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भूटान यात्रा की डायरी (4)

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बुद्धा टॉप पर भगवान के कदमों में 

भूटान में कोई भी सिनेमा घर नहीं है। दुकानों पर पोस्टरों में भूटान के राजा और रानी के पोस्टर बिकते हुए देखे जा सकते है। वहां के लोगों में राजा और रानी के प्रति खास लगाव देखने को मिला। कोई भी भूूटानी अपने राजा की बुराई नहीं सुन सकता। राजशाही के खिलाफ बोलो तो भी किसी को पसंद नहीं आता। भूटानियों का कहना है कि हमारा राजा पिता के समान है और हमारा बहुत ध्यान रखता है। राजा के साथ ही रानी भी काफी लोकप्रिय है। दोनों राजा-रानी किसी भी फिल्मी सितारे से कम नहीं रहते। रानी के बारे में खास बात यह है कि उन्होंने पढ़ाई भारत के बंगलुरु में की है। राजा जिग्मे खेशर नामग्याल वांगचुक ओक्सफोर्ड में पढ़ाई कर चुके है। 2011 में ही दोनों की शादी हुई, तब राजा 31 साल के थे और रानी 21 साल की।

 

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भूटान नरेश वांगचुक और साम्राज्ञी जेटसन पेमा

रानी जेटसन पेमा साधारण भूटानी परिवार की है। भूटान के राजा की लोकप्रियता का एक कारण यह है कि वे आम लोगों से बात करते है। कई बार महल से बाहर निकलकर थिम्पू की सड़कों पर साइकिल चलाते हुए भी देखे जा सकते है। भूटान के प्रमुख लोगों को वे अपने महल में चाय पीने भी बुलाते है, जो बेहद सम्मान की बात मानी जाती है। वांगचुक को राजा बने सात साल हो गए है और भूटान की व्यवस्था पर उनकी पकड़ काफी अच्छी मानी जाती है। भूटान नरेश की शादी 17वीं सदी में बने एक पुराने किले में हुई, जो थिम्पू से करीब 100 किलोमीटर दूर है। यह पुराना किला फो चू और मो चू के बीच है। भूटानी में फो का अर्थ होता है पिता और मो का अर्थ होता है मां। चू नदी को कहते है। पिता और माता नाम की दो नदियों के बीच इस जोड़े का ऐतिहासिक विवाह हुआ था।

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पालेरी कॉटेज से वादियों का नजारा

भूटान में आपको कोई भी आदमी भीख मांगते हुए नहीं दिखेगा, लेकिन जब हम एक बौद्ध मंदिर के लिए पहाड़ी पर चढ़ रहे थे, तब नीचे एक व्यक्ति भीख मांगता हुआ नजर आया। पास के बोर्ड पर कुछ लिखा हुआ था। हमने अपने गाइड से कहा कि आपने बताया था कि भूटान में कोई भी भिखारी नहीं है, पर यहां तो बात कुछ और है। गाइड ने हमें समझाया कि यहां इस व्यक्ति ने जो बोर्ड लगाया है उस पर लिखा है कि मैंने भगवान की मानता मांगी थी कि अगर मेरी मनोकामना पूरी हुई, तो मैं भिक्षा के रूप में एक निश्चित राशि प्राप्त करके मंदिर में चढ़ाऊंगा। हमारा सवाल था कि लोग सीधे ही मंदिर में क्यों नहीं दान देंगे? हमें बताया गया कि यहां इस तरह के लोगों को दान देने से दो गुना पुण्य मिलता है। हम जिस मंदिर में गए, वहां सैकड़ों लोग छोटे-छोटे बच्चों को गोद में उठाकर ऊपर ला रहे थे। हमें बताया गया कि यह बौद्ध मंदिर छोटे बच्चों के लिए हैं। बच्चों को यहां लाकर उनकी लंबी आयु, बेहतर स्वास्थ्य और सफल जीवन की कामना की जाती है। भगवान बुद्ध सबकी मनोकामना पूरी करते है।

थिम्पू में हम एक विशाल पहाड़ी पर बने बुद्ध की विशाल प्रतिमा के दर्शन करने भी गए। पहाड़ी पर बनी भगवान बुद्ध की यह मूर्ति 169 फीट (51.5 मीटर) ऊंची है। कांसे की बनी इस मूर्ति के ऊपर सोने की पॉलिश की गई है। बुद्धा टॉप के नाम से प्रख्यात यह स्थान भविष्य में भूटान का एक मुख्य लैंडमार्क होगा, इसमें कोई शक नहीं है। अभी यहां विकास कार्य चल रहे है। हमें बताया गया कि करीब सात सौ करोड़ रुपए की इस परियोजना को चीन की एक कंपनी के सहयोग से पूरा किया जा रहा है।

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क्यी चू ल्हाखांग मठ

थिम्पू से पारो जाते वक्त फिर एक शानदार यात्रा का आनंद लिया। पहाड़ों के बीच से बल खाती हुई सड़कों पर हरियाली के बीच और नदियों के समानांतर यात्रा करने का अपना ही मजा था। पारो में हम सातवीं शताब्दी में बने एक बौद्ध मट क्यी चू ल्हाखांग भी गए। यह मठ तिब्बत के राजा सोंगत्सेन गेम्पो ने बनवाया था। यह भगवान बुद्ध की मूंछे तिब्बतियों की मूछों की तरह पतली-पतली नजर आती है। तिब्बती राजा ने अपने हिसाब से भगवान बुद्ध की मूर्ति का निर्माण करवाया था।

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परंपरागत पालेरी कॉटेज

भूटान में हमारी अंतिम रात्रि पारो के पालेरी कॉटेज में कटी। कॉटेज को भूटानी वास्तुशील के हिसाब से बनाया और संवारा गया था। पहाड़ की ऊंचाई पर बना यह कॉटेज सर्वसुविधा सम्पन्न था। कॉटेज तक आने के लिए सड़क बनाई गई थी। वाई-फाई की सुविधा थी। गरम पानी और हीटर वहां की पहली जरूरत थी। कॉटेज के कमरों में टीवी उपलब्ध थे। और खिड़की खोलते ही हिमालय पर्वत शृंखला के बर्फ से ढंके पहाड़ और नदी नजर आती थी। कड़कड़ाती ठंड के बावजूद कॉटेज की बालकनी में खड़े होकर प्रकृति का नजारा देखना अपने आप में शानदार अनुभव था। जब हम कॉटेज पहुंचे, तब तापमान -10 डिग्री के आसपास था। मौसम विभाग ने सूचना दी कि रात को बर्फबारी हो सकती है और तापमान -15 से -20 डिग्री तक जा सकता है। ठंड का आलम यह था कि कॉटेज के कमरे में भी जूते उतारने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कॉटेज में आने वाले यूरोपीय पर्यटकों के लिहाज से ही तमाम सुविधाएं और भोजन उपलब्ध था। हमारे आग्रह पर भारतीय भोजन और गरमा-गरम चाय परोसा गया। कॉटेज के एक हिस्से से पारो का हवाई अड्डा साफ नजर आता था।

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दुनिया के सबसे खुशमिजाज लोगों का देश भूटान

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भारत के पूर्वोत्तर में सीमा से जुड़ा हुआ भूटान दुनिया के सबसे खुशमिजाज लोगों का देश माना जाता है। ग्रास हेप्पीनेस इंडेक्स में भूटान दुनिया में पहले स्थान पर रहा है। भूटान के राजा का भी यहीं कहना है कि हम जीडीपी नहीं ग्रास हेप्पीनेस इंडेक्स को मानते हैं। 

राजा और प्रजा में पिता-पुत्र का रिश्ता है बरकरार

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हमारे गाइड ने बताया कि राजा हमारे पिता के समान है और वे हमारा पूरा ख्याल रखते है। कॉलेज में लड़के और लड़कियों के होस्टल अलग-अलग होते है, लेकिन लड़कियों के होस्टल में भी लड़के आराम से आ-जा सकते है। वहां ऐसी कोई बंदिश नहीं है।

 

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दुकानों पर पोस्टरों में भूटान के राजा और रानी के पोस्टर बिकते हुए देखे जा सकते है। वहां के लोगों में राजा और रानी के प्रति खास लगाव देखने को मिला। कोई भी भूूटानी अपने राजा की बुराई नहीं सुन सकता। राजशाही के खिलाफ बोलो तो भी किसी को पसंद नहीं आता। भूटानियों का कहना है कि हमारा राजा पिता के समान है और हमारा बहुत ध्यान रखता है। राजा के साथ ही रानी भी काफी लोकप्रिय है।

लेस इज मोर- भूटान का दर्शन

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भारत में रहने वाले हम भारतीयों की आदत है भव्यता से प्रभावित होना। हमारी सभ्यता चाहे जो हो, हमारा दर्शन चाहे जो कहें पर हमें भव्य चीजें बहुत आकर्षित करती है। विशालता भी हमें लुभाती है। इससे ठीक उलटा भूटान में लोग ज्यादा की चाह नहीं करते। लेस इज मोर भूटान के लोगों का दर्शन है।

 

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