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इन्दौर संभागीय मुख्यालय है और यहां दर्जनों आईएएस, आईपीएस, आईआरएस अधिकारी हैं। लेकिन यहां जो सम्मान जिला कलेक्टर को प्राप्त है, वह किसी भी और अधिकारी को प्राप्त नहीं है। इन्दौर के लोगों का सामान्य ज्ञान यही कहता है कि कलेक्टर से बड़ा कोई नहीं।

किसी को कुछ कहना होता है तो वह व्यंग्य में यही कहता है -

खुद को बड़ा कलेक्टर समझता है क्या?

इन्दौर को मध्यप्रदेश की आर्थिक राजघानी कहा जाता है। और चबंकि कलेक्टर का काम ही (रेवेन्यू) कलेक्टर करना होता है, इसलिए इन्दौर का कलेक्टर हमेशा मुख्यमन्त्री से हॉट लाइन पर जुड़ा होता है। इन्दौर में कलेक्टर का मुख्य काम होता है अतिक्रमण को तोड़ना, हवाई जहाज उड़ाना, घुड़सवारी करना, उदघाटन करना, पत्रकारों से मिलना और साल में एक बार वैष्णोदेवी के दर्शन के लिए जाना।

हर कलेक्टर इन्दौर को सौगात देकर जाता है। कोई अवैध अतिक्रमण हटाने की सौगात देता है, कोई हाईमास्ट की। कोई बड़े पैनामे पर वृक्षारोपण कराता है, कोई साक्षरता अभियान चलाता है, कोई बड़े अस्पताल की सफाई कराता है, कोई गंदे नाले को झील तब्दील कराने में कामयाब होता है।

इन्दौर में एक कलेक्टर थे, जिन्होंने विकलांगो की सेवा में महत्वपूर्ण कार्य किया था। एक ऐसे कलेक्टर थे जो सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से भी ज्यादा लोकप्रिय थे। वे अर्जुनसिंह के खास थे। उनके राज में जनता दरबार लगते थे और वे सूचना प्रकाशन के अफसरों और लेडी डिप्टी कलेक्टर्स के साथ पजयात्रा पर जाते थे। वे हर अर्जी पर आदेश दे दिया करते थे। आग बुझाना उनका शौक था और राजबाड़े में लगी ऐतिहासिक आग को बुझाने में भी उन्होंने योगदान दिया था।

एक अन्य कलेक्टर थे - वृक्षारोपण के शौकीन।

इन्दौैर के पास राऊ की टेकरी पर उन्होंने हजारों पौधे लगवा दिए थे। जून की तेज धूप में उन्होंने हजारों बच्चों से यह कार्य कराया था और मुख्यमंत्री को दिखलाया था। महू के पास डोंगर गांव में भी उन्होंने हजारों पौधे लगवाए थे और अपने गुरू जैसे चीफ सेव्रेâटरी से उनका इंस्पेक्शन कराया था। वहां बिजली नहीं थी तो दर्जनों कारों और जीपों की हेड लाइटस से काम चलाया गया था।

साक्षरता के महत्व को समझकर उसके प्रचार-प्रसार का दायित्व निभानेवाले भी एक कलेक्टर थे। लेकिन वे इस काम को अंजाम दे पाते, इसके पहले ही उनका तबादला हो गया। उनके बाद जो कलेक्टर आए उन्हें साक्षरता से ज्यादा जरूरी यह लगा कि इन्दौर के बड़े अस्पताल की सफाई कराई जाए और उसे चूहों से मुक्त कराया जाए। उन्होंने यह काम बखूबी निभाया।

इन्दौर में एक ऐसे कलेक्टर थे, जिन्हें प्रचार में कोई दिलचस्पी नहीं थी। राज्य सरकार ने उन्हें प्रमोशन दिया और सूचना एवं प्रकाशन विभाग (अब जनसंपर्वâ निदेशालय) का डायरेक्टर बना दिया। एक ऐसे कलेक्टर थे, जो बहुत अच्छे लेखक थे और उनके लिखे नोटस सरकारी फाइलों में आज भी सुरक्षित हैं। एक ऐसे कलेक्टर थे, जिनका ज्यादातर समय लायब्रेरी में बीतता था और अब वे भोपाल में है और साम्यवाद पर उनकी लिखी किताब का खासा महत्व है।

आज इन्दौर में न तो जन शिकायत कक्ष सक्रिय है, न विकलांगों के लिए कोई खास काम हो रहा है, न वृक्षारोपण को गति मिल रही है, न कोई स्वच्छता अभियान जारी है, न जनसम्पर्वâ यात्राएं हो रही हैं, न साक्षरता मिशन आगे बढ़ रहा है, न झील की सफाई हो रही है।

एक कलेक्टर आता है बहुत अच्छे इरादे और उच्च मनोबल लेकर। अपनी सारी ऊर्जा से वह एक काम शुरू करता है और फिर चला जाता है। दूसरा अधिकारी भी उतनी ही ऊर्जा लेकर आता है और वह दूसरा काम शुरू करता है और वह भी चला जाता है।

एक एक करके अधिकारी आते और चले जाते हैं। इन्दौर शहर वहीं का वहीं रहता है।

-प्रकाश हिन्दुस्तानी

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