से कम दस लाख की कमी आई है. वे न होते तो भारत की आबादी दस लाख ज्यादा होती!

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Saf-B

वे इंफोसिस में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थीं, पर नौकरी छोड़कर पत्रकारिता में आ गईं. एंकरिंग करने लगीं, डाक्युमेंट्री फिल्में बनाने लगीं और आज वे महिला संगठनों, महिलावादियों और कई एनजीओ के निशाने पर हैं. वे पहली महिला हैं, जिन्होंने दमदारी से यह कहा है कि भारत में असली प्रताड़ना तो पुरुष झेल रहे हैं. उन्होंने महिला होकर भी यह कहने की हिम्मत जुटाई है कि दहेज़ के मामलों में पुरुषों और उनके परिजनों के साथ न्याय नहीं होता. दहेज़ के झूठे मामलों में हजारों पुरुष हर साल आत्महत्याएं कर रहे हैं और उनकी तरफ से कोई बोलनेवाला ही नहीं. दहेज़ बुरी चीज है और उसका खात्मा होना चाहिए, लेकिन दहेज़ विरोधी कानून के नाम पर पूरे पुरुष समाज से अन्याय क्यों? सबके साथ बराबरी से न्याय होना चाहिए, जो नहीं हो रहा है! महिलाओं पर अत्याचार रोकने का यह क्या तरीका है कि हम हर पुरुष को बलात्कारी साबित करने में जुट जाएँ? दो और चार साल के बच्चों तक के खिलाफ, यहां तक कि मर चुके ससुर तक के खिलाफ केस दर्ज कराने लगें?

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anand-1

इंदौर के एमटीएच कम्पाउंड स्थित शेरों वाली माता के मंदिर के बाहर अचानक मेरी मुलाकात उस शख्स से हुई। मैं उन्हें पहचान नहीं पाया, लेकिन उन्होंने मुझे पहचान लिया। मेरा नाम पूछा और बताया कि हमने साथ में एक ही कंपनी में काम किया है। उनके याद दिलाने पर मुझे याद आया कि हां, ये तो आनंद सिंह तोमर हैं। वर्तमान में वे लंदन स्कूल ऑफ बिजनेस एंड फाइनेंस में अध्यापन कर रहे हैं.

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