मुझे इस बात पर आश्चर्य हो रहा है कि आखिर आईपीएस एसोसिएशन ने 'पुष्पा : द राइज़' फिल्म के खिलाफ कोई मोर्चा क्यों नहीं संभाला? फिल्म में जिस तरह से एक आईपीएस अधिकारी (एसपी) का चरित्र दिखाया गया है वह बेहद शर्मनाक है। पुष्पा में ईमानदार डीएसपी का नाम गोविन्दप्पा है, जो दक्षिण भारतीय है, लेकिन भ्रष्ट एसपी का नाम भंवर सिंह शेखावत है और वह बोलता हरयाणवी है। पूरी फिल्म के तमाम कैरेक्टर दक्षिण भारत के हैं, एसपी को छोड़कर जो कि राजस्थान से आया हुआ लगता है। उसका नाम है भंवर सिंह शेखावत। एसपी के दफ्तर में फिल्म का हीरो (जो कि लाल चंदन का तस्कर है) एक करोड़ रुपए का बैग लेकर जाता है। एसपी अपनी टेबल के तमाम चीज़ें हटाकर नोटों की गड्डियां गिनने लगता है और जिस तरह की बातें वह हीरो से करता है, उससे साफ है कि उसे इतने पैसे में संतुष्ट नहीं है। शायद ही किसी ने इस तरह के एसपी को कहीं नियुक्ति पाते हुए देखा होगा!
भ्रष्ट एसपी हीरो को धमकाता है कि मुझे सर बोलो। हीरो एसपी को सर कहने लगता है और उसकी हर बात मानने लगता है। हीरो अपनी शादी के दिन ऐन मौके पर विवाह मंडप से गायब होकर सुनसान जगह पर एसपी के साथ बैठकर शराब पीता है और एसपी की ही सरकारी रिवाल्वर लेकर एसपी को लगभग नंगा कर देता है और उसे उसी दशा में घर जाने के लिए विवश करता है। हीरो एसपी से कहता है कि तुम्हारे पास वर्दी है वरना तुम्हें तुम्हारा कुत्ता भी नहीं पहचानेगा। एसपी लगभग नग्न अवस्था में ही अपने सरकारी आवास में जाता है, जहां उसे देखकर उसका कुत्ता भौंकने लगता है। क्या कुत्ते अपने मालिक को वर्दी में ही पहचानते हैं? पराजित एसपी रिश्वत में मिले एक करोड़ रुपये वहीं पर शराब डालकर जला देता है।
सवाल यह है कि आखिर ऐसा कौन सा आईपीएस अधिकारी है जो अपने दफ्तर में एक करोड़ की रिश्वत लेता है? और रिश्वत लेता ही नहीं, अपने ऑफिस की टेबल पर एक करोड़ रुपए के नोट जमा कर अपने हाथों से गिनने लगता है! अगर कोई व्यक्ति भले ही दो-दो हज़ार के नोटों की गड्डी हो, अगर एक करोड रुपये के नॉट कोई एक एक करके गिनने बैठेगा तो कितना समय लगेगा? बात सच है कि समाज में नैतिकता का स्तर गिरता जा रहा है और पुलिस भी इसी समाज का हिस्सा है। पर इतना वरिष्ठ पुलिस अधिकारी क्या इस तरह खुलेआम भ्रष्टाचार कर सकता है? क्या एसपी के दफ्तर में कोई नहीं होता? क्या समाज के अन्य वर्ग पुलिस पर निगरानी का कार्य नहीं करते? अनपढ़ लाल चंदन के तस्कर के सामने पुलिस के इतने वरिष्ठ अधिकारी को इतना भ्रष्ट दिखाया जाना आश्चर्यजनक लगता है। तौर पर धारणा है कि पुलिस अधिकारी खासकर भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अपने कार्य और निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। आईपीएस एसोसिएशन को पुष्पा फिल्म के खिलाफ कुछ न कुछ कानूनी कार्यवाही जरूर करनी चाहिए। आप पुलिस अधिकारियों को इस तरह बेइज्जत नहीं कर सकते।
पुष्पा एक बेहद घटिया और फार्मूला फिल्म है। हिन्दी फिल्मों में आमतौर पर नाजायज औलादे ठाकुरों की ही बताई जाती है। पुष्पा फिल्म भी हीरो ठाकुर की नाजायज औलाद है। फ़िल्मी हीरो अपनी मां से हमेशा ही प्रेम करते हैं, और उनकी ख़ुशी के लिए सब कुछ करने को तैयार रहते हैं। पुष्पराज उर्फ़ पुष्पा भी अपनी मां से अगाध प्रेम करता है। अनपढ़ और जाहिल किस्म का प्राणी है हीरो। उसकी खूबी बस यही है कि वह बहुत महत्वाकांक्षी और निडर है। खून खराबे से नहीं डरता। उसकी हड्डियां इतनी मज़बूत है कि पुलिस भी लॉकअप में उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। महिलाओं के प्रति उसके मन में इतना सम्मान है कि वह एक हज़ार रुपये में हीरोइन की मुस्कुराहट और पांच हज़ार में हीरोइन की चुम्मी खरीदना चाहता है। हीरो चन्दन तस्कर का पार्टनर बन जाता है। हीरोइन का बाप भी इसी धंधे में है। अपने होने वाले ससुर की जान बचाकर वह हीरोइन का दिल जीत लेता है। फिल्म का पहला पार्ट खत्म हो जाता है।
पूरी फिल्म में झोल ही झोल हैं। हिंसा, गुंडागर्दी ,अनाचार, क्राइम, फूहड़ता, अश्लीलता, बेसिरपैर के गाने आदि हैं। लाल चन्दन की लकड़ी चित्तूर जिले (आंध्र प्रदेश) के शेशाचलम हिल्स में ही उगती है। यह दुर्लभ लकड़ी है जिसकी कीमत डेढ़ करोड़ रुपये प्रति टन तक बताई जाती है। क्या सचमुच ऐसा है? तस्कर ऐसी बहुमूल्य लकड़ी दो-दो सौ टन इकट्ठी कर लेते हैं और वन विभाग कुछ नहीं करता ? लाल चन्दन की सैकड़ों टन लकड़ी हीरो नदी में बहा देता है और बाँध स्थल पर इकट्ठी कर लेता है, जबकि लाल चन्दन की लकड़ी इतनी भारी होती है कि वह पानी में तैरती नहीं, डूब जाती है। हीरो पुलिस से बचते हुए लाल चन्दन से भरा ट्रक कच्ची सड़क के पास पानी के गढ्ढे में गिरा देता है, और पुलिस इतनी मूर्ख है कि ट्रक को वहां तलाश ही नहीं करती !