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(डिस्क्लेमर : कोरोना के कारण बेल बॉटम फिल्म महाराष्ट्र में रिलीज नहीं हो पाई, लेकिन भारत के करीब 1850 स्क्रीन पर वह प्रदर्शित हुई है। यूएसए, कनाडा, यूके, सिंगापुर, केन्या, बेल्जियम और फिजी में भी इसका प्रदर्शन हुआ है। फिल्म के निर्माताओं ने प्रचार के लिए मुंबई के कुछ फिल्म-पत्रकारों को इकट्ठा किया और चार्टर्ड प्लेन से उन्हें सूरत ले गए। सूरत के आईनॉक्स मल्टीप्लेक्स में पत्रकारों को फिल्म दिखाई गई, तोहफ़े दिए गए और उन्हें वापस चार्टर्ड प्लेन से मुंबई छोड़ा गया. यह सब इसलिए कि वे फिल्म की बहुत अच्छी समीक्षा करें। तो भाइयो और बहनो, मुंबई वालों की फिल्म समीक्षा अच्छी लगी हो तो सोच लेना।)

डेढ़ साल बाद थियेटरों में कोई फिल्म रिलीज हुई है, वह भी आधी पकाऊ, आधी बिकाऊ है। इंटरवल तक फिल्म में माँ-बेटे का प्यार और मियाँ बीवी की मोहब्बत का ओवरडोज़ है। बेहतर होता कि यह फिल्म इंटरवल के बाद की ही बनाई जाती, कम से कम दर्शकों का एक घंटा तो बचता।
शुरू की 30% फिल्म है मां-बेटे का प्यार, फिर 20% मियां-बीवी की मोहब्बत। इंटरवल के बाद फिर शुरू होती है बेल बॉटम की कहानी, देश प्रेम की चाशनी से ओतप्रोत !
अक्षय कुमार साठ के दशक के भारत कुमार उर्फ मनोज कुमार का आधुनिक संस्करण हैं। मनोज कुमार ने जय जवान,जय किसान तथा रोटी, कपड़ा और मकान जैसे विषयों पर फिल्में बनाई थीं। आधुनिक भारत कुमार पैडमैन, टॉयलेट, मिशन मंगल, लक्ष्मी जैसी फिल्में बनाते हैं। उन्हीं का नया वेंचर है बेल बॉटम !
बेल बॉटम फिल्म में अक्षय कुमार को लार्जर देन लाइफ दिखाने के लिए बहुतों से नाइंसाफी हुई है। फिल्म के सारे पात्र अक्षय कुमार के चरित्र को प्रभावी बनाने के लिए कार्य करते हैं। एक सच्ची घटना से प्रेरित बताने का दुस्साहस करती है फिल्म। यह पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की आयरन लेडी वाली छवि को धूमिल करने की कोशिश करती है। यह है कि आखिर इंडियन एयरलाइंस उड़ान आईसी 421 से प्रेरित फिल्म का ताना-बाना क्यों बुना गया? पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा 24 दिसंबर 1999 को अपह्रत किए गए इंडियन एयरलाइंस के विमान संख्या आईसी 814 के बारे में क्यों नहीं कहानी बुनी गई? जिसके कारण मसूद अजहर जैसे कई आतंकियों को अटलबुहारी वाजपेयी की सरकार ने छोड़ा था। बस, यहीं निर्माताओं की नीयत ठीक नहीं लगती। अलगाववादियों द्वारा लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक विमानों का अपहरण हुआ था। उनमें से एक के अपहरणकर्ता तो भोला नाथ पांडे और देवेंद्र पांडे बंधु थे, जिन्होंने आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी पर यह काण्ड किया था। ये क्या बात हुई थी हर फिल्म का हीरो तभी कोई महान या बड़ा काम करता है जब व्यक्तिगत तौर पर उसके साथ कोई नाइंसाफी हुई हो। इसमें भी ऐसा ही है।
इस फिल्म में एक हीरो है बाकी सब जीरो! प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री का सचिवालय, रॉ के अधिकारी, विदेश मंत्रालय के अधिकारी, नागरिक उड्डयन विभाग के अधिकारी सब ही अलल टप्पू हैं! ऐसा होता है क्या?
फिल्म के जितने भी गाने हैं, पंजाबी में हैं। एक गाने की लाइन के यह 4 शब्द मेरे जेहन में बस गए - जग सारा मिट्टी गारा !
भारतीय अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसी रॉ के बारे में एक कहानी फिल्म में सुनाई गई है। एक नवजात कुत्ता मां से पूछता है कि अम्मा मेरा बाप कौन है, कैसा है? तो उसकी मां बोलती है बेटा, मैंने भी उसे नहीं देखा। वह पीछे से आया और अपना काम करके चला गया ! यही कहानी रॉ के बारे में भी कही जाती है।  
फिल्म का सबसे अच्छा पहलू यह है कि इस फिल्म में सभी टाइटल अंग्रेजी और हिन्दी दोनों में हैं। और एक खास बात यह है कि फिल्म की हीरोइन का नाम हीरो के पहले दिया गया है। शाहरुख खान ने इसकी शुरुआत की थी। इस फिल्म में अक्षय कुमार, हुमा कुरेशी, वाणी कपूर, लारा दत्ता, अनिरुद्ध दवे, मार्मिक सिंह, जैन खान दुर्रानी आदि है। अक्षय की मां की ओवर एक्टिंग डॉली आहलूवालिया ने की है। लारा दत्ता कहीं से भी इंदिरा गांधी नहीं लगती !
इस फिल्म में छह प्रोड्यूसर, दो लेखक, दर्जनों कलाकार और आधा दर्जन गायक हैं।

 

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